मार्गदर्शक की सलाह को आप 80 साल के बेरोजगार का प्रलाप करार देते हैं। पूर्व वित्त मंत्री को स्तंभकार कह खारिज करने की कोशिश करते हैं और आपके वर्तमान मंत्री ही स्तंभकार बन उसका जवाब भी देते हैं। जब आपने हर सवाल का जवाब एक सर्वशक्तिमान चेहरे को बना रखा है तो यह शिकायत क्यों कि पूर्व वित्त मंत्री ने नीतियों के बजाए व्यक्ति पर टिप्पणी की। अस्सी पार की तो बात छोड़िए आपके नीति आयोग के नीतिकर्ता अपना रोजगार बचाने के लिए सात समंदर पार चले गए। जब आपके चीयरलीडर्स मुदित होकर कह रहे थे कि विपक्ष है ही कहां, तो अरुण शौरी से लेकर सुब्रमण्यम स्वामी और यशवंत सिन्हा की आवाज गूंजती है। सरकार, प्रचार और उसके अंदर से ही निकलती प्रतिपक्ष की आवाज पर इस बार का बेबाक बोल।
प्रधानमंत्री जी बहुत-बहुत शुक्रिया। अपनी सरकार में मार्गदर्शक मंडल बनाने के लिए। ‘मार्गदर्शक’ शब्द ही कितना गरिमामय और मार्गदर्शी है। सबसे आह्वाद का विषय है कि आपने इसमें उन लोगों को जगह दी जो अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते हैं। जब लगा कि आप गलत दिशा में जा रहे हैं तो अपनी भूमिका निभाते हुए दिशानिर्देशक की तरफ इशारा कर दिया। अब आपका राष्ट्रीय कर्तव्य’ है कि इनके बताए मार्ग पर चलें न कि इन्हें 80 साल का बेरोजगार या महज एक स्तंभकार साबित करें। ये मागर्दशक अभी राष्ट्रीय य गर्व का विषय हो सकते हैं, जिनमें यह बोलने की हिम्मत है, ‘देश के वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था की हालत जो बिगाड़ दी है, ऐसे में अगर मैं अब भी चुप रहूं तो यह राष्ट्रीय कर्तव्य के साथ अन्याय होगा। मुझे इस बात का भी भरोसा है कि मैं जो कुछ कह रहा हूं, यही भाजपा के और दूसरे लोग मानते हैं लेकिन डर की वजह से ऐसा कहेंगे नहीं’।
लेकिन इन पंक्तियों को लिखते वक्त शायद उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि कौमी फर्ज की राह पर चलने से इनकार सबसे पहले उनका अपना ‘वंश’ ही कर देगा। उनकी इस आवाज के साथ भाजपा के दूसरे लोग तो दूर, उनका अपना बेटा खड़ा नहीं हो सकेगा। पिता के लेख के छापेखाने से निकलते ही पुत्र को कलम पकड़नी पड़ती है। बहरहाल, ‘पुत्र का लेख पिता के नाम’ की इस कड़ी ने बर्कले और प्रिंस्टन से चली वंशवाद की बहस भी याद दिला दी।
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जयंत सिन्हा के लेख को पत्र सूचना कार्यालय (पीआइबी) का प्रेस बयान करार दिया। चिदंबरम की आपत्ति जायज है कि प्रशासनिक बदलावों को संगठनात्मक सुधारों के खाते में नहीं डाला जा सकता है। जयंत सिन्हा तो अपने पिता के लिखने के बाद बचाव में उतरे, लेकिन इन दिनों जिस तरह से अखबारों के संपादकीय पन्ने पर मंत्रियों के लेख छप रहे हैं और वे सरकार की झंडाबरदार योजनाओं का जमकर प्रचार कर रहे हैं, वह खासा चिंता का विषय है।
वैसे, संपादकीय पन्ने पर मंत्रियों के लेख लिखने का चलन नया नहीं है, पहले भी ऐसा होता आया है। लेकिन इन दिनों जिस आक्रामक तरीके से सत्तापक्ष के मंत्री इन पन्नों पर सरकार का प्रचार कर रहे हैं, और ऐसा जारी रहा तो जल्द ही पीआइबी के अफसरों को अपने लिए नया काम खोजना पड़ जाएगा। पीआइबी की तो बात छोड़िए, फिलहाल तो केंद्रीय मंत्रिमंडल पीआर एजंसी में बदलता दिख रहा है। सबसे बड़ी चिंता तो उन राजनीतिक टिप्पणीकारों को होनी चाहिए जिनके लिखने की जगह सिकुड़ती जा रही है।
खास बात यह है कि सरकार के खिलाफ इतना कड़ा बोलने के बाद भी यशवंत सिन्हा की सोशल मीडिया पर ज्यादा खिंचाई नहीं हुई। ट्रोल का उनपर हल्ला बोल नहीं हुआ। फिलहाल तो आपकी आइटी शाखा ‘हमारी भूल, कमल का फूल’ से निपटने में व्यस्त हो गई। वैसे, आपकी ‘मन की बात’ के तीन साल पूरे होने पर आपकी पार्टी के पूर्व वित्त मंत्री को ऐसा बोलना पड़ गया है। वे यह साफ-साफ कह रहे हैं कि उनकी इस आवाज में वे आवाजें भी शामिल हैं जो भय से चुप हैं। पूर्व वित्त मंत्री की इस बेबाकी के बाद राहुल गांधी ने आपके सह-विमानचालक (तीन मंत्रालयों वाले वित्त मंत्री) पर जो हल्ला बोला है उसे आपकी आइटी शाखा के लोग चुटकुले बनवा कर भले खारिज करते रहें, लेकिन अपनी पार्टी के अंदर उठी इतनी वरिष्ठ आवाज को आप कैसे खारिज करेंगे। इसके पहले उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर से आपके युवा सांसद रोहिंग्याओं पर आपकी नीति के खिलाफ लिख चुके हैं।
सिन्हा ने सच ही कहा है कि आर्थिक विकास दर घटने की वजह नोटबंदी नहीं है और यह पहले ही शुरू हो चुकी थी। नोटबंदी ने तो बस आग में घी का काम किया है। हम भी यह पहले से कह रहे थे कि बहुत से बुरे को ढकने के लिए नोटबंदी की बहुत बुरी और बहुत बड़ी चादर ले आई गई थी। उस चादर को उघारने वाले हर व्यक्ति को आप राष्टÑद्रोही घोषित करते आ रहे थे।
नोटबंदी और जीएसटी पर सरकार के पक्ष और विपक्ष में सरकार के अंदर की ही आवाजों का ‘संपादकीय युद्ध’ शुरू हो चुका है। आपकी सरकार के साथ ऐसा पहले भी हुआ है। गुजरात में जब आपके शाहकार नाकाम हुए तो भी अंदरखाने से सवाल उठने शुरू हो गए थे। लेकिन तुरत-फुरत में आपदा प्रबंधन कर लिया गया था। प्रबंधन में तो आपके खेमे की कुशलता जगजाहिर है ही। इन विरोध की आवाजों को भी किसी एक बुलंद आवाज के अंदर जल्द ही समा लिया जाएगा। लेकिन असंतोष की यह चिनगारी उस आग का संकेत दे रही है जो आपकी पार्टी के अंदर भड़क रही है। नोटबंदी से लेकर जीएसटी, अभी तक सिर्फ आपके मन की बात ही सामने आई है। आरोप यही था कि आप बहुवचन को मार कर एकवचन की बात बोलते हैं। आप जैसा देखना चाहते हैं, वही देखते और बोलते हैं चाहे हकीकत कितनी भी उलट क्यों न हो।
बीते रविवार को मन की बात की तीसरी सालगिरह पर आपने ‘सेल्फी विद डॉटर’ अभियान की पांचवीं बार सराहना करते हुए इसे विश्व अभियान का नाम दे डाला। जब काशी हिंदू विश्वविद्यालय की बेटियां छेड़खानी के खिलाफ और अपने बुनियादी हकों के लिए सिंहद्वार पर डटी थीं तो आप रास्ता बदल कर चले गए। छेड़खानी के खिलाफ आंदोलन कर रहीं बेटियों पर जब लाठीचार्ज हुआ तब भी कुछ नहीं बोले। छात्राओं पर लाठीचार्ज को सही बताने वाले कुलपति महोदय ने कहा कि हम परिसर से राष्टÑवाद खत्म नहीं होने देंगे। राष्टÑवाद के नाम पर कुलपति महोदय किसे खुश करने की कोशिश कर रहे थे? यह कैसा राष्ट्र है जिसमें लड़कियों के लिए नागरिक के तौर पर जगह नहीं है। विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को डंडे, तोप और मिग विमानों पर क्यों भरोसा होने लगा है? आपके योगी जी का रोमियो विरोधी दस्ता बीएचयू की लड़कियों की रक्षा करने क्यों नहीं आया। तो हम क्या यही मानें कि इस दस्ते का गठन अपनी मर्जी से साथ खड़े लड़के-लड़कियों के लोकतांत्रिक अधिकारों के हनन के लिए किया गया था।
आपके मन की बात की तीसरी सालगिरह पर बीएचयू के साथ देश की सभी तरक्कीपसंद बेटियों के कान आपकी बातों पर थे। वे आपसे पूछना चाहती थीं कि वाराणसी में हमारे साथ सेल्फी क्यों नहीं ली गई, हम पर डंडे क्यों बरसाए गए। जब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संयुक्त राष्टÑ में अलोकतांत्रिक पाकिस्तान पर हल्ला बोल रही थीं तो क्या उन्हें अंदाजा था कि देश की बेटियों पर पुरुष पुलिसकर्मी डंडे बरसा रहे हैं। हर बार की तरह सोशल मीडिया पर हंगामा बरपने और उग्र नागरिक प्रदर्शनों के बाद ही बीएचयू प्रशासन पर कार्रवाई की सुगबुगाहट हुई।
आप मन की बात में नोटबंदी और जीएसटी से हुई आम लोगों की परेशानी पर नहीं बोलते, मध्य प्रदेश में किसानों पर चली गोलियों और पंचकूला में 36 नागरिकों की मौत पर नहीं बोलते हैं। आपने मन की बात में लोगों से कहा कि थाली में उतना ही खाना लें जितना खा सकें। बाद में इसकी सराहना करते हुए कहा कि पूरे हिंदुस्तान से इसके लिए धन्यवाद मिला। आप विद्यार्थियों को दसवीं और बारहवीं परीक्षा की शुभकामनाएं देते हैं और उन्हें पढ़ाई में तनाव नहीं लेने के नुस्खे देते हैं। खाना बर्बाद नहीं करने जैसी सलाह हमारे समाज की सबसे छोटी इकाई परिवार से मिलती ही रहती है। उसके बाद की इकाई स्कूल है जहां प्रिंसिपल से लेकर शिक्षकों तक का यही काम है, सीबीएसई व अन्य बोर्ड हैं जिनका काम ही यही सलाह देना है। जो काम परिवार को करना है, स्कूल को करना है वह काम समाज और राज की सबसे बड़ी इकाई क्यों कर रही है। देश के अगुआ को जो काम करना है, वह कौन करेगा?
आप नोटबंदी को नाकाम बताने वालों को राष्टÑद्रोही घोषित करते रहे, जीएसटी पर हैरतअंगेज और भ्रामक आंकड़े देकर खुद फंस गए, विकास की कम दर को तकनीकी कारण बताते रहे, घटती नौकरी और बेरोजगारों की बढ़ती फौज पर चुप रहे। लेकिन इस चुप्पी का विस्फोट आपके अंदर से ही होना बताता है कि कितने बड़े असंतोष को दबाया जा रहा है। जब आप चुप्पी साधेंगे तो कहीं न कहीं से तो आवाज आएगी ही।आपने खुद को किस्मतवाला बताया था, लेकिन आपके वित्त मंत्री कच्चे तेल के खुशकिस्मत समय का फायदा उठाने में नाकाम क्यों रहे? यह सवाल भी आपके पूर्व वित्त मंत्री ही पूछ रहे हैं। जीएसटी गफलत फैला रहा है और छोटे व्यापारियों की कमर टूट गई है। दम तोड़ता विनिर्माण, कृषि और हांफता सेवा क्षेत्र, घटता औद्योगिक उत्पादन, सिकुड़ते निजी निवेश पर आप कब बोलेंगे, इसका इंतजार है।
हाल में हुई राष्टÑीय कार्यकारिणी की बैठक में आपने कांग्रेस पर हल्ला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस विपक्ष की भूमिका ठीक से नहीं निभा रही है। आपके चीयरलीडर्स भी मुदित होकर कहते हैं कि अब विपक्ष का काम हम थोड़े ही करेंगे। तो लीजिए, अब आपके अंदर से एक प्रतिपक्ष की आवाज निकल आई है, जो कांग्रेस के हाथ मजबूत करेगी। सत्ता कभी विपक्षमुक्त नहीं रह सकती और इस सत्य को आप जितनी जल्दी समझ लें उतना अच्छा है। जब राहुल कांग्रेस को कांग्रेस का और खुद को खुद का विकल्प बनाने की आवाज उठा रहे हैं तो आपके अंदर से ही विकल्प की आवाज उठ जाती है। 2004 के शाइनिंग इंडिया का हाल याद रखिएगा। चमकता प्रचार और मंत्रिमंडल का पीआर जीत की गारंटी नहीं हो सकते।