सुशील कुमार सिंह
उत्तराखंड में यह प्रवृत्ति कुछ अधिक व्यापक है। अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग से लेकर लोक सेवा आयोग तक इसकी जद में आ गए हैं। हैरत तो यह है कि पर्चा लीक को लेकर अभी धर-पकड़ जारी ही थी, नियम-कानून सख्त बनाने के प्रयास चल ही रहे थे कि उत्तराखंड लोक सेवा आयोग द्वारा 8 जनवरी को आयोजित पटवारी परीक्षा का पर्चा भी लीक हो गया। ऐसी घटनाओं ने प्रदेश को नए ढंग से सोचने पर विवश किया है और राज्य सरकार एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है कि निष्पक्ष परीक्षा के लिए क्या नियम और कानून हों।
गौरतलब है कि फरवरी से बोर्ड की परीक्षाएं शुरू हो रही हैं। इसी सिलसिले में एक बार फिर प्रधानमंत्री ने विद्यार्थियों से मन की बात की। एक बच्चे ने उनसे सवाल किया कि क्या परीक्षा में नकल करनी चाहिए? कुछ लोग नकल से परीक्षा पास कर जाते हैं, इससे हम कैसे बचें?
यह महत्त्वपूर्ण है कि बोर्ड परीक्षा में शामिल होने वाले विद्यार्थी नकल को लेकर प्रधानमंत्री से बेझिझक बात कर रहे हैं और शायद इस असमंजस में हैं कि बेहतर अंक पाने का यह कहीं अच्छा तरीका तो नहीं। इसमें कोई दो राय नहीं कि नकल या पर्चा लीक जैसी प्रवृत्तियां प्रतिभा को ही नष्ट कर देती हैं। मगर जिस प्रकार शिक्षा और परीक्षा के मुकाबले पूंजी खड़ी हो रही है, उसमें सिक्के की खनक को अगर महत्त्व मिलता रहा, तो प्रतिभाशाली धोखे के शिकार हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री का जवाब बहुत सारगर्भित था। उन्होंने कहा कि जो मेहनती विद्यार्थी है उसकी मेहनत उसकी जिंदगी में अवश्य रंग लाएगी। कोई नकल करके दो-चार अंक ज्यादा ले जाएगा, मगर वह कभी आपकी जिंदगी में रुकावट नहीं बन पाएगा। इसमें कोई दुविधा नहीं कि भीतर की ताकत ही आगे ले जाती है, मगर नकलविहीन व्यवस्था बनाना भी सरकार की जिम्मेदारी है। सुशासन की परिपाटी में एक सजग प्रहरी के तौर पर सरकार का नकल और पर्चा लीक रोकना अनिवार्य पहलू है। अगर शिक्षा, परीक्षा या प्रतियोगिता में नकल और पर्चा लीक को शून्य नहीं किया जाता, तो देश का विकास भी बाधित होगा।
विभिन्न प्रदेशों में आयोजित होने वाली परीक्षाओं में भी कमोबेश ऐसी घटनाएं देखने को मिलती रही हैं। हिमाचल प्रदेश कर्मचारी भर्ती चयन आयोग की परीक्षा में पर्चा लीक से लेकर हरियाणा कांस्टेबल भर्ती में आठ माह में दो बार पर्चा लीक, राजस्थान में शिक्षक पात्रता परीक्षा (रीट) परीक्षा का पर्चा लीक इसके कुछ उदाहरण भर हैं कि परीक्षाओं को सुचारू रूप से संपन्न कराने में भर्ती एजेंसियां और सरकारें बौनी सिद्ध हुई हैं।
बिहार लोक सेवा आयोग की सड़सठवीं प्रारंभिक परीक्षा पर्चा लीक होने के चलते स्थगित करनी पड़ी थी। इस प्रतियोगिता में छह लाख प्रतियोगियों ने आवेदन किया था और परीक्षा शुरू होने से ठीक पहले पर्चा सोशल मीडिया पर प्रसारित हो गया। बिहार लोक सेवा आयोग और सरकार की बड़ी किरकिरी हुई और प्रतियोगी छात्रों ने जमकर हंगामा किया। इससे पहले अलग-अलग रूपों में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, झारखंड, हरियाणा और राजस्थान में पर्चा लीक के मामले हो चुके हैं।
बिहार में ही अग्निशमन सेवा 2021 और सिपाही भर्ती की परीक्षा में पर्चा लीक हुआ। पिछले साल उत्तर प्रदेश में बारहवीं बोर्ड में अंग्रेजी का पर्चा लीक होने के कारण प्रदेश के चौबीस जिलों में परीक्षा स्थगित कर दी गई थी। यूपीटीईटी परीक्षा 2021 का पर्चा लीक हुआ। हरियाणा में यूजीसी-नेट परीक्षा का पेपर लीक हुआ और गुजरात में हेड क्लर्क परीक्षा और दसवीं का हिंदी का पर्चा बाहर आ गया था।
उत्तराखंड में भर्ती परीक्षाओं की गड़बड़ी, मसलन स्रातक स्तरीय भर्ती, वन दरोगा भर्ती, सचिवालय रक्षक भर्ती समेत कई प्रतियोगी परीक्षाओं में जो गड़बड़ियां मिलीं, उससे सरकार की काफी किरकिरी हुई है। परीक्षा से पहले पर्चा बाहर आ जाना परीक्षा प्रणाली पर गहरे सवाल खड़े करता है। ऐसे माफिया से परीक्षा को सुरक्षित कैसे किया जाए, यह भर्ती एजंसियों और सरकार दोनों के लिए बड़ी चुनौती है।
इसे रोकने को लेकर राज्य सरकारें अपने ढंग से कानूनी कसरत में लगी रही हैं। इस मामले में पुलिस धारा 120बी, 420 और 468 के तहत मुकदमा दर्ज करती है, जिसमें क्रमश: गंभीर अपराध, धोखाधड़ी से संपत्ति के वितरण और दस्तावेजों के गलत इस्तेमाल शामिल हैं। अधिकतम सात वर्ष तक की जेल और जुर्माना संभव है। कई राज्यों ने तो संपत्ति जब्त करने जैसे उपाय भी इस्तेमाल किए हैं। राजस्थान सरकार ने नकल रोकने के लिए एक विधेयक पेश किया है, जिसमें दस करोड़ का जुर्माना और दस साल की सजा शामिल है। उत्तराखंड सरकार भी पर्चा लीक के खिलाफ सख्त कानून लाने में लगी हुई है।
मौजूदा हालात ऐसे हैं कि पर्चा लीक से लेकर नकल रोकने तक के जितने भी जोड़-जुगाड़ किए जा रहे हैं, उतनी ही कठिनाइयां भी बनी हुई हैं। भारत का शायद ही कोई कोना खाली हो, जहां नकल या पर्चा लीक की गुंजाइश न हो। सवाल है कि परीक्षा से पहले ही पर्चा बाहर कैसे हो जा रहे हैं? इसके पीछे माफिया का गिरोह काम कर रहा है और उनकी करोड़ों की कमाई हो रही है। छोटी-छोटी प्रतियोगी परीक्षाओं का पर्चा दस से बीस लाख तक बिकना यह साबित करता है कि पर्चा लीक माफिया की सांठगांठ आर्थिक तौर पर कितनी सशक्त है।
एक ओर बढ़ती बेरोजगारी, तो दूसरी ओर खाली पद भरने की विज्ञप्तियों का बरसों-बरस इंतजार के बाद निकलना युवाओं की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है, तो दूसरी ओर पर्चा लीक उन्हें विफलता की पंक्ति में खड़े होने के लिए मजबूर कर रहा है। इसलिए इस पर चिंतन आवश्यक है कि पर्चा बाहर करने वाले यह बल कहां से प्राप्त कर रहे हैं। उत्तराखंड लोक सेवा आयोग में तो अंदर के ही कर्मचारी ने यह कृत्य किया। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भर्ती संस्थानों में काम कर रहे कर्मचारियों की मिलीभगत माफिया को ऐसा करने का मौका दे रही है। कुछ मामलों में तो पर्चा छापने वाले प्रेस की भी मिलीभगत देखी गई है।
पर्चा बाहर कर लाखों रुपए में बेचना कोई आसान काम नहीं है। यह एक ऐसा अपराध है जिसे करने की हिम्मत कुछ लोगों में ही है। इन्हें न तो कानून का डर है, न सामाजिक ताना-बाना बिगड़ने का भय। उन्हें बस रातों-रात करोड़पति बनने की चाहत है। हालांकि देश में फैला कोचिंग संस्थानों का संजाल भी ऐसे क्रियाकलापों से मुक्त नहीं है। देश का नुकसान करने में तो कई दो-चार कदम आगे ही हैं। फिलहाल नकल और पर्चा लीक की घटनाओं ने स्वस्थ परीक्षा प्रणाली के सामने कठिनाई पैदा कर दी है। पर्चा लीक माफिया पर लगाम कसने का जोड़-जुगाड़, कानून और नियमों को न केवल बनाने, बल्कि उसको सुचारू ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी सरकार और भर्ती एजेंसियों की है। ताकि स्वस्थ परीक्षा प्रणाली को कायम और युवाओं के साथ हो रही नाइंसाफी को रोका जा सके।