जयंतीलाल भंडारी

आज के बाजारवादी युग में उपभोक्ता संरक्षण बड़ी जरूरत के रूप में सामने आ चुका है। जिस तेजी से आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं और अर्थव्यवस्थाएं बाजारोन्मुख हो चुकी हैं, उसमें उपभोक्ता ही सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण घटक है। बिना उपभोक्ता के बाजार की कल्पना संभव ही नहीं है। ऐसे में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा भी सरकारों की बड़ी जिम्मेदारी हैं, खासतौर वैश्विक बाजार जब डिजिटल रूप में तब्दील हो चुका हो। पिछले एक साल में कोरोना महामारी के बीच ई-कॉमर्स का चलन तेजी से बढ़ा है। भारत में भी आॅनलाइन बाजारों और कंपनियों की भरमार देखने को मिल रही है और कई बड़ी कंपनियां इनमें स्थापित भी हो चुकी हैं।

भारत ही नहीं दुनिया के सभी देशों में जैसे-जैसे ई-कॉमर्स और डिजिटल लेन-देन बढ़े हैं, वैसे-वैसे उपभोक्ताओं को बढ़ती हुई डिजिटल धोखाधड़ी और बढ़ते हुए साइबर अपराधों का सामना करना पड़ रहा है। दूसरी ओर परंपरागत बाजारों में भी उपभोक्ताओं के साथ तरह-तरह की धोखाधड़ी के मामलों में कमी देखने को नहीं मिल रही है। यह चुनौती ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में कहीं ज्यादा है।

जिस उपभोक्ता को बाजार की आत्मा कहा जाता है, उसे अभी भी बाजार में तरह-तरह की धोखाधड़ी का सामना करना पड़ता है। आम उपभोक्ता खाद्य सामग्री में मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम, कम नाप-तौल जैसी समस्मयाओं से आए दिन रूबरू होते हैं। इतना ही नहीं, बड़ी मात्रा में हरी सब्जियां बाजारों में रंगी जाती हैं, दूध और तेल में मिलावट का धंधा किसी से छिपा नहीं है। मिठाइयों और मावे में भी मिलावट की घटनाएं देखने को मिलती रहती हैं। जाहिर है, उपभोक्ताओं की जेब ही नहीं कट रही, बल्कि उनके स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ हो रहा है। ऐसे में देश के कोने-कोने में उपभोक्ता संरक्षण संबंधी विभिन्न चुनौतियां बढ़ गई हैं।

हालांकि हर साल चौबीस दिसंबर को देश में राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। इस दिन 1986 में राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण कानून लागू किया गया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 को उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करने वाले और उपभोक्ताओं को न्यायिक अधिकारों के माध्यम से मुआवजा सुनिश्चित करने वाले सशक्त कानून के रूप में रेखांकित किया गया है।

इस कानून ने भारत में उपभोक्ता आंदोलन को एक आंदोलन का रूप दे दिया है। इस कानून के तहत उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के मद्देनजर निमार्ताओं, सेवा प्रदाताओं और सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी कार्यकलापों को सम्मिलित किया गया। साथ ही उपभोक्ता संरक्षण में व्यापारियों और उत्पादकों द्वारा उपभोक्ता विरोधी व्यवहारों के खिलाफ आश्वासन भी शामिल किए गए हैं, जिनसे उपभोक्ताओं को ठगी से बचाया जा सके और उनकी शिकायतों का त्वरित निपटान किया जा सके।

लेकिन उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 लागू होने के बाद भी स्थिति यह है कि देश के उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई है। पिछले एक-डेढ़ दशक में लगातार यह महसूस किया गया कि वैश्वीकरण और ई कॉमर्स के दौर में भारत में उपभोक्ता अधिकारों के संरक्षण के लिए एक नए और व्यापक कानून होने चाहिए। इसी परिप्रेक्ष्य में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 को निरस्त करके 9 अगस्त, 2019 को नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 प्रतिस्थापित किया गया और इसे पिछले साल 20 जुलाई को लागू किया गया था।

इस समय कोविड-19 के बीच देश में उपभोक्ता बाजार के बदलते स्वरूप, ई-कॉमर्स और डिजिटलीकरण के नए दौर में नए उपभोक्ता संरक्षण कानून का कारगर साबित हो सकता है। यदि हम नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की तस्वीर देखें तो पाते हैं कि इसके तहत उपभोक्ताओं के हितों से जुड़े विभिन्न प्रावधानों को प्रभावी बनाने के लिए कई नियमों को प्रभावी किया गया है।

इनमें उपभोक्ता संरक्षण (सामान्य) नियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) नियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (मध्यस्थता) नियम 2020, उपभोक्ता संरक्षण (केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद) नियम 2020 और उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम 2020 आदि शामिल हैं। जाहिर है, नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम न केवल पिछले 1986 के अधिनियम की तुलना में अधिक व्यापक है, बल्कि इसमें उपभोक्ता अधिकारों का बेहतर संरक्षण भी किया गया है।

नए उपभोक्ता अधिनियम के तहत केंद्रीय स्तर पर एक केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) का गठन भी 24 जुलाई, 2020 को किया गया। इसके तहत उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा के लिए सीसीपीए को शिकायतों की जांच करने, असुरक्षित वस्तुओं व सेवाओं को वापस लेने के आदेश देने, अनुचित व्यापार व्यवस्थाओं और भ्रामक विज्ञापनों को रोकने के आदेश देने और भ्रामक विज्ञापनों के प्रकाशकों पर जुर्माना लगाने के अधिकार प्रदान किए गए हैं। पहली बार उपभोक्ता संरक्षण कानून के दायरे में ई-कॉमर्स, आॅनलाइन, प्रत्यक्ष बिक्री और टेलीशॉपिंग कंपनियों को भी इसके दायरे में लाया गया है।

महत्त्वपूर्ण खास बात यह है कि नए उपभोक्ता कानून से जहां अब एक करोड़ रुपए तक के मामले जिला विवाद निवारण आयोग में दर्ज कराए जा सकेंगे, वहीं एक करोड़ रुपए से अधिक लेकिन दस करोड़ रुपए तक राशि के उपभोक्ता विवाद राज्यस्तरीय आयोग में दर्ज कराए जा सकेंगे। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में दस करोड़ रुपए से अधिक मूल्य वाले उपभोक्ता विवादों की सुनवाई होगी।

यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि नए अधिनियम में जिला आयोग के निर्णय की अपील राज्य आयोग में करने की समयावधि को तीस दिन से बढ़ा कर पैंतालीस दिन किया गया है। इसी तरह किसी उत्पादक और विक्रेता के विरुद्ध शिकायत अभी तक उसके क्षेत्र में ही दर्ज कराई जा सकती थी। लेकिन अब नए अधिनियम के तहत उपभोक्ता के आवास एवं कार्यक्षेत्र से भी शिकायत दर्ज कराई जा सकेगी।

नए उपभोक्ता कानून के तहत दावा अब उपभोक्ता अदालत में ही किया जा सकेगा। मध्यस्थता के जरिए मामलों के निपटान का प्रावधान भी इस कानून में किया गया है। भ्रामक विज्ञापनों के मामलों में सजा के कड़े प्रावधान नए कानून में हैं। ऐसे विज्ञापनों के मामले में विज्ञापन करने वाली हस्तियों को भी जवाबदेह माना गया है और उन पर भी जुर्माना लगाया जा सकेगा। जाहिर है, नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भारत के बढ़ते हुए विविधतापूर्ण उपभोक्ता बाजार के लिए कारगर साबित होगा।

देश के करोड़ों उपभोक्ता रिश्वतखोरी के चिंताजनक परिदृश्य के बीच उपभोक्ता संतुष्टि से बहुत दूर दिखाई देते हैं। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार पर अपनी रिपोर्ट- एशिया सर्वे में बताया है कि एशिया में सर्वाधिक रिश्वतखोरी भारत में है। यह सर्वे पिछले साल जुलाई से सितंबर के बीच छह सरकारी सेवाओं- पुलिस, अदालत, सरकारी अस्पताल, पहचान पत्र लेने की प्रक्रिया और बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए रिश्वत दिए जाने संबंधी प्रश्नों के जवाब पर आधारित है।

भारत में उनतालीस फीसद लोगों ने कहा कि उन्हें सरकारी सुविधाओं की इस्तेमाल करने के लिए रिश्वत देनी पड़ी। देश में व्याप्त रिश्वतखोरी को लेकर सैंतालीस फीसद भारतीयों की आम राय है कि बीते एक वर्ष में देश में रिश्वतखोरी बढ़ी है। इससे स्पष्ट होता है कि रिश्वतखोरी उपभोक्ताओं की संतुष्टि के मामले में बड़ी बाधा बनी हुई है। निश्चित रूप से रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार केवल कुछ रुपयों की बात नहीं होती है, बल्कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान देश का गरीब और ईमानदार उपभोक्ता उठाता है।

देश की व्यवस्था पर उपभोक्ताओं का जो भरोसा होता है, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार उस भरोसे पर हमला करते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि सरकार ने भ्रष्टाचार को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, लेकिन उस अनुपात में सफलता कम मिल पाई है। उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तभी संभव है जब घूसखोरी और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए और सख्त कानून बनें और उन पर अमल में सख्ती हो।