जयंतीलाल भंडारी
इस साल की शुरूआत से ऐसे संकेत आ रहे हैं कि मौजूदा वर्ष (2021) में देश की आर्थिकी सुधार के रास्ते पर चल निकलेगी। पिछले साल कोरोना संकट से जो हालात बने थे, उससे अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा था। लेकिन अब धीरे-धीरे विकास दर का जो बढ़ता ग्राफ दिखाई दे रहा है, उसके साथ ही कोरोना की दूसरी लहर से निर्मित चुनौतियां भी खड़ी हो गई हैं। देश के कुछ राज्यों में कोरोना संक्रमण में मामलों में जिस तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, वह चौंकाने वाली है। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई और महाराष्ट्र में हालात गंभीरता के संकेत दे रहे हैं। सोलह राज्यों के सत्तर जिलों में कोरोना संक्रमण के मामलों में डेढ़ सौ फीसदी की वृद्धि देखी गई है और आठ राज्यों में दूसरी लहर का खतरा खड़ा है। ऐसे में अर्थव्यवस्था के लिए भी संकट कम नहीं हैं।
दुनिया के अधिकांश आर्थिक एवं वित्तीय संगठनों ने इस साल भारत की विकास दर में तेजी वृद्धि की संभावना बताई है। हाल में आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि नए वित्त वर्ष 2021-22 में भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में बड़े इजाफे की संभावना है। इसमें अनुमान व्यक्त किया गया है कि नए वित्त वर्ष (2021-22) में भारत के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 12.6 फीसदी की दर से वृद्धि होगी। इससे भारत विश्व में सबसे तेजी से विकसित होने वाली अर्थव्यवस्था का स्थान फिर से हासिल कर लेगा।
इसी तरह वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी- मूडीज ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान पहले अनुमानित किए गए 10.8 फीसद से बढ़ा कर 13.7 फीसद कर दिया है। आर्थिक गतिविधियों के सामान्य होने और कोरोना के टीके बाजार में आ जाने के बाद भारतीय बाजार में बढ़ते विश्वास को देखते हुए यह नया अनुमान लगाया गया है। साथ ही मूडीज ने भारतीय अर्थव्यवस्था में आने वाली गिरावट के अनुमान को भी अपने पहले के 10.6 फीसद में सुधार लाते हुए इसे सात फीसद कर दिया है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले महीने (26 फरवरी) राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए जीडीपी के आंकड़ों के अनुसार चालू वित्त वर्ष (2020-21) की तीसरी तिमाही (अक्तूबर-दिसंबर, 2020) में विकास दर में 0.4 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि पहली तिमाही में यह शून्य से 24.4 फीसद और दूसरी तिमाही में 7.3 फीसद नीचे रही थी। ऐसे में अब भारत दुनिया की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चीन के बाद दूसरा देश बन गया है, जहां विकास दर सकारात्मक होने के रास्ते पर आ गई है। पिछले कुछ महीनों में अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत सामने आए हैं, उनमें कृषि, निर्माण, विनिर्माण क्षेत्र की अहम भूमिका रही है। हालांकि चालू वित्त वर्ष में जीडीपी में आठ फीसदी गिरावट आने का अनुमान लगाया गया है, जबकि पहले 7.7 फीसदी गिरावट का अनुमान जताया गया था।
भारत दुनिया के उन कुछ प्रमुख देशों में है, जिन्होंने कोरोना का मुकाबला करने के लिए जल्द ही टीका बनाने में कामयाबी हासिल कर ली। इतना ही नहीं भारत दुनिया के प्रमुख टीका उत्पादक देशों में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है। वैसे भी भारत दुनिया में विभिन्न बीमारियों, महामारियों के टीकों उत्पादन केंद्र है और बड़ी संख्या में दूसरे देशों को कोरोना के टीके निर्यात भी कर रहा है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि क्वाड समूह के सदस्य देशों- भारत, अमेरिका, आॅस्ट्रेलिया और जापान ने शिखर बैठक में यह सुनिश्चित किया है कि वर्ष 2022 के अंत तक एशियाई देशों को दिए जाने वाले कोरोना टीके की एक अरब खुराक का निर्माण भारत में किया जाएगा। ऐसे में निश्चित रूप से भारत कोरोना टीका निर्माण के मामले में महाशक्ति बनने की ओर बढ़ चला है।
इस समय सीरम इंस्टीट्यूट आॅफ इंडिया द्वारा बनाए जा रहे एस्ट्राजेनेको-आॅक्सफोर्ड के टीके कोविशील्ड और भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन का निर्माण देश में बड़े पैमाने पर हो रहा है, लेकिन अब अन्य कंपनियों के टीके भी तेजी से बाजार में आने जरूरी हैं। बंगलूरु की स्टेलिस बायोफार्मा स्पूतनिक-वी टीके का उत्पादन और आपूर्ति करने के लिए रूस के सॉवरिन वेल्थ फंड- रशियन डाइरेक्ट इनवेस्टमेंट फंड (आरडीआइएफ) से साझेदारी करने वाली तीसरी भारतीय कंपनी बन कर स्वदेशी कंपनियों- ग्लैंड फार्मा और हेटरो की श्रेणी में आ गई है।
भारत में टीकाकरण का दायरा काफी बढ़ाया जा चुका है। देश में अब तक साढ़े पांच करोड़ से ज्यादा लोगों को कोरोना के टीकों की खुराक दी जा चुकी है। देश की स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित सभी कोरोना योद्धाओं और वरिष्ठ नागरिकों को टीका लगाना एक अच्छा रणनीतिक कदम रहा है, क्योंकि यही वर्ग जटिल बीमारियों से ग्रसित होने की बहुत अधिक संभावना रखते हैं। हाल में सरकार ने एक अप्रैल से पैंतालीस की उम्र पार सभी लोगों को कोरोना टीका लगाने का एलान कर दिया है।
इसके साथ-साथ अब संक्रमण को रोकने के लिए उन लोगों का टीकाकरण करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है जो संक्रमण के उच्च जोखिम में हैं। उन लोगों की रक्षा करना भी महत्त्वपूर्ण है जिन्हें काम के लिए घरों से बाहर निकलना पड़ता है। ऐसे में खुदरा व्यापार जैसे क्षेत्रों में काम कर रहे लोगों की सुरक्षा जरूरी है। सार्वजनिक आवाजाही के कारण कारोबारियों को भी संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है, इसलिए इन्हें भी अग्रिम मोर्चे वाले लोगों की श्रेणी में रखते हुए टीकाकरण करने की जरूरत है। इनके टीकाकरण से उपभोक्ता खुदरा क्षेत्र में तेजी से सुधार की संभावना है।
इस बात पर भी ध्यान दिया जाने की जरूरत है कि भारत में कोरोना टीकाकरण अभियान के तहत काफी टीके बरबाद होने की खबरें हैरान करने वाली हैं। यह चिंता का विषय इसलिए भी है कि एक तरफ तो जरूरतमंद लोग टीके के लिए इंतजार कर रहे हैं और फिर इनके निर्माण पर भी भारी खर्चा आ रहा है। तेलंगाना जैसे कई राज्य राष्ट्रीय औसत से बहुत अधिक खुराक की बरबादी कर रहे हैं। तेलंगाना में 17.5 फीसद खुराक बरबाद हो रही हैं, तो वहीं आंध्र प्रदेश में 11.6 फीसद और उत्तर प्रदेश में 9.4 फीसद टीके बेकार जा रहे हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि कोरोना के टीके सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए हैं और ये अमूल्य हैं, इसलिए किफायती तरीके से इनका इस्तेमाल किया जाना होगा। टीके की बरबादी कम होने से अधिक लोगों का टीकाकरण किया जा सकेगा और इससे संक्रमण की कड़ी को तोड?े की संभावना भी अधिक होगी।
वर्ष 2021 की शुरूआत से ही अर्थव्यवस्था और विकास दर में सुधार दिखाई दे रहा है, लेकिन अर्थव्यवस्था को तेजी से गतिशील बनाने और इस साल में भारत को दुनिया में सबसे तेज विकास दर वाला देश बनाने की वैश्विक आर्थिक रिपोर्टों को साकार करने के लिए कोरोना की दूसरी लहर के खतरे को रोकने पर सर्वोच्च प्राथमिकता से ध्यान देना होगा। लोगों को भी यह ध्यान रखना होगा कि महामारी अभी खत्म नहीं हुई है और अभी भी बचाव के लिए दवाई भी और कड़ाई भी जैसों नियमों का पालन किया जाना जरूरी है। इन सब उपायों से ही कोरोना को काबू किया जा सकेगा और इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार और विकास दर बढ़ने का रास्ता बनेगा।
