सवाल है कि अगर सकल घरेलू उत्पाद खुशी को मापने का पैमाना है, तो उस पर भी कैसे सवा सौ देश भारत से बेहतर हो सकते हैं? अगर भ्रष्टाचार में कमी या उसकी गैरमौजूदगी खुश होने का आधार है, तो अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश कैसे भारत से बेहतर हैं? असल में जिन छह पैमानों पर खुशी को मापा गया है, वे अपने आप में अधूरे हैं।
हाल ही में ‘यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट सल्यूशन नेटवर्क’ ने विश्व खुशहाली रिपोर्ट 2023 जारी की। यह रिपोर्ट डेढ़ सौ से अधिक देशों के सर्वेक्षण के आधार पर जारी की जाती है। इस वर्ष रिपोर्ट में एक सौ छत्तीस देशों को शामिल किया गया। इसमें खुशहाली को मापने के लिए छह प्रमुख कारकों का उपयोग किया जाता है- सामाजिक सहयोग, आय, स्वास्थ्य, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की स्थिति।
एक बार फिर ‘वैश्विक खुशहाली सूचकांक’ में फिनलैंड सर्वोच्च स्थान पाने में कामयाब रहा। इसे लगातार छठवीं बार सर्वोच्च स्थान मिला है। डेनमार्क दूसरे और तीसरे स्थान पर आइसलैंड है। पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी शीर्ष बीस देशों के आंकड़ों में कुछ विशेष परिवर्तन नहीं हुए हैं। एक छोटा-सा परिवर्तन यह है कि लिथुआनिया ने बीसवें स्थान पर पहुंच कर शीर्ष बीस में अपनी जगह बना ली है।
वहीं भारत एक सौ छत्तीस देशों की सूची में एक सौ पच्चीसवें स्थान पर है। जबकि इस सूची में पिछले साल एक सौ छियालीस देश शामिल थे, तब भारत को एक सौ पैंतीसवें स्थान पर रखा गया था। पिछली बार के मुकाबले भारत की ‘रैंकिंग’ में सुधार जरूर हुआ है, लेकिन सूची में उसका नाम नेपाल, चीन और बांग्लादेश जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी नीचे है। यहां तक कि जंग लड़ रहे रूस और यूक्रेन भी इस सूची में भारत से आगे हैं।
रूस सत्तरवें और यूक्रेन बानबेवें पायदान पर है। इस मामले में अफगानिस्तान सबसे निचले पायदान पर है या कहें कि रिपोर्ट के मुताबिक, यह सबसे ज्यादा दुखी देश है। इसके अलावा पायदान में नीचे रहने वाले देशों में लेबनान, जिम्बाब्वे, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक आफ कांगो जैसे देश हैं। शीर्ष बीस देशों की सूची में एशिया का एक भी देश शामिल नहीं है।
खुशहाली सूचकांक में किसी देश की स्थिति जानने के लिए उसकी जीडीपी, वहां जीवन की गुणवत्ता और जीवन प्रत्याशा को देखा जाता है। जाहिर है, इस रिपोर्ट में वही मानक रखे गए हैं, जिन्हें लोगों को एक सामान्य जीवन जीने के लिए न्यूनतम माना गया है, पर अफसोस कि भारत इन पर खरा नहीं उतर पाया और हमारे पड़ोसी देश, जो खुद ही अपनी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक मुश्किलों और बदहाली से जूझ रहे हैं, वे खुशहाली के मामले में भारत से आगे निकल गए। सवाल है कि हम प्रसन्न समाजों की सूची में क्यों नहीं अव्वल आ पा रहे हैं। इस पर आत्ममंथन की जरूरत है।
खुशहाली सूचकांक के लिए अर्थशास्त्रियों और विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक टीम व्यापक स्तर पर शोध करती है। यह टीम समाज में सुशासन, प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य, जीवित रहने की उम्र, भरोसा, सामाजिक सहयोग, परोपकार, दान भावना, स्वतंत्रता और उदारता आदि को आधार बनाती है। रिपोर्ट का मकसद विभिन्न देशों के शासकों को आईना दिखाना है कि उनकी नीतियां लोगों की जिंदगी खुशहाल बनाने में कोई भूमिका निभा रही हैं या नहीं?
खैर, दुनिया में खुशहाली मापने की यह रिपोर्ट कुछ संदेह पैदा करती है। पिछले साल भारत से ऊपर जिन देशों को रखा गया था, उनमें कई देश राजनीतिक और आर्थिक संकटों से जूझ रहे थे। जैसे, मैक्सिको को छियालीसवां स्थान दिया गया था। दुनिया जानती है कि यह देश सालों से आंतरिक मादक पदार्थ के युद्ध में फंसा हुआ है। वहां इतनी गरीबी है कि उसके नागरिक बेहतर जिंदगी की तलाश में अमेरिका में अवैध घुसपैठ करते हैं। इसलिए अमेरिका को मैक्सिको के साथ लगने वाली अपनी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर दीवार खड़ी करनी पड़ गई थी।
ऐसे ही, पिछले साल चीन को बहत्तरवां स्थान दिया गया था। क्या यूरोप और अमेरिका इस बात से अनजान हैं कि उनके देशों की बड़ी से बड़ी तकनीकी कंपनियां चीन में व्यापार नहीं कर सकतीं? वहां बीते सात दशक से लोकतंत्र नहीं है और एक ही पार्टी की सरकार है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने हांगकांग, तिब्बत, ताइवान, और मंगोलिया में जातीय जनसंहार किए हैं। जिन पर अमेरिका और यूरोप के तमाम विश्वविद्यालयों के शोध उपलब्ध हैं। यही नहीं, कोरोना से पूरी दुनिया में मौतों का अकेला जिम्मेदार चीन था और आज भी वह इस महामारी से उबर नहीं सका है।
पिछले साल की रिपोर्ट में गृहयुद्ध और आतंकवाद से ग्रस्त लीबिया को छियासीवां, कैमरून को 102वां, नाइजर को 104वां, नाइजीरिया को 118वां, माली को 123वां, चाड को 130वां, इथोपिया को 131वां और यमन को 132वां स्थान दिया गया था। जबकि पाकिस्तान और श्रीलंका अपने दौर के सबसे बड़े वित्तीय संकट से गुजर रहे हैं और उन्हें क्रमश 121वां और 127वां स्थान दिया गया था।
इस साल भी यही सब देश भारत से आगे हैं। सबसे आश्चर्यजनक तो यूक्रेन का स्थान है। पिछली बार जब वह रूस के खिलाफ युद्ध लड़ रहा था, तब उसे अट्ठानबेवां स्थान दिया गया था। आज भी वह जंग लड़ और दुनिया से मदद मांग रहा है। फिर भी यूक्रेन की खुशहाली पहले से बढ़ गई है। इस बार की रिपोर्ट में यूक्रेन को बानबेवें पायदान पर रखा गया है। क्या इससे बड़ा कोई पाखंड हो सकता है?
हालांकि देखा जाए तो इन देशों की जगह भी कोई खास अच्छी नहीं है, लेकिन विषम हालात के बावजूद भारत से अच्छी है। जबकि भारत में न तो कोई आर्थिक संकट है, न यह युद्ध से ग्रस्त है और न ही यहां राजनीतिक अस्थिरता है। कोरोना महामारी से निपटने में भी हमारी सरकारों की सकारात्मक भूमिका रही है।
सवाल है कि अगर सकल घरेलू उत्पाद खुशी को मापने का पैमाना है, तो उस पर भी कैसे सवा सौ देश भारत से बेहतर हो सकते हैं? अगर भ्रष्टाचार में कमी या उसकी गैरमौजूदगी खुश होने का आधार है, तो अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश कैसे भारत से बेहतर हैं? असल में जिन छह पैमानों पर खुशी को मापा गया है, वे अपने आप में अधूरे हैं। यह रिपोर्ट एक राजनीतिक एजेंडे से ज्यादा कुछ और नहीं नजर आती।
यह माना जा सकता है कि भारत में खुशहाली को बढ़ावा देने में यहां की जनसंख्या सबसे बड़ी बाधा है। भारत में कई तरह का भारत है। एक अमीर और खुशहाल भारत है, तो उसमें एक गरीब भारत भी है। गरीब भारत भी विकास कर रहा है, लेकिन आबादी इतनी ज्यादा है कि अभी देश को समग्रता में खुशहाल देशों में अव्वल स्थान बनाने में वक्त लगेगा।
सबसे खुशहाल देश फिनलैंड की आबादी महज पचपन लाख है, उसके लिए विकास आसान है। भारत के मुंबई, दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों में इससे कहीं ज्यादा लोग रहते हैं। खुश देशों की सूची में दूसरे स्थान पर रहे डेनमार्क में 58.6 लाख लोग रहते हैं, तीसरे स्थान के देश आइसलैंड में तो महज 3.73 लाख लोग होते हैं। ऐसे में इन देशों से भारत की तुलना नहीं की जा सकती है।
देश में पिछले नौ वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा लोगों के जीवन में बदलाव लाने के लिए कई योजनाएं क्रियान्वित की गई हैं, जिनका लाभ लोगों को मिल रहा है। भारत की गिनती इस समय विश्व के सबसे युवा देश में हो रही है। फिर भी ‘वैश्विक खुशहाली सूचकांक’ में भारत को कमतर आंकना सवाल खड़े करता है। निश्चित ही वैश्विक स्तर पर खुशहाली का यह सूचकांक देश के बहुआयामी विकास का एक आईना है। देश के समावेशी विकास को अगर यह आईना झुठलाता है तो इस विषय पर गंभीर चिंतन-मनन की आवश्यकता है।