कयास लगाए जा रहे हैं कि पंजाब फिर अशांत हो सकता है। पहले कई दिनों तक किसानों का धरना चला। इसके बाद एकाएक धार्मिक उबाल। गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी के कई मामले सामने आए। प्रदेश भर में हंगामा हो गया। पुलिस फायरिंग में दो व्यक्ति मारे गए। आठ साल के शासन के बाद पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के चेहरे पर चिंता की रेखाएं देखी गर्इं। आनन-फानन में सरकार ने राज्य के पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी को हटा दिया। राज्य सरकार के सलाहकारों की राय थी कि डीजीपी को हटा कर चरमपंथियों की भावनाओं पर काबू पाया जा सकता है। क्योंकि डीजीपी शुरू से चरमपंथियों के निशाने पर थे। फिलहाल माहौल कुछ शांत होता नजर आ रहा है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि माहौल पूरी तरह से ठीक है।
दरअसल, पंजाब कुछ इस तरह के चक्रव्यूह में फंस गया है कि धार्मिक भावनाएं कभी भी उभार ले सकती हैं। राज्य में खराब होते आर्थिक हालात, बढ़ती बेरोजगारी, हर तरफ भ्रष्टाचार, नशे के बढ़ते प्रभाव आदि ने चरमपंथी संगठनों के लिए अपने पैर पसारने की गुंजाइश पैदा की है। इसलिए समय रहते केंद्र और राज्य, दोनों को सचेत होना होगा। पहली बार विदेशों में बैठे चरमपंथियों के चेहरों पर जहां खुशी है और राज्य के अरसे से हाशिये पर रहे चरमपंथियों के चेहरों पर भी रौनक लौटी हुई दिखती है, वहीं पुलिस का मनोबल गिरा हुआ नजर आ रहा है। राज्य पुलिस ने गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी को लेकर हुई गिरफ्तारियों के बाद यह निष्कर्ष निकाला था कि इसमें शामिल लोग आर्थिक तंगी के शिकार हैं। उन्हें विदेशों से पैसे भी आए हैं। लेकिन राज्य सरकार इसे मानने को तैयार नहीं थी।
गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी की घटनाएं किसानों का आंदोलन खत्म होने के तुरंत बाद शुरू हुर्इं। किसान खराब होते आर्थिक हालात को लेकर रेलवे ट्रैक और सड़क पर बैठने को मजबूर थे। लेकिन राज्य और केंद्र ने इनकी समस्या को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई। किसान संगठनों ने जैसे ही आंदोलन समाप्त करने की घोषणा की, धार्मिक हंगामा शुरू हो गया। पंजाब की यह सच्चाई है कि यहां सिखी और किसानी एक है। ज्यादातर किसान सिख हैं। एकाएक किसानों के आंदोलन के बाद धार्मिक उन्माद भड़कने से केंद्र और राज्य सरकार की चिंता खासी बढ़ गई। क्योंकि निचले स्तर पर इसमें भी वही लोग ज्यादा सक्रिय थे, जो किसान आंदोलन में सक्रिय थे। सिर्फ नेतृत्व का फर्क था। किसान आंदोलन का नेतृत्व वामपंथी रुझान वाले कुछ किसान संगठन कर रहे थे तो धार्मिक उभार का नेतृत्व दक्षिणपंथी उभार वाले धार्मिक संगठन कर रहे थे। कुछ लोगों की राय है कि धार्मिक उभार की एक बड़ी तात्कालिक वजह किसानों की आर्थिक तंगी भी है।
पंजाब सीमावर्ती प्रदेश है। 1980 के आसपास पाकिस्तानी सैन्य शासक जनरल जिया ने खालिस्तानी चरमपंथियों को सहारा दिया। एक बार फिर आइएसआइ ताक में है। चीन की नजर भी पंजाब पर है। इस समय आइएसआइ यूरोप के माध्यम से खालिस्तानी चरमपंथियों पर डोरे डाल रही है। खुफिया एजेंसियों के मुताबिक बेल्जियम, स्वीडन, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा में आइएसआइ खालिस्तानी चरमपंथियों के संपर्क में है। इनमें कुछ वे लोग भी हैं जो इन मुल्कों की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अहम भूमिका निभा रहे हैं। उधर चीन नहीं चाहता कि भारत और पाकिस्तान के संबंध सामान्य हों। चीन कोलकाता से काबुल तक के आर्थिक कॉरिडोर को व्यवहार रूप में नहीं आने देना चाहता है। क्योंकि इसका सीधा असर पाकिस्तान के ग्वादर से पश्चिमी चीन तक प्रस्तावित आर्थिक कॉरिडोर की सफलता पर पड़ेगा।
गरीबी और बेरोजगारी बढ़ेगी तो धार्मिक उग्रवाद भी पनपेगा। पाकिस्तान में बढ़ता आतंकवाद इसका एक उदाहरण है। गरीब पाकिस्तानी ही जेहादियों के हथियार हैं। पाकिस्तान में गरीब युवा बड़े पैमाने पर नशे के शिकार हैं, जिसका फायदा आइएसआइ और जेहादी संगठन उठा रहे हैं। ये युवा पैसे और मादक पदार्थों के लोभ में कहीं भी हमला कर सकते हैं और कोई भी इन्हें अपने स्वार्थ में उपयोग कर सकता है। आज पंजाब में लगभग यही स्थिति है। बेरोजगारी बढ़ी है। भारी संख्या में राज्य के युवा मादक पदार्थों की चपेट में है। कोई भी विदेशी एजेंसी इन युवाओं को अपने प्रभाव में ले सकती है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक राज्य में हवाला और अन्य माध्यमों से डेढ़ सौ से दो सौ करोड़ रुपए प्रतिवर्ष चरमपंथियों के लिए आ रहा है।
पंजाब मे पिछले आठ साल से शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन का राज है। अकाली दल एक साथ सिखों और किसानों दोनों का प्रतिनिधित्व करता है। अकाली दल शुरू से सिख पंथ की राजनीति करता रहा है। चूंकि पंजाब के ज्यादातर किसान सिख हैं, इसलिए किसानों के वास्तविक नेतृत्व की दावेदारी भी अकाली दल ही करता है। लेकिन राज्य में खराब होते आर्थिक हालात को ठीक करने में अकाली दल विफल रहा है। पंजाब सरकार राज्य में लगातार भारी निवेश का दावा कर रही है। लेकिन जमीन पर यह निवेश नहीं दिख रहा है। उधर कई सिख संगठनों ने अकाली दल पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सबसे गंभीर आरोप गुरद्वारों की आय के दुरूपयोग का है। शिरोमणी गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी पर अकाली दल के कब्जे से दूसरे राज्यों के सिख भी नाराज हैं। हरियाणा के सिख इसी कारण अपने राज्य के गुरद्वारों के लिए अलग प्रबंधक कमेटी बनाने की मांग कर रहे थे। हरियाणा में भी गुरद्वारों के पास खासी संपत्ति है। गुरद्वारोंकी संपत्तियों के दुरुपयोग के आरोप आजादी से पहले भी लगे थे। अकाली आंदोलन इसी दुरूपयोग के खिलाफ खड़ा हुआ था। लेकिन आज अकाली नेताओं पर ही गुरद्वारों की संपत्तियों के बेजा इस्तेमाल के आरोप लग रहे हैं।
भ्रष्टाचार, खराब प्रशासन, बेरोजगारी और घाटे की खेती से परेशान जनता धार्मिक प्रतीकों का सहारा ले सड़कों पर उतर रही है। लोग लूट का ब्योरा भी देते हैं। कहते हैं सारा पंजाब कुछ लोगों ने लूट लिया। किसान आंदोलनकारी हों या धर्म के नाम आंदोलन करने वाले, वे इस लूट के कई तरीके गिनाते हैं। वे राज्य में सक्रिय भू माफिया, रेत माफिया और शराब माफिया के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करते हैं। जनता में यह आम धारणा बन गई है कि सत्ताधारी नेतृत्व और प्रशासनिक अमला भू माफिया, रेत माफिया, ड्रग माफिया और शराब माफिया को पनाह दे रहे हैं। लोगों का आरोप है कि इससे होने वाली कमाई का हिस्सा राजनीतिक दलों को भी जा रहा है। राज्य में खराब होती कानून व्यवस्था को लेकर भी लोग खासे नाराज हैं। पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं। पुलिस थानों को अकाली दल के हलका इंचार्ज के हवाले करने के आरोप लग रहे हैं। हलका इंचार्ज के ‘रुतबे’ से आम लोग ही नहीं, अकाली दल के कार्यकर्ता भी नाराज हैं। उनका आरोप है कि राज्य के थाने कमाई के अड्डे बन चुके हैं। वसूली के लिए फर्जी एफआइआर दर्ज की जा रही हैं।
राज्य सरकार की नीतियों को लेकर लोगों में असंतोष गहराता जा रहा है। वैसे दावे तो विकास के हैं, लेकिन विकास के नाम पर तीस-तीस किलोमीटर की सड़कों पर टोल लगा दिया गया है। टोल शुल्क के बहाने भारी वसूली हो रही है। टोल-नीति पारदर्शी नहीं है। आम लोग चर्चा करते हैं कि टोल कंपनियों में राजनीतिक दलों के नेताओं का पैसा है। मादक पदार्थों की तस्करी और सेवन पंजाब की बड़ी समस्या है। राज्य में बड़े पैमाने पर युवा नशे के शिकार हैं। ड्रग माफिया इन्हीं युवाओं को अपने फुटकर आपूर्तिकर्ता के बतौर उपयोग कर रहे हैं। नशे का आदी युवा ड्रग माफिया का दिया हुआ पदार्थ गांवों में दिन भर बेचता है, ताकि शाम को उसे मेहनताने के रूप में ड्रग की एक पुड़िया मिल जाए। खुफिया विभाग चिंतित है कि ये युवा विदेशी एजेंसियों के हाथों में भी खेल सकते हैं। यूरोप में इस्लामी आतंकी संगठनों द्वारा नशे के शिकार युवाओं को ‘जेहादी’ बनाने के कई मामले सामने आए हैं। यह खेल पंजाब में भी हो सकता है। क्योंकि यूरोप में खालिस्तानी चरमपंथियों का एक जमात मौजूद है, जो इस तरीके को पंजाब में आजमा सकती है। यह विचित्र है कि सीमा सुरक्षा बल और पंजाब पुलिस ने अरबों रुपयों की हेरोईन तो बरामद की, लेकिन बड़े ड्रग माफिया इनके हत्थे नहीं चढ़े।
पंजाब के किसानों का संकट दूर करने में राज्य और केंद्र सरकार की कोई रुचि नहीं दिखती। पंजाब के किसान भारी कर्जदार हो चुके हैं। उनका बासमती चावल तो सौ रुपए प्रतिकिलो बेचा जा रहा है लेकिन उन्हें बासमती धान की कीमत बारह रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से दी जा रही है। आखिर सत्तर से अस्सी रुपए का मुनाफा बीच में कौन खा रहा है, यह सवाल राज्य के किसान उठा रहे हैं। बासमती उगाने वाले किसानों को प्रति एकड़ दस हजार रुपए तक का घाटा हो रहा है, जबकि बासमती धान से चावल बना कर बेचने वाले भारी मुनाफा कमा रहे हैं। चीनी मिलों के मालिक चीनी से खूब कमा रहे हैं, लेकिन किसानों को गन्ने की बकाया राशि नहीं दी जा रही है। इस स्थिति का फायदा वे किसान संगठन भी उठा सकते हैं जो नक्सली विचारों के हैं। इसका लाभ विदेश में सक्रिय खालिस्तानी चरमपंथी भी उठा सकते हैं। भारत-विरोधी विदेशी खुफिया एजेंसी भी इसका फायदा उठाने की कोशिश करेगी। (संजीव पांडेय)
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