जयंतीलाल भंडारी
हाल ही में रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआइ) की जुलाई 2022 की बुलेटिन में आरबीआइ के तीन विशेषज्ञ विश्लेषकों द्वारा बैंकों में जमा राशि और ब्याज दर से संबंधित विषय पर विचार व्यक्त किया गया कि इस समय जिस तरह बेहतर मानसून, आर्थिक सुधारों की गतिशीलता व कारोबार से कर्ज की मांग तेजी से बढ़ रही है, उसके मद्देनजर छोटे निवेशकों को लुभाने के लिए बैंक जमा पर अधिक ब्याज दिया जाना जरूरी है।
चूंकि छोटे निवेशक महंगाई का सामना भी कर रहे हैं, इसलिए उनकी यह अपेक्षा भी है कि बैंक में जमा राशि पर कुछ अधिक ब्याज प्राप्त होने से उन्हें महंगाई की मुश्किलों से राहत मिल सकेगी। ऐसे में जिस तरह बैंक जमा पर अधिक ब्याज की उम्मीद की जा रही है, उसी तरह महंगाई की चुनौतियों के बीच छोटी बचत योजनाओं (स्माल सेविंग्स स्कीम) से मिलने वाले ब्याज से अपने जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने वाले करोड़ों लोग भी बचत योजनाओं पर ब्याज दर बढ़ने की अपेक्षा कर रहे हैं।
गौरतलब है कि जहां देश में मई 2022 में थोक महंगाई दर 15.88 फीसद और खुदरा महंगाई दर 7.04 फीसद के चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई, वहीं सरकारी बांड्स पर करीब साढ़े सात फीसद का फायदा दिखाई दिया और आरबीआइ महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अब तक 0.90 फीसद रेपो दर बढ़ा चुका है, बैंक एफडी पर करीब 0.50 फीसद से अधिक ब्याज दरें भी बढ़ाई जा चुकी हैं, ऋण महंगे हो रहे हैं।
हालांकि छोटी बचत योजनाओं पर जुलाई से सितंबर 2022 के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी नहीं की गई है, लेकिन अब फिर अपेक्षा की जा रही है कि जब तक महंगाई का दौर बना रहे, तब तक छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में कुछ वृद्धि करके राहत दी जाए।
पिछले दो वर्षों में कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों से लेकर अब तक देश में आम आदमी, नौकरीपेशा वर्ग और निम्न मध्यम वर्ग के सामने एक बड़ी चिंता उनकी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर कम रहने की है। अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और जीवन स्तर के लिए गृह, वाहन और उपभोक्ता ऋण आदि को चुकाने के लिए अधिक ब्याज और किस्तों की राशि में वृद्धि से बड़ी संख्या में लोगों की चिंता बढ़ गई है।
ऋण पर ज्यादा किस्त और ब्याज चुकाना पड़ रहा है और कर्ज के भुगतान की किस्त चूक में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय स्टेट बैंक के मुताबिक पिछले पूरे साल के मुकाबले मौजूदा वित्त वर्ष 2022-23 के अप्रैल और मई दो महीनों में 60 फीसद गृह ऋण में ‘डिफाल्ट’ देखा गया है।
पिछले दो वर्षों से छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अगर हम छोटी बचत योजनाओं पर मिलने वाली मौजूदा ब्याज दरों को देखें तो पाते हैं कि इस समय बचत खाता पर 4 फीसद, एक से तीन साल की एफडी पर 5.5 फीसद, पांच साल की एफडी पर 6.7 फीसद, वरिष्ठ नागरिक बचत योजना पर 7.4 फीसद, एमआईएस पर 6.6 फीसद, एनएससी पर 6.8 फीसद, पीपीएफ पर 7.1 फीसद, किसान विकास पत्र पर 6.9 फीसद, सुकन्या समृद्धि योजना पर 7.6 फीसद ब्याज दर देय है।
यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने वर्ष 2021-22 के लिए कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर 8.1 फीसद ब्याज दर को अनुमति दी है। यह चार दशक से अधिक समय में सबसे कम ब्याज दर है। इस फैसले का लगभग पांच करोड़ ईपीएफ सदस्यों पर असर पड़ा है।
छोटे करदाताओं और मध्यम वर्ग को उम्मीद थी कि उन्हें चालू वित्त वर्ष 2022-23 के बजट से उपयुक्त राहत मिलेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में कर का बोझ कम करने के लिए अभूतपूर्व प्रोत्साहन सुनिश्चित किए जाने की अपेक्षा के साथ यह भी माना जा रहा था कि करदाताओं को राहत देते हुए सरकार द्वारा करों में छूट की सीमा को दोगुनी कर 5 लाख तक की जाएगी।
मौजूदा समय में धारा 80सी के तहत 1.50 लाख रुपए की जो छूट मिलती है, उसे बढ़ाने की भी उम्मीद थी। मकानों की बढ़ती हुई कीमत को देखते हुए धारा 80सी के तहत 1.50 लाख की छूट पर्याप्त नहीं है। इसके तहत कर छूट की सीमा तीन लाख रुपए किए जाने की उम्मीद की जा रही थी।
वित्तमंत्री के द्वारा वरिष्ठ नागरिकों के लिए आयकर की छूट सीमा बढ़ाकर उन्हें राहत दिए जाने की अपेक्षा थी। चूंकि चालू वित्त वर्ष के बजट में छोटे करदाताओं को कोई संतोषजनक राहत नहीं मिली है। ऐसे में बचत योजनाओं पर ब्याज दर बढ़ाकर इस वर्ग को महंगाई से मुकाबले के लिए ब्याज संबंधी राहत दी जा सकती है।
दरअसल, देश में बचत की प्रवृत्ति के लाभ न केवल कम आय वर्ग के परिवारों के लिए हैं, बल्कि पूरे समाज और अर्थव्यवस्था के लिए भी हैं। हमारे देश में बचत की जरूरत इसलिए भी है कि यहां विकसित देशों की तरह सामाजिक सुरक्षा का उपयुक्त ताना-बाना नहीं है। अभी भी देश में बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक सुरक्षा की छतरी उपलब्ध नहीं है।
हालांकि देश के संगठित क्षेत्र के लिए ईपीएफ सामाजिक सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण माध्यम है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले करोड़ों लोगों के लिए विभिन्न बचत योजनाओं में ब्याज दर कम होने के कारण सामाजिक सुरक्षा एक बड़े प्रश्न के रूप में उभरकर दिखाई दे रही है।
इतना ही नहीं, बचत योजनाओं पर मिलने वाली ब्याज दरों पर देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन निर्भर होता हैं जो अपनी छोटी बचतों के जरिये जिंदगी के कई महत्त्वपूर्ण काम निपटाने की व्यवस्था सोचे हुए हैं। मसलन, बेटी की शादी, बच्चों की पढ़ाई और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन। छोटी बचत योजनाएं सेवानिवृत्त हो चुके और जमा पर मिलने वाले ब्याज पर निर्भर बुजुर्ग पीढ़ी का सहारा बनती हैं।
हालांकि देश में छोटी बचत योजनाओं में ब्याज दर की कमाई का आकर्षण घटने से वर्ष 2012-13 के बाद सकल घरेलू बचत दर (ग्रास डोमेस्टिक सेविंग रेट) लगातार घटती गई है। लेकिन अभी भी छोटी बचत योजनाएं अपनी विशेषताओं के कारण बड़ी संख्या में निम्न और मध्यम वर्गीय परिवारों के विश्वास और निवेश का माध्यम बनी हुई हैं।
गौरतलब है कि करीब चौदह वर्ष पूर्व 2008 की वैश्विक मंदी का भारत पर कम असर होने का एक प्रमुख कारण भारतीयों की संतोषप्रद घरेलू बचत की स्थिति को माना गया था। फिर 2020 में महाआपदा कोविड-19 से जंग में भारत के लोगों की घरेलू बचत विश्वसनीय हथियार के रूप में दिखाई पड़ी।
नेशनल सेविंग्स इंस्टीट्यूट (एनएसआइ) द्वारा भारत में निवेश की प्रवृत्ति से संबंधित रिपोर्ट में कहा गया है कि जहां देश के लोगों के लिए छोटी बचत योजनाएं लाभप्रद हैं, वहीं इनका बड़ा निवेश अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद है।
निश्चित रूप से इस समय आसमान छूती महंगाई की चुनौतियों का सामना कर रहे देश के आम आदमी, नौकरीपेशा एवं निम्न मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों को उनके जीवन निर्वाह में मदद करने और उन्हें आर्थिक-सामाजिक निराशा से बचाने के लिए सरकार द्वारा छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में इजाफा किए जाने की स्पष्ट आवश्यकता दिखाई दे रही है। छोटी बचत योजनाओं पर महंगाई की भयावह चुनौतियों के बीच दो वर्ष बाद ब्याज दर बढ़ाने का निर्णय देश में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा देगा। इससे बचत बढ़ेगी। बचत आधारित निवेश बढ़ेगा। सामाजिक सुरक्षा के लिए नया विश्वास पैदा होगा। कुल मिलाकर छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दर में वृद्धि आम आदमी से लेकर अर्थव्यवस्था की गतिशीलता के लिए शुभ संकेत होगी।