सिद्धायनी जैन

कृत्रिम मेधा मनुष्य जाति के लिए एक बेहतर उपलब्धि हो सकती है, बशर्ते इसका उपयोग मनुष्यता के कल्याण के लिए और मनुष्य के नियंत्रण में हो।प्रकृति के अनेक अनसुलझे रहस्यों को मनुष्य ने अपनी बुद्धिमता के दम पर सुलझाया है, लेकिन उसके द्वारा विकसित कृत्रिम बुद्धिमता ही अब उसके भविष्य के लिए बड़ी चुनौती मानी जा रही है। महत्त्वपूर्ण है कि आधुनिक कृत्रिम मेधा के प्रणेता जेफ्री एवरेस्ट हिंटन तक ने न केवल अपनी ही बनाई एआइ तकनीक को मानवता के लिए खतरनाक बताया है, बल्कि इस तकनीक के विकास के लिए क्षमा मांगते हुए गूगल की नौकरी भी छोड़ दी है।

जेफ्री हिंटन ने सन 1970 में प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में स्नातक करने के बाद सन 1978 में कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस विषय में डाक्टरेट की थी। मनोविज्ञान और तकनीक दोनों के विद्यार्थी होने के कारण वे इस बात को बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं कि अगर कोई भी मशीनी तकनीक मानव नियंत्रण के परे चली गई, तो वह सृष्टि और मनुष्यता का कितना नुकसान कर सकती है।

जेफ्री हिंटन हमारे दौर के अकेले वैज्ञानिक नहीं हैं, जिन्होंने तकनीक के अनियंत्रित होने के खतरों की ओर ध्यान आकर्षित किया और जिम्मेदार लोगों का आह्वान किया है कि वे इस खतरे के प्रति सजग रहें। स्टीफन हाकिंग्स ने भी कृत्रिम मेधा के मोह के खतरों के प्रति वैज्ञानिकों को सचेत करते हुए कहा था कि मशीनों को बुद्धि देना मानव इतिहास की सबसे बुरी घटना साबित हो सकती है।

पिछले दिनों एक कृत्रिम मेधा तकनीक द्वारा लगातार झूठी खबरों को प्रसारित करना बताता है कि जिस तकनीक को हम मनुष्य की बुद्धिमता के विकल्प के तौर पर आजमाना चाहते हैं, वह अगर मनमर्जी पर उतर आई तो कैसे-कैसे गुल खिला सकती है। उस ‘टूल’ द्वारा कई लोगों की मृत्यु की झूठी खबर इंटरनेट माध्यमों पर प्रसारित की गई। इन खबरों में अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन की मृत्यु की झूठी खबर भी शामिल थी।

महात्मा गांधी उन क्षेत्रों में तकनीक के उपयोग के विरोधी थे, जहां वे मानव श्रम के उपयोग की संभावनाओं के लिए खतरा बन जाएं। कृत्रिम मेधा का आधुनिक स्वरूप आने वाले समय में लाखों लोगों के रोजगार छीन सकता है। तब जबकि जनसंख्या और बेरोजगारी- दोनों में इजाफा हो रहा है, यह प्रवृत्ति सामाजिक ढांचे के लिए एक नई चुनौती बन सकती है।

वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया में गुणवत्ता नियंत्रण, उत्पादन, उत्पादों के लदान जैसे काम अगर रोबोट करने लगें, तो मानव श्रम की उपयोगिता समाप्त हो सकती है। लेखन, संपादन, अनुवाद, शिक्षा, चिकित्सा जैसे कितने ही क्षेत्र हैं, जहां कृत्रिम मेधा मनुष्य के लिए खतरा बन रही है। कहते हैं कि कृत्रिम मेधा तकनीक अपनी मशीनों या कंप्यूटर की प्रोग्रामिंग के हिसाब से ही काम कर सकेगी। लेकिन मूर का एक सिद्धांत है कि मशीनें खुद में ही कई गुना सुधार की सामर्थ्य रखती हैं। कंप्यूटर तकनीक ने इस बात को साबित भी किया है।

कृत्रिम मेधा तकनीक के पक्षधरों का कहना है कि मशीनें केवल वही काम करेंगी, जिनके लिए उन्हें प्रोग्राम किया गया है, जबकि मानवीय बुद्धिमता का आकाश अनंत है। लेखन, खेल, कला जैसे क्षेत्रों में, जहां कल्पना और विचारशीलता नए आयाम लेती है, मशीन शायद मनुष्य का मुकाबला न कर सके। मगर 10 फरवरी, 1996 की उस घटना को याद कीजिए जब एक कंप्यूटर ने महान शतरंज खिलाड़ी गेरी कास्पोरोव को हरा दिया था।

ऐसा नहीं कि कृत्रिम मेधा मनुष्य के लिए एकदम नया अनुभव है। चालक रहित कारों का प्रयोग, गूगल असिस्टेंट, एलेक्सा या सिरी का उपयोग, कंप्यूटर के माध्यम से विविध आंकड़ों का विश्लेषण या वर्गीकरण जैसी चीजें लोग लंबे समय से कर रहे हैं। हो सकता है कि भविष्य में हमारे हाथ की घड़ियों में ऐसी तकनीक शामिल हो जाए, जो हमारी कलाई की फड़कन को पढ़कर ही भविष्य में हो सकने वाले रोगों के प्रति हमें सचेत कर दे।

हमारे कदम, हमारी हृदय गति और हमारा रक्तचाप पढ़ने वाले कलाई-बंध तो पहले ही बाजार में आ चुके हैं। अब तो कुछ ऐप्स का उपयोग करके मोबाइल के माध्यम से भी हम बहुत सारी शारीरिक गतिविधियों का स्वास्थ्य की दृष्टि से मापन कर सकते हैं।

दरअसल, मोबाइल फोन पर ही सबसे ज्यादा कृत्रिम मेधा का नियंत्रण देखा जाता है। आप किसी विषय की एक या दो वीडियो देखते हैं और अचानक आपके मोबाइल पर उसी विषय के वीडियो और उनसे संबंधित विज्ञापन आने लगते हैं। आपके शहर से संबंधित विज्ञापन आपके परदे पर आकर आपका मन लुभाने की कोशिश करते हैं।

यह उस तकनीक के कारण होता है, जिसे अल्गोरिदम कहते हैं और जो कृत्रिम मेधा तकनीक का एक महत्त्वपूर्ण उपादान है। अल्गोरिदम के माध्यम से कृत्रिम मेधा आपकी रुचि और आपकी जरूरतों को पकड़ने की कोशिश करती है और इस आधार पर बाजारवादी शक्तियां आपकी सामर्थ्य का अपने हित में उपयोग करने का प्रयास करती हैं। सोशल मीडिया मंच द्वारा अपने उपयोगकर्ताओं का डेटा किसी को बेचने के मूल में यही लालच और यही तकनीक है।

कृत्रिम मेधा का इतिहास करीब सत्तर वर्ष पुराना है। अमेरिका के कंप्यूटर विज्ञानी जान मैकार्थी ने सबसे पहले सन 1956 में कृत्रिम मेधा की संकल्पना प्रस्तुत करते हुए उसकी संभावनाओं पर चर्चा की थी। उनका मानना था कि कृत्रिम मेधा कंप्यूटर विज्ञान का ही एक अंग होगा और इसका बुनियादी उद्देश्य ऐसे उपकरण बनाना होगा, जो बुद्धिमता पूर्वक किसी मानव नियंत्रण के बिना अपना काम कर सके।

कृत्रिम मेधा पर काम तो 1950 के दशक में ही शुरू हो चुका था, लेकिन इसको पहचान 1970 के दशक में मिलने लगी। इस मामले में जापान ने बाकायदा ‘फिफ्थ जनरेशन’ (पांचवीं पीढ़ी) नामक एक परियोजना शुरू की थी, जिसमें सुपर कंप्यूटर के विकास के लिए दस वर्षीय कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई थी। जापान के बाद ब्रिटेन ने ‘एल्वी’, यूरोपीय संघ ने ‘एस्प्रिट’ जैसी योजनाएं शुरू कीं और कृत्रिम मेधा पर नए-नए शोधकार्य दुनिया भर में शुरू हो गए।

ऐसा नहीं कि कृत्रिम मेधा की महत्ता को पूरी तरह नकार दिया जाना चाहिए। अगर इसकी मदद से गंभीर रोगों का निदान सहजता से होता है, कृत्रिम मेधा वाले उपकरण वंचित वर्ग के लिए सहज सुलभ और सस्ता उपचार संभव बना सकते हैं, गंभीर बीमारियों की संभावना को पहले ही पहचाना जा सकता है, उपेक्षित समाज को सस्ती, श्रेष्ठ और सार्थक शिक्षा दे सकते हैं, मौसम का सटीक अनुमान लगा सकते हैं, सुरक्षा संदर्भों में हमारी मदद करते हैं, तो यह वरेण्य है।

मगर अगर इनसे लोगों में रोजगार के प्रति चिंता बढ़ती है, तो हमें सजग रहना होगा। भारत जैसे देशों में, जहां जनशक्ति बड़ी संख्या में मौजूद है, लोगों को काम के अवसरों की अपनी महत्ता है। हालांकि औद्योगीकरण के समय भी ऐसे ही खतरों को रेखांकित किया गया था, लेकिन समय ने साबित किया कि जीवन उस नदी की तरह है, जो विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी श्रेष्ठता और सार्थकता का प्रवाह बनाए रख सकता है।

हां, किसी भी परिस्थिति में मशीन को मनुष्य के नियंत्रण से मुक्त किया जाना मानवता के हित में नहीं होगा, क्योंकि वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, लेखकों, चिंतकों ने नियंत्रणमुक्त मशीनों के खतरों को बार-बार समझाया है। दिल के साथ दिमाग का संतुलित और संयमित उपयोग मनुष्य को शेष प्राणियों में श्रेष्ठ बनाता है। कृत्रिम मेधा मनुष्य जाति के लिए एक बेहतर उपलब्धि हो सकती है, बशर्ते इसका उपयोग मनुष्यता के कल्याण के लिए और मनुष्य के नियंत्रण में हो।