मोनिका राज
बौद्ध धर्म ऐसे नियमों का संग्रह है जो हमें यथार्थ के सही स्वरूप को पहचान कर अपनी संपूर्ण मानवीय क्षमताओं को विकसित करने में सहायता करता है। बौद्ध दर्शन में परस्पर निर्भरता, सापेक्षता और कारण-कार्य संबंध जैसे विषयों के बारे में चर्चा की जाती है। इसमें समुच्चय सिद्धांत और तर्क-वितर्क पर आधारित तर्कशास्त्र की एक विस्तृत व्यवस्था है जो हमें अपने चित्त की दोषपूर्ण कल्पनाओं को समझने में सहायता करती है। बौद्ध नीतिशास्त्र स्वयं अपने लिए और दूसरों के लिए हितकारी और हानिकारक बातों के बीच भेद करने की योग्यता पर आधारित है। बौद्ध धर्म मूलत: अनीश्वरवादी और अनात्मवादी है। अर्थात इसमें ईश्वर और आत्मा की सत्ता को स्वीकार नहीं किया गया है। लेकिन पुनर्जन्म को मान्यता दी गई है। बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया और मध्यम मार्ग बता कर रास्ते दिखाए।

आज विश्व में हिंसा और सामाजिक भेदभाव बढ़ रहा है। मनुष्य विचारों से हिंसात्मक होता जा रहा है। आतंकवाद या फिर दो देशों के बीच युद्ध जैसे हालात हैं। ऐसी विकट परिस्थिति में बौद्ध दर्शन कहीं ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है। व्यक्ति के विनाशकारी विचारों को बदलना और उन पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। लगभग ढाई हजार साल पहले बुद्ध ने मानवीय प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए कहा था कि मनुष्य का मन ही सारे कर्मों का नियंता है। इसलिए मानव की गलत प्रवृतियों को नियंत्रित करने के लिए उसके मन में सदविचारों का प्रवाह कर उसे सदमार्ग पर ले जाना जरूरी है। उन्होंने यह सदमार्ग बौद्ध धर्म के रूप में दिया था। अत: आज मानव-मात्र की कुप्रवृत्तियों, जैसे- हिंसा, शत्रुता, द्वेष, लोभ आदि से मुक्ति पाने के लिए बौद्ध दर्शन को समझने जरूरत है।

महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म में सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक और राजनीतिक स्वतंत्रता व समानता की शिक्षा दी है। बुद्ध ने सांसारिक दुखों के संबंध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया था। ये आर्य सत्य बौद्ध धर्म का मूल आधार हैं। इसके साथ ही सांसारिक दुखों से मुक्ति के लिए बुद्ध ने आष्टांगिक मार्ग पर चलने की बात कही। आष्टांगिक मार्ग के साधन हैं- सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्मांत, सम्यक आजीव, सम्यक व्यायाम, सम्यक स्मृति और सम्यक समाधि। मध्यम मार्ग का उपदेश देते हुए बुद्ध ने कहा कि मनुष्य को सभी प्रकार के आकर्षण और कायाक्लेश से बचना चाहिए। अर्थात, न तो अत्यधिक इच्छाएं करनी चाहिए, न ही अत्यधिक तप (दमन) करना चाहिए, बल्कि इनके बीच का मार्ग अपना कर दुख-निरोध का प्रयास करना चाहिए। सम्यक का अर्थ दो अतियों के बीच मध्यम स्थिति है। दोनों तरह की अति बुरी हैं। बीच का रास्ता ही ठीक है। बुद्ध का कहना है जो व्यक्ति अपनी जीवन-परिदृष्टि ठीक रखेगा, जो सही संकल्प या इरादा रखेगा, जिसकी वाणी अच्छी होगी, कर्म अच्छे होंगे, जिन्होंने जीविका के लिए बेहतर अर्थात भ्रष्टाचार-मुक्त साधन चुने होंगे, जो अपनी इंद्रियों को नियंत्रण में रखने के लिए व्यायाम करते रहेंगे, वे दुखमुक्त होंगे।

सम्यक वाणी, सम्यक कर्म और सम्यक जीविका ‘शील’ है और सम्यक प्रयत्न, सम्यक स्मृति व सम्यक समाधि को ‘समाधि’ कहते हैं। विभिन्न बौद्ध ग्रंथों में इसकी विवेचना की गई है। जैसे शील पांच हैं, जिन्हे पंचशील कहा जाता है। कोई व्यक्ति संघ में शामिल होने के पूर्व इन पंचशील की शपथ लेता है। ये पांच शील हैं- अहिंसा, चोरी न करना, झूठ न बोलना, काम संबंधी व्यभिचार न करना और नशा नहीं करना। ये पांच शील आम जनों के लिए है। लेकिन भिक्षुओं के लिए पांच और शील हैं। उनके लिए दिन में कई दफा भोजन, आभूषण या कीमती चीजें धारण करना, स्वर्ण-रजत छूना, संगीत, और गद्देदार बिस्तर तक की मनाही है। इसी तरह सूक्ष्म से सूक्ष्मतम चीजों पर बौद्धों ने पर्याप्त विमर्श किया है। यह दर्शन पूरी तरह से यथार्थ में जीने की शिक्षा देता है। दलाई लामा ने कहा है- ‘हम आस्तिक हों या अनीश्वरवादी, ईश्वर को मानते हों या कर्म में विश्वास रखते हों, हममें से प्रत्येक नैतिक नीतिशास्त्र का अनुशीलन कर सकता है।’

आज पूरी दुनिया हिंसा, धर्मिक उन्माद, नस्लीय टकराव जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रही है। मानव अस्तित्व के लिए बड़े और गंभीर खतरे खड़े हो गए हैं। इंसान ने जहां विज्ञान, तकनीकी और यांत्रिकी में विकास और उसके उपयोग से अपार समृद्धि हासिल कर ली है, तो दूसरी ओर स्वार्थ, लोभ, हिंसा आदि भावनाओं के वशीभूत होकर वह आपसी कलह, लूट-खसोट, अतिक्रमण जैसे विनाशकारी मार्ग को भी अपना रहा है। अत: आज दुनिया में भौतिक संपदा के साथ-साथ मानव अस्तित्व को भी बचाना आवश्यक हो गया है। इसलिए आदमी के विनाशकारी विचारों को बदलना और उस पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। बुद्ध ने मानवीय प्रवृतियों का विश्लेषण करते हुए कहा था कि मनुष्य का मन ही सभी कर्मों का नियंता है। अत: मानव की गलत प्रवृतियों को नियंत्रित करने के लिए उसके मन में सद् विचारों का प्रवाह कर उसे सदमार्ग पर ले जाना आवश्यक है। उन्होंने यह सदमार्ग बौद्ध धम्म के रूप में दिया था।

आपसी शत्रुता के बारे में बुद्ध ने कहा था कि वैर से वैर शांत नहीं होता। यह सूत्र हमेशा से सार्थक रहा है। डॉक्टर भीमराव आंबेडकर ने भी कहा था कि हिंसा द्वारा प्राप्त की गई जीत स्थायी नहीं होती, क्योंकि उसे प्रतिहिंसा द्वारा हमेशा पलटे जाने का डर रहता है। अत: वैर को जन्म देने वाले कारकों को बुद्ध ने पहचान कर उनको दूर करने का मार्ग बहुत पहले ही प्रशस्त कर दिया था। उन्होंने मानवमात्र के दुखों को कम करने के लिए पंचशील और अष्टांगिक मार्ग के नैतिक व कल्याणकारी जीवन दर्शन का प्रतिपादन किया था।

आज भारत सहित विश्व में जो धार्मिक कट्टरवाद व टकराव दिखाई दे रहा है, वह सबके लिए बड़ी चिंता और चुनौती का विषय है। भारत में सांप्रदायिक दंगों और जातीय-जनसंहारों में जितने निर्दोष लोगों की जानें गई हैं, वे भारत द्वारा अब तक लड़ी गई सभी लड़ाइयों में मारे गए सैनिकों से कहीं अधिक हैं। अत: अगर भारत में धार्मिक-स्वतंत्रता और धर्म-निरपेक्षता के संवैधानिक अधिकार को बचाना है तो बौद्ध धर्म के धार्मिक सहिष्णुता, करुणा और मैत्री के सिद्धांतों को अपनाना जरूरी है। दुनिया में धार्मिक टकरावों का एक कारण इन धर्मों को विज्ञान द्वारा दी जा रही चुनौती भी है। ईश्वरवादी धर्मों के अनुयायियों की संख्या कम होती जा रही है क्योंकि वे विज्ञान की तर्क और परीक्षण वाली कसौटी पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं।

अत: वे अपने को बचाए रखने के लिए तरह-तरह के प्रलोभनों द्वारा, चमत्कारों का प्रचार एवं अन्य हथकंडों का इस्तेमाल करके अपने अनुयायियों को बांध कर रखना चाहते हैं। उनमें अपने धर्म की अवैज्ञानिक और अंध-विश्वासी धारणाओं को बदलने की स्वतंत्रता एवं इच्छाशक्ति का नितांत अभाव है। इसके विपरीत बौद्ध धर्म विज्ञानवादी और परिवर्तनशील होने के कारण विज्ञान के साथ चलने और जरूरत पड़ने पर अपने को बदलने में सक्षम है। इन्हीं गुणों के कारण आंबेडकर ने भविष्यवाणी की थी कि यदि भविष्य की दुनिया को धर्म की जरूरत होगी तो इसको केवल बौद्ध धर्म ही पूरा कर सकता है।

बुद्ध के पंचशील सिद्धांत आज समाज और देश-दुनिया के लिए प्रासंगिक हैं। आज विश्व में अशांति, आतंक, हिंसा, भय और युद्ध का वातावरण, असमानता, गरीबी, मानवीय मूल्यों का ह्रास, अनैतिकता ,लालच, चोरी, वैमनस्यता इत्यादि समस्याएं हैं। ऐसा नहीं कि ये सब बुद्ध के समय में नहीं थीं। लेकिन तब बुद्ध ने उन समस्याओं के समाधान के लिए कार्य किए, समाज के सामने नए सिद्धांत दिए। ऐसे में बुद्ध के विचारों को अपने आचरण में लाकर हम शांति-पूर्ण मानवता, नैतिकता और मूल्यों पर आधरित समाज की कल्पना कर सकते हैं और अहिंसा पर आधारित विश्व में शांति, सदभावना और कल्याण की कल्पना कर सकते हैं।