हाल में, आरमैक्स स्कोर के तहत दुनिया के जिन शीर्ष पांच सौ सुपर कंप्यूटरों की सालाना सूची जारी हुई है, उसमें चीन के सुपर कंप्यूटर लगातार सातवीं बार न सिर्फ दुनिया में सबसे तेज साबित हुए हैं, बल्कि यह पहला मौका है जब उसने स्वदेशी तकनीक के सहारे अमेरिकी बादशाहत को भी मात दे दी है। पहली दफा ऐसा हुआ है जब अमेरिकी तकनीक का इस्तेमाल किए बगैर चीनी तकनीक से ईजाद किए गए प्रोसेसरों से बने सुपर कंप्यूटर सनवे ताइहुलाइट ने पहले स्थान पर जगह बनाई है। हर साल जारी की जाने वाली शीर्ष पांच सौ सुपर कंप्यूटरों की सूची में इस बार यह करिश्मा भी पहली बार हुआ है जब चीनी सुपर कंप्यूटरों ने संख्या के मामले में भी अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। आज की तारीख में चीन के पास 167 सुपर कंप्यूटर हैं जबकि अमेरिका 165 सुपर कंप्यूटरों के साथ दूसरे नंबर पर है। इस संदर्भ में भारत संख्या में भी काफी पीछे (सिर्फ नौ सुपर कंप्यूटर) है और उनकी गति के मामले में भी वह काफी पिछड़ा हुआ है। जबकि मोबाइल, कंप्यूटिंग और ई-कॉमर्स से लेकर अंतरिक्ष और मौसम-रक्षा आदि तकनीकों के विकास का सारा काम कंप्यूटिंग पर टिका हुआ है।

हालिया चीनी उपलब्धि को देखें, तो गति के मामले में चीन के दो सुपर कंप्यूटर (सनवे ताइहुलाइट और तियान्हे-2) दस शीर्ष कंप्यूटरों में सबसे ऊपर हैं। इसके बाद अमेरिका, जापान, स्विट्जरलैंड, जर्मनी और सऊदी अरब के सुपर कंप्यूटरों का नंबर आता है। सुपर कंप्यूटरों की संख्या के मामले में भी चीन और अमेरिका के बाद जापान (29), जर्मनी (26) फ्रांस (18), ब्रिटेन (12), भारत (9), दक्षिण कोरिया (7), रूस (7) और पोलैंड (6) शीर्ष दस देशों में आते हैं। जिस तरह से आज चीन के सुपर कंप्यूटर सनवे ताइहुलाइट की गति के संबंध में चर्चा हो रही है, उसी तरह पिछले साल भी ग्वांगहो स्थित चीन की सरकारी नेशनल यूनिवर्सिटी आॅफ डिफेंस टेक्नोलॉजी द्वारा बनाए गए सुपर कंप्यूटर तियान्हे-2 की सनसनी थी, जिसे तब दुनिया का सबसे ताकतवर और तेज कंप्यूटर घोषित किया गया था। उस वक्त चीन के कारनामे को अचरज भरा माना गया था क्योंकि 2015 से पहले सुपर कंप्यूटर तियान्हे-2 के बन जाने की उम्मीद नहीं की गई थी।

जहां तक भारत की बात है, तो भारत में मौजूद सुपर कंप्यूटरों का उल्लेख सूची के तीन दर्जन नामों के बाद किया जाता है। पिछले साल इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस, बेंगलुरु के एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर के अलावा नोएडा स्थित नेशनल सेंटर फॉर मीडियम रेंज फॉरकास्ट और दिल्ली स्थित भारतीय मौसम विभाग में स्थापित आइबीएम के सुपर कंप्यूटर को शीर्ष सौ सुपर कंप्यूटरों में जगह दी गई थी। पर ये उल्लेख ऐसे नहीं थे कि उन्हें दुनिया बहुत उम्मीद से देखे या उनसे कोई देश अपने लिए चुनौती महसूस करे। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या हमने हार मान ली है और सुपर कंप्यूटिंग के मैदान को दूसरों के लिए खाली छोड़ दिया है। यदि नहीं, तो आखिर इस पिछड़ेपन का कारण क्या है?

सुपर कंप्यूटिंग के क्षेत्र में भारत की स्थिति हमेशा इतनी खराब नहीं रही। वर्ष 2007 में दुनिया के अव्वल पांच सौ सुपर कंप्यूटरों की शीर्ष दस की सूची में भारतीय सुपर कंप्यूटर चौथे स्थान पर आया था। टाटा कंपनी की पुणे स्थित इकाई- कंप्यूटेशनल रिसर्च लेबोरेटरीज- के बनाए हुए सुपर कंप्यूटर ‘एचपी-3000-बीएल-460-सी’ को 117.9 टेराफ्लॉप की गति के कारण अमेरिका और जर्मनी के सुपर कंप्यूटरों के ठीक बाद का स्थान दिया गया था। हालांकि इससे काफी पहले 1998 में सी-डेक, पुणे के वैज्ञानिक ‘परम-10000’ सुपर कंप्यूटर बना चुके हैं और दावा था कि उस वक्त परम-10000 मौजूदा अमेरिकी सुपर कंप्यूटरों के मुकाबले पचास गुना तेज था। लेकिन इन उपलब्धियों के बाद सुपर कंप्यूटिंग को लेकर भारत में वैसी उत्सुकता नहीं दिखाई दी, जैसी अन्य विकसित और विकासशील मुल्कों में इस दौरान रही है।

निश्चित रूप से सुपर कंप्यूटिंग में दबदबा कायम रखना कभी आसान नहीं रहा है। पर एक दौर था जब भारत ने सुपर कंप्यूटर बनाने की ठानी और वह करिश्मा भी कर दिखाया। आश्वस्ति की यह गौरवगाथा नब्बे के दशक की है जब अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने के कारण भारत अपनी जरूरतों के लिए क्रे नामक सुपर कंप्यूटर नहीं खरीद पाया था। अस्सी के दशक के आखिरी चरण में अमेरिका ने मौसम की भविष्यवाणी के मकसद से प्रयोग में लाए जा सकने वाले क्रे सुपर कंप्यूटर को हमें देने से इनकार कर दिया था। इसे भारतीय वैज्ञानिकों ने एक चुनौती की तरह लिया था और सेंटर फॉर डेवलपमेंट आॅफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (सी-डेक), पुणे के वैज्ञानिकों ने 1998 में ‘परम-10000’ सुपर कंप्यूटर बना कर दिखा दिया था कि रुकावटों के बावजूद भारतीय मेधा मुश्किल चुनौतियों से पार होना जानती है। उस समय भारत विश्व का तीसरा और एशिया का दूसरा ऐसा देश था, जिसने सुपर कंप्यूटर बनाने में सफलता हासिल की थी।

देश में सुपर इनफॉर्मेशन हाइवे बनाने के मकसद से निर्मित परम-10000 की उपयोगिता से कतई इनकार नहीं किया जा सकता है, लेकिन पिछले कुछ समय से देश का सुपर कंप्यूटर के निर्माण के काम में पिछड़ना इस संबंध में सुस्ती और लापरवाही दर्शा रहा है। खासतौर से यह देखते हुए कि चीन, ब्रिटेन, स्विट्जरलैंड और जापान आदि मुल्क सुपर कंप्यूटिंग में गति बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। असल चिंता इस बात की है कि कहीं भावी जरूरतों के लिए हमें एक बार फिर पश्चिमी मुल्कों का मोहताज न बनना पड़े।

अंतरिक्ष की खोज संबंधी भावी कार्यक्रमों, ड्रग्स रिसर्च और जलवायु परिवर्तन से लेकर एटॉमिक स्ट्रक्चर संबंधी जानकारियों के विश्लेषण और संबंधित आंकड़ों के आधार पर अनुरूपण (सिम्यूलेशन) की जरूरत के मद््देनजर बहुत अधिक गति वाले सुपर कंप्यूटरों की जरूरत है। गौरतलब है कि अंतरिक्ष अनुसंधान, चिकित्सा, तीव्र इंटरनेट सेवा, इंसान के दिमाग की पड़ताल, रोबोटिक्स और मौसम संबंधी जानकारियों के बढ़ते दायरे के मद््देनजर अब दुनिया में अत्यधिक तेज सुपर कंप्यूटरों की जरूरत पड़ने लगी है। इसी जरूरत को भांपते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने पिछले साल घोषणा की थी कि उनका देश वर्ष 2025 तक दुनिया का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर बना लेगा। यह सुपर कंप्यूटर मौजूदा तेज कंप्यूटरों की तुलना में तीस गुना तेज होगा।

अगले दस वर्षों के भीतर बनाए जाने वाले इस सबसे तेज कंप्यूटर के लिए बनाई गई योजना में अमेरिका की खुफिया एजेंसी एफबीआई (फेडरल ब्यूरो आॅफ इन्वेस्टीगेशन), अमेरिका का नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हेल्थ और खुद वाइट हाउस शामिल है। माना जा रहा है कि इस अकेले सुपर कंप्यूटर को चलाने के लिए अमेरिका को अलग से एक ऊर्जा संयंत्र लगाना होगा। फिलहाल चीन के दो सुपर कंप्यूटरों के बाद अमेरिका के पास दुनिया का तीसरे नंबर का सुपर कंप्यूटर (गति के मामले में) है जो वहां के ऊर्जा विभाग में लगा हुआ है। यह बेहद तेज गति (विज्ञान की भाषा में 17 क्वॉड्रिलियन प्रति सेकेंड) से चलता है।

खास बात यह है कि नई किस्म की जरूरतों के हिसाब से रूस और यूरोपीय संघ भी तीव्रतम सुपर कंप्यूटरों के निर्माण की कोशिशों में लगे हुए हैं। सुपर कंप्यूटिंग में पड़ोसी चीन जहां अपनी बादशाहत कायम रखने के प्रयास कर रहा है, वहीं खुद को आइटी और कंप्यूटिंग का पुरोधा कहने वाला हमारा देश इस मामले में लगातार पिछड़ता जा रहा है। दुनिया की नजरों में आइटी और बीपीओ के मामले में भारत एक हस्ती है। चंद्रयान और मंगलयान की सफलताओं ने भारत को अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी महारथी साबित कर दिया है। कंप्यूटिंग के संबंध में भी हमारा दावा रहा है कि हम विकसित मुल्कों से पीछे नहीं हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस क्षेत्र में भारत को कड़ी चुनौतियां मिल चुकी हैं। हालांकि इन चुनौतियों के मद््देनजर पिछले साल मंजूर किए गए राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान 2.0 (एनइजीपी) को देखें तो हम कुछ राहत महसूस कर सकते हैं क्योंकि इसमें सरकार ने देश में दर्जनों सुपर कंप्यूटर बनाने के अभियान को मंजूरी दी है।

असल में, एनइजीपी के तहत सरकार की योजना हर किस्म की सरकारी सेवा को मोबाइल समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के मंच पर ले आना है, ताकि आम जनता को शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, योजना, न्याय, साइबर सुरक्षा समेत कई अन्य क्षेत्रों की सेवाएं घर बैठे हासिल हो सकें। इस महा अभियान की सफलता चूंकि कंप्यूटिंग के अत्याधुनिक इंतजामों से जुड़ी है, लिहाजा सरकार ने साढ़े चार हजार करोड़ रुपए की लागत से देश में तिहत्तर सुपर कंप्यूटर बनाने का फैसला किया है। ये सुपर कंप्यूटर अगले छह-सात वर्षों में बनकर तैयार होंगे जो ई-गवर्नेंस की नीति को बेहतर बनाने के अलावा डिजिटल इंडिया जैसे महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम के लाभ आम जनता को दिलाने में मददगार साबित हो सकेंगे। इन सुपर कंप्यूटरों से विभिन्न मंत्रालयों, वैज्ञानिकों व शोध करने-कराने वाले संस्थानों के काम में भी तेजी आ सकेगी।

इस योजना के लिए सरकार एक विशाल ग्रिड का निर्माण करना चाहती है। इसमें तिहत्तर उच्च क्षमता वाली कंप्यूटिंग सुविधाएं होंगी। इस परियोजना के पूरा होने से भारत को रणनीतिक मिशनों, स्पेस साइंस और टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में नई ताकत मिलेगी। पर अभी यह योजना भी उतनी क्रांतिकारी नहीं लगती कि इन नए बनाए जाने वाले भारतीय सुपर कंप्यूटरों से चीनी-अमेरिकी चुनौतियों का ठीक वैसा ही जवाब दिया जा सके, जैसा जवाब इसरो पीएसएलवी सरीखे रॉकेटों के बल पर दुनिया को दे रहा है।