अमरनाथ सिंह

भविष्य में गंगा नदी के उद्गम स्थल को लेकर विवाद बढ़ने की संभावना है। चीन काफी पहले ही कैलाश मानसरोवर को गंगा का उद्गम बता चुका है। हाल ही में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती भी गंगा के उद्गम को लेकर शोध करने की आवश्यकता मान चुकी हैं। पर भारतीय धर्माचार्य न चीन और न उमा भारती की इस टिप्पणी से इत्तिफाक रखते हैं। भारतीय जन उत्तराखंड के गोमुख को ही गंगा का उद्गम स्थल मानते हैं। लेकिन गंगा के उद्गम को लेकर उपजे इस नए विवाद से गंगा पर आस्था रखने वाले करोड़ों लोगों के मन में तरह-तरह की भ्रातियां पैदा हो रही हैं। क्योंकि अनुसंधान के लिए मानसरोवर झील से जल संग्रह का कार्य मानसरोवर यात्रा के समय ही संभव हो पाएगा।

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की इस टिप्पणी ने न केवल विज्ञान की दुनिया को, बल्कि धर्म-कर्म में आस्था रखने वाले लोगों को भी बेचैन कर दिया है। दरअसल, उमा भारती ने किसी इतिहासकार का हवाला देते हुए कहा है कि गंगा का उद्गम कैलाश मानसरोवर है। वर्ष 1965 में चीन ने भी यह दावा किया था कि भारत की महत्त्वपूर्ण नदी गंगा का उद्गम स्थल ब्रह्मपुत्र की तरह चीन में ही है। हालांकि उस दौरान चीन ने गंगा के उद्गम स्थल को लेकर कोई वैज्ञानिक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया। मौजूदा समय में केंद्रीय मंत्री उमा भारती के इस बयान के बाद वैज्ञानिक बिरादरी भी भौंचक है। लेकिन केंद्रीय मंत्री मतलब भारत सरकार का यह फरमान है। इसलिए उत्तराखंड के रुड़की स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिक गंगा के उद्गम स्थल को ढ़ूढ़ने में पूरी ताकत झोंके हुए हैं। देश के इस इकलौते जल-विज्ञान (हाइड्रोलॉजी) संस्थान के वैज्ञानिक ऋग्वेद, उपनिषद और शिव पुराण में गंगा के उद्भव को लेकर माथापच्ची भी कर रहे हैं।

हिंदुओं के लिए गंगा सबसे पवित्र नदी है। इसके किनारे करोड़ों लोग रहते हैं और यह उनके लिएजीवन रेखा के समान है। वे पेयजल और सिंचाई से लेकर परिवहन तक इस पर निर्भर रहे हैं। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार राजा भगीरथ के कठोर तप और आग्रह से वशीभूत भगीरथ के पूर्वजों और राजा सगर के छह हजार पुत्रों का उद्धार करने के लिए गंगा को धरती पर आना पड़ा। गंगा के प्रबल वेग की वजह से देवाधिदेव महादेव की हिमाच्छादित पर्वत श्रेणियों रूपी जटाओं में गंगा को भारत की धरती पर उतरना पड़ा। धार्मिक ही नहीं, ऐतिहासिक रूप से भी गंगा का काफी महत्त्व रहा है। पाटलिपुत्र, कन्नौज, काशी, भागलपुर, मुर्शिदाबाद जैसे अनेक राज्य और साम्राज्य इसी के किनारे बने और पनपे। यह विडंबना ही है कि इतनी पवित्र मानी जाने वाली इस नदी की गिनती आज दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में होती है।

वेद-पुराण में शिव की कर्मस्थली कैलाश मानसरोवर को ही माना गया है। मानसरोवर झील तिब्बत में है। इसलिए चीन भी काफी पहले यह दावा कर चुका है कि गंगा का उद्गम स्थल भारत में नहीं बल्कि चीन में ही है। अब तो केंद्रीय मंत्री उमा भारती के इस बयान ने भी चीन के दावे को और बल प्रदान कर दिया है।

भारतीय वैज्ञानिकों का दावा है कि गंगा के उद्गम स्थल को लेकर जो भी रहस्य है वह वर्ष 2016 की कैलाश मानसरोवर यात्रा के दौरान ही सुलझ पाएगा। क्योंकि अब जब कैलाश मानसरोवर की यात्रा शुरू होगी, तभी वाटर आइसोटॉप्स तकनीक से गंगा के वास्तविक उद्गम स्थल का पता लगाया जा सकेगा। मौजूदा समय में किसी के लिए मानसरोवर जा पाना काफी जोखिम भरा कार्य है। हालांकि रुड़की स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी में ढाई करोड़ लागत की मशीन भी आ चुकी है। वैज्ञानिकों का मत है कि मानसरोवर की यात्रा जब शुरू होगी, तब मानसरोवर झील के चार स्थानों से पानी के नमूने संग्रह किए जाएंगे। एचटुओ का न्यूक्लियर हाइड्रोलॉजी आइसोटाप लैब में परीक्षण किया जाएगा। ठीक उसी तरह से उत्तराखंड के गोमुख से जहां अब तक की मान्यता के मुताबिक गंगा का उद्गम स्थल है, वहां से जल संग्रह किया जाएगा। गोमुख के जल के भी हाइड्रोजन और आक्सीजन का उपर्युक्त विधि द्वारा विश्लेषण किया जाएगा। उसके बाद ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह कह पाना संभव होगा कि गंगा का उद्गम स्थल चीन में है या भारत में।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब तक गंगा के उद्गम को लेकर इस तरह की पड़ताल की आवश्यकता ही महसूस नहीं की गई। वर्ष 1965 में चीन ने जरूर गंगा का उद्गम स्थल मानसरोवर बताया, लेकिन उसने किसी तरह का कोई भी वैज्ञानिक शोध अपने दावे के समर्थन में पेश नहीं किया। अब तो केंद्रीय मंत्री उमा भारती की टिप्पणी के बाद चीन को भी अपने दावे के लिए बल मिला है और वह भी अपने वैज्ञानिकों को इस महत्त्वपूर्ण कार्य में लगाने की तैयारी कर रहा है। गंगा नदी का उद्गम स्थल अब तक भारतीय ही नहीं, विदेशी भी गोमुख को मानते हैं। गंगोत्री से गोमुख की दूरी करीब उन्नीस किलोमीटर है और यह पूरी तरह से पैदल मार्ग है। शोध के लिए वैज्ञानिकों को गोमुख से भी जल संग्रह करना पड़ेगा।

गंगा गोमुख से निकल कर बंगाल की खाड़ी तक करीब 2,525 किलोमीटर की दूरी तय करती है, जिसके अंतर्गत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। जहां तक सवाल गंगा बेसिन का है वह भारत में करीब 8 लाख 61 हजार 452 वर्ग किलोमीटर है, जबकि भारत के अलावा नेपाल, बांग्लादेश व चीन के बेसिन को जोड़ कर देखें तो गंगा का कुल बेसिन 1 लाख 86 हजार वर्ग किलोमीटर माना गया है। गंगोत्री समुद्र तल से 3,048 मीटर ऊपर है। जबकि गोमुख की आकृति गाय के चेहरे की तरह है और इसी स्थल को गंगा के उद्गम स्थल के रूप में अब तक जाना जाता है जहां से जल धारा बूंद-बूंद कर टपकती है। गोमुख के पास जल कावेग काफी कम है। हालांकि गंगोत्री ग्लेशियर के नजदीक भोजवासा एक ग्रामीण क्षेत्र है जहां पहली बार गंगा के र्दान होते हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तराखंड के टिहरी जनपद के देवप्रयाग में पहली बार भागीरथी और अलकनंदा के संगम स्थल पर गंगा प्रत्यक्ष रूप से दिखती है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के निदेशक डॉ आरडी सिंह का कहना है कि गोमुख से मानसरोवर की दूरी करीब पंद्रह किलोमीटर है। लेकिन यह रास्ता समतल न होकर टेड़ी-मेढ़ी पर्वत शृंखलाओं से होकर गुजरता है। डॉ सिंह का कहना है कि इन पर्वत शृंखलाओं की सतह के नीचे हो सकता है कि कोई सुरंग हो जिससे भीतर ही भीतर गंगा का पानी रिसते हुए धीरे-धीरे गोमुख की ओर पहुंचता हो।

इस संस्थान के ही एक वैज्ञानिक डॉ मुकेश शर्मा गंगोत्री से गोमुख के सतह जल पर शोध कर रहे हैं। लेकिन यह शोध गंगा के उद्गम को लेकर नहीं, बल्कि जल के वेग को लेकर है। डॉ शर्मा का यह शोध-कार्य वर्ष 2014 से शुरू हुआ है जो वर्ष 2016 के अंत तक चलेगा। उसके बाद ही गंगा के वेग के बारे में कुछ भी कहना तर्कसंगत होगा। वैसे भी हरिद्वार और उसके आगे गंगा नदी का प्राकृतिक प्रवाह इकतीस हजार क्यूसेक से घट कर चालीस क्यूसेक तक पहुंच गया है। अनुमान यह लगाया जा रहा है कि उद्गम स्थल से संभवत: जल का वेग पहले के मुकाबले काफी कम हुआ है। इसलिए प्रवाह में कमी दिख रही है। यदि कुछ समय के लिए यह मान लिया जाए कि गंगा का उद्गम स्थल मानसरोवर ही है तो सवाल उठता है कि कम हो रहे वेग के पीछे चीन की छेड़छाड़ नीति तो काम नहीं कर रही है। अगर ऐसा है तो वाकई यह चिंता का विषय है। चीन की मंशा से पूरी दुनिया अवगत है। उसने ब्रह्मपुत्र को भी ‘कैद’ करने की कोशिश की है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के ग्लेशियर वैज्ञानिक डॉ मनोहर अरोड़ा, जो कि गंगोत्री ग्लेशियर पर लंबे समय से शोध कर रहे हैं, का कहना है कि अब तो नई बात सामने आई है कि मानसरोवर भी गंगा का उद्गम स्थल हो सकता है। निश्चित रूप से इस बारे में पड़ताल करना चुनौती-भरा कार्य है। वैज्ञानिक अपनी तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अब वर्ष 2016 में ही गंगा के उद्गम स्थल के बारे में कुछ टिप्पणी की जा सकती है। डॉ अरोड़ा के मुताबिक गंगा के उद्गम के बारे में विज्ञान क्या कहता है, यह महत्त्वपूर्ण है। इधर, उत्तराखंड की धर्म-नगरी हरिद्वार में साधु-संतों का मिजाज केंद्रीय मंत्री उमा भारती की टिप्पणी को लेकर बिगड़ रहा है। इस समाज से जुड़े लोगों का कहना है कि गंगा के उद्गम को लेकर उमा भारती का बयान हिंदू आस्था पर कुठाराघात है। ‘जल पुरुष’ के नाम से चर्चित एवं रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह का कहना है कि गंगा का उद्गम स्थल मानसरोवर को बताना एक विदेशी चाल है। इस मामले में तो केंद्रीय मंत्री उमा भारती चीन की ही वकालत कर रही हैं। दरअसल चीन तो ‘वाटर बम’ की रणनीति काफी पहले से ही बना रहा है। क्योंकि वर्ष 2025 में चीन के सामने जल संकट पैदा होने वाला है। इसलिए वह इस तरह का नाटक कर रहा है।