पिछले कुछ समय से राजधानी दिल्ली सहित देश के कई बड़े शहरों में वायु प्रदूषण जानलेवा स्तर तक पहुंच गया है। ज्यादा दिन नहीं हुए जब पूरी दिल्ली धुएं और धुंध की चपेट में थी। उस दौरान सबको सांस लेने में परेशानी, आंखों में जलन सहित कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं होने लगी थीं। इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली के लोगों को धुएं से राहत तो मिली लेकिन दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर ज्यादा नहीं सुधरा और लगभग यही हाल देश के सभी शहरों का है।
अगर हमने वायु प्रदूषण को कम करने के तत्काल कदम नहीं उठाए तो भविष्य में इसकी बड़ी कीमत हम सब को चुकानी पड़ेगी। कुल मिलाकर कथित विकास के पीछे विनाश की आहट धीरे-धीरे सुनाई पड़ने लगी है। हालात इतने बदतर हो गए हैं कि कई बार वायु प्रदूषण मापने वाला इंडेक्स ही नहीं काम करता है, मतलब वह उच्चतम स्तर तक पहुंच जाता है। सच्चाई यह है कि अधिकतर राजनीतिक दलों के एजेंडे में पर्यावरण संबंधी मुद््दा है ही नहीं; उनके चुनावी घोषणापत्र में इसका कोई जिक्र नहीं होता। हर पार्टी विकास की बातें करती है, लेकिन ऐसे विकास का क्या फायदा, जो लगातार विनाश को आमंत्रित करता हो। अब समय आ गया है जब पर्यावरण का मुद््दा राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ समाज की भी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। क्योंकि अब भी अगर हमने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया आने वाला समय बहुत भयावह होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली का वातावरण स्वास्थ्य के लिए बेहद नुकसानदेह हो गया है। इसकी गिनती विश्व के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में होने लगी है। यदि वायु प्रदूषण रोकने के लिए शीघ्र कदम नहीं उठाए गए तो इसके गंभीर परिणाम सामने आएंगे। डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण को लेकर इक्यानवे देशों के सोलह सौ शहरों पर आंकड़ों पर आधारित रिपोर्ट जारी की थी। इसमें दिल्ली की हवा में पीएम-25 (2.5 माइक्रोन छोटे पार्टिकुलेट मैटर) में सबसे ज्यादा पाया गया है। पीएम-25 की सघनता 153 माइक्रोग्राम तथा पीएम-10 की सघनता 286 माइक्रोग्राम तक पहुंच गई है, जो कि स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। वहीं बेजिंग में पीएम-25 की सघनता 56 तथा पीएम-10 की 121 माइक्रोग्राम है। जबकि कुछ वर्षों पहले तक बेजिंग की गिनती दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर के रूप में होती थी, लेकिन चीन की सरकार ने इस समस्या को दूर करने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए, जिसके सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।
पर्यावरण के लिए काम कर रही संस्था ‘सेंटर फॉर साइंस ऐंड एनवार्नमेंट’ ने पिछले दिनों राजधानी के विभिन्न स्थलों व सार्वजनिक परिवहन के अलग-अलग साधनों में वायु प्रदूषण का स्तर मापने के लिए किए गए अध्ययन के आधार पर कहा है कि बस, मेट्रो, आॅटो से चलने वाले व पैदल राहगीर दिल्ली में सबसे अधिक जहरीली हवा में सांस लेने के लिए मजबूर हैं। यहां की हवा बद से बदतर होती जा रही है। बीती सर्दी में यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई थी।
एक अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण भारत में मौत का पांचवां बड़ा कारण है। हवा में मौजूद पीएम-25 और पीएम-10 जैसे छोटे कण मनुष्य के फेफड़े में पहुंच जाते हैं, जिससे सांस व हृदय संबंधी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। इससे फेफड़े का कैंसर भी हो सकता है। दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण वाहनों की बढ़ती संख्या है। इसके साथ ही ताप विद्युत गृहों, पड़ोसी राज्यों में स्थित र्इंट भट्ठों आदि से भी दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का नया अध्ययन यह बताता है कि हम वायु प्रदूषण को लेकर कितने लापरवाह हैं और यह समस्या कितनी विकट होती जा रही है। खास बात यह है कि यह समस्या सिर्फ दिल्ली में नहीं है बल्कि देश के लगभग सभी शहरों की हो गई है। अगर हालात नहीं सुधरे तो वह दिन दूर नहीं जब शहर रहने के लायक नहीं रहेंगे। जो लोग विकास, तरक्की और रोजगार की वजह से गांव से शहर की तरफ आ गए हैं उन्हें फिर से गांव की तरफ रुख करना पड़ेगा।
हाल में ही ‘वायु प्रदूषण का भारतीय कृषि पर प्रभाव’ शीर्षक से प्रोसिडिंग्स आॅफ नेशनल एकेडमी आॅफ साइंस में प्रकाशित एक शोधपत्र के निष्कर्षों ने सरकार, कृषि विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा दी है। शोध के अनुसार, भारत के अनाज उत्पादन में वायु प्रदूषण का सीधा और नकारात्मक असर देखने को मिल रहा है। देश में धुएं में बढ़ोतरी की वजह से अनाज के लक्षित उत्पादन में कमी देखी जा रही है। करीब तीस सालों के आंकड़ों का विश्लेषण करते हुए वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया, जिससे यह अंदाजा मिलता है कि घनी आबादी वाले राज्यों में वर्ष 2010 के मुकाबले वायु प्रदूषण की वजह से गेहूं की पैदावार पचास फीसद से कम रही। खाद्य उत्पादन में करीब पचास फीसद की कमी धुएं की वजह से देखी गई, जो कोयला और दूसरे प्रदूषक तत्त्वों की वजह से हुआ। भूमंडलीय तापमान वृद्धि और वर्षा के स्तर की भी दस फीसद बदलाव में अहम भूमिका है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में वैज्ञानिक और शोध की लेखिका जेनिफर बर्नी के अनुसार ये आंकड़े चौंकाने वाले हैं।
स्वच्छ वायु सभी मनुष्यों और जीवों के लिए ही नहीं, वनस्पतियों के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। इसके महत्त्व का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक और जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, मगर वायु के बिना उसका जीवित रहना असंभव है। मनुष्य दिन भर में जो कुछ लेता है उसका अस्सी प्रतिशत भाग वायु है। वायु विभिन्न गैसों का मिश्रण है जिसमें नाइट्रोजन की मात्रा सर्वाधिक 78 प्रतिशत होती है, जबकि 21 प्रतिशत आॅक्सीजन तथा 0.03 प्रतिशत कार्बन डाइ आॅक्साइड पाया जाता है। शेष 0.97 प्रतिशत में हाइड्रोजन, हीलियम, आर्गन, निआॅन, क्रिप्टन, जेनान, ओजोन तथा जल-वाष्प होता है। वायु में विभिन्न गैसों की उपरोक्त मात्रा उसे संतुलित बनाए रखती है। इसमें जरा-सा भी अंतर आने पर वह असंतुलित हो जाती है और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होती है। श्वसन के लिए आॅक्सीजन जरूरी है। जब कभी वायु में कार्बन डाइआॅक्साइड और नाइट्रोजन के आॅक्साइडों की वृद्धि हो जाती है, तो यह खतरनाक हो जाती है।
भारत को विश्व में पर्यावरण की दृष्टि से सातवें सबसे खतरनाक देश के रूप में स्थान दिया गया है। वायु शुद्धता का स्तर, भारत के महानगरों में पिछले बीस वर्षों में बहुत ही खराब रहा है। औद्योगिक प्रदूषण चार गुना बढ़ा है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार हर साल लाखों लोग प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। पिछले अठारह वर्षों में जैविक र्इंधन के जलने की वजह से कार्बन डाइआॅक्साइड का उत्सर्जन चालीस प्रतिशत तक बढ़ चुका है और पृथ्वी का तापमान 0.7 डिग्री सेल्शियस तक बढ़ा है। अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइआॅक्साइड की मात्रा नब्बे प्रतिशत तक बढ़ जाएगी।
दिल्ली ही नहीं, देश के कई और शहरों का वातावरण भी बेहद प्रदूषित हो गया है। इस प्रदूषण को रोकने के लिए सरकार ने कभी गंभीरता से प्रयास नहीं किए। जो प्रयत्न किए गए वे नाकाफी साबित हुए और वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता ही गया है। इसे रोकने के लिए सरकार को अब जवाबदेही के साथ एक निश्चित समय-सीमा के भीतर ठोस प्रयास करना पड़ेगा, नहीं तो प्राकृतिक आपदाओं के लिए हमें तैयार रहना होगा।