जिस तरह मौसम करवट बदल रहा है, उसका असर अब पूरी दुनिया पर दिखाई देने लगा है। भविष्य में इसका सबसे ज्यादा बुरा असर एशियाई देशों पर पड़ेगा। एशिया में गरम दिन बढ़ सकते हैं या फिर सर्दी के दिनों की संख्या बढ़ सकती है। एकाएक भारी बारिश या फिर अचानक बादल फटने की घटनाएं हो सकती हैं। न्यूनतम और अधिकतम दोनों तरह के तापमान में खासा परिवर्तन देखने में आ सकता है।
अमेरिका के न्यूयार्क में पांच दशक बाद जल सम्मेलन संपन्न हुआ। उसमें हिमालय से निकलने वाली गंगा समेत दस प्रमुख नदियों के भविष्य में सूख जाने को लेकर गंभीर चिंता जताई गई। सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने आगाह किया कि आने वाले दशकों में जलवायु संकट के कारण हिमनदों का आकार घटने से भारत की सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां सूख सकती हैं।
हिमनद पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक हैं। दुनिया के दस प्रतिशत हिस्से में हिमनद हैं, जो दुनिया के लिए शुद्ध जल का बड़ा स्रोत हैं। यह चिंता इसलिए है कि मानवीय गतिविधियां पृथ्वी के तापमान को खतरनाक स्तर तक ले जा रही हैं, जो हिमनदों के निरंतर पिघलने का कारण बन रहे हैं। इस आयोजन में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक जल संकट से प्रभावित होने वाले देशों में भारत प्रमुख होगा।
गंगा और ब्रह्मपुत्र समेत एशिया की दस नदियों का उद्गम हिमालय की तलहटी है। उनमें झेलम, चिनाब, ब्यास, रावी और यमुना भी शामिल हैं। ये सभी नदियां 2250 किलोमीटर जलग्रहण क्षेत्र में बहती हैं। ये अपने जलग्रहण क्षेत्र में 1.3 अरब लोगों को ताजा पानी उपलब्ध कराती हैं, जिनमें उत्तर भारत की बड़ी आबादी शामिल है। पानी की समस्या से प्रभावित लोगों में से अस्सी प्रतिशत एशिया में हैं। यह समस्या भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन में सबसे ज्यादा है।
विडंबना है कि जहां पानी की उपलब्धता घट रही है, वहीं पानी की खपत बढ़ रही है। सीएसई की रिपोर्ट के मुताबिक गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना नदी प्रणाली का जलग्रहण क्षेत्र कुल नदी जलग्रहण क्षेत्र का 43 प्रतिशत है। जाहिर है कि इनमें पानी कम होने से देश में बड़ा जल संकट पैदा हो सकता है। इसलिए कि भारत में दुनिया की 17.74 प्रतिशत आबादी है, जबकि उसके पास ताजा पानी के स्रोत केवल 4.5 प्रतिशत हैं। इसलिए कालांतर में नदियों सूखने का संकेत चिंताजनक है।
हिमालयी नदियों के सूखने की चेतावनी इसलिए सच लगती है, क्योंकि कनाडा की स्लिम्स नदी के सूखने का घटनाक्रम और नाटकीय बदलाव एक ठोस सच्चाई के रूप में छह साल पहले सामने आ चुका है। इस घटना को भू-विज्ञानियों ने ‘नदी का चोरी चले जाना’ कहा था। इसलिए कि यह नदी चार दिन के भीतर ही सूख गई थी। नदी के विलुप्त हो जाने का कारण जलवायु परिवर्तन माना गया था।
तापमान बढ़ा और कास्कावुल्श नामक जिस हिमखंड से इस नदी का उद्गम है, वह तेजी से पिघलने लगा। नतीजतन तीन सौ साल पुरानी स्लिम्स नदी 26 से 29 मई, 2016 के बीच सूख गई। जबकि डेढ़ सौ किमी लंबी इस नदी का जलभराव क्षेत्र डेढ़ सौ मीटर चौड़ा था। आधुनिक इतिहास में इस तरह नदी का सूखना विश्व में पहला मामला था।
जिस तरह स्लिम्स नदी सूख गई, उसी तरह हमारे यहां सरस्वती नदी के विलुप्त होने की कहानी प्राचीन ग्रंथों में दर्ज है। गंगोत्री राष्ट्रीय उद्यान के द्वार खुलने के बाद आई ताजा रिपोर्ट से पता चला है कि जिस हिमखंड से गंगोत्री का उद्गम है, उसका आगे का पचास मीटर व्यास का हिस्सा भागीरथी के मुहाने पर गिरा हुआ है। हालांकि गोमुख पर तापमान कम होने के कारण यह हिमखंड अभी पिघलना शुरू नहीं हुआ है।
यही वह गंगोत्री का गोमुख है, जहां से गंगा निकलती है। 2526 किमी लंबी गंगा देश की सबसे प्रमुख और पवित्र नदियों में से एक है। अनेक राज्यों के करीब चालीस करोड़ लोग इस पर निर्भर हैं। इसे गंगोत्री हिमनद से पानी मिलता है। पर सतासी सालों में तीस किमी लंबे इस हिमखंड का पौने दो किमी हिस्सा पिघल चुका है।
भारतीय हिमालय क्षेत्र में 9575 हिमनद हैं, जिनमें से 968 हिमनद सिर्फ उत्तराखंड में हैं। अगर ये हिमनद तेजी से पिघलते हैं, तो भारत, पाकिस्तान और चीन में भयावह बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। इसी तरह अंटाकर्टिका में हर साल औसतन डेढ़ सौ अरब टन बर्फ पिघल रही है, जबकि ग्रीनलैंड की बर्फ और तेजी से पिघल रही है। वहां हर साल 270 अरब टन बर्फ पिघलने के आंकड़े दर्ज किए गए हैं। अगर यही हालात बने रहे तो समुद्र में बढ़ता जलस्तर और खारे पानी का नदियों के जलभराव क्षेत्र में प्रवेश इन विशाल डेल्टाओं के बड़े हिस्से को नष्ट कर देगा।
अल्मोड़ा स्थित पंडित गोविंद बल्लभ पंत हिमालय पर्यावरण एवं विकास संस्थान के वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमखंड का जो अगला हिस्सा टूटकर गिरा है, उसमें बदलाव नजर आ रहे हैं। वैज्ञानिक इसका मुख्य कारण चतुरंगी और रक्तवर्ण हिमखंड का गोमुख हिमखंड पर बढ़ता दबाव मान रहे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार अट्ठाईस किमी लंबा और दो से चार किमी चौड़ा गोमुख हिमखंड तीन अन्य हिमखंडों से घिरा है। इसके दार्इं ओर कीर्ति और बार्इं और चतुरंगी तथा रक्तवर्णी हिमखंड है।
अभी हिमखंड की जो ताजा तस्वीरें और वीडियो देखने में आए हैं, उनसे पता चलता है कि गोमुख हिमखंड के दार्इं ओर का हिस्सा आगे से टूट कर गिर पड़ा है। इसके कारण गाय के मुख (गोमुख) की आकृति वाला हिस्सा दब गया है। इसकी वजह जलवायु परिवर्तन भी हो सकता है। साफ है, इस तरह अगर गंगा के उद्गम स्रोतों के हिमखंडों के टूटने का सिलसिला बना रहता है, तो कालांतर में गंगा की अविरलता प्रभावित होगी और उसकी विलुप्ति का खतरा बढ़ता जाएगा।
गंगा का संकट टूटते हिमखंड ही नहीं, औद्योगिक विकास की वजह से भी है। कानपुर में गंगा के लिए चमड़ा, जूट और बोतलबंद पानी के कारखाने संकट बने हुए हैं। टिहरी बांध बना तो सिंचाई परियोजना के लिए था, लेकिन इसका पानी दिल्ली जैसे महानगरों में पेयजल आपूर्ति के लिए कंपनियों को दिया जा रहा है।
गंगा के जलभराव क्षेत्र में पेप्सी और कोक जैसी निजी कंपनियां बोतलबंद पानी के लिए बड़े-बड़े नलकूपों से पानी खींच कर एक ओर तो मोटा मुनाफा कमा रही हैं, वहीं खेतों में खड़ी फसल सुखाने का काम कर रही हैं। दो ताप बिजली घर यमुना नदी से सत्तानबे लाख लीटर पानी प्रति घंटा खींच रहे हैं। इससे जहां दिल्ली में यमुना पार इलाके के दस लाख लोगों का जीवन प्रभावित होने का अंदेशा है, वहीं यमुना का जलभराव क्षेत्र तेजी से छीज रहा है।
ब्रिटिश अर्थशास्त्री ईएफ शूमाकर ने बड़े उद्योगों के बजाय छोटे उद्योग लगाने की तरफ दुनिया का ध्यान खींचा था। उनका सुझाव था कि प्राकृतिक संसाधनों का कम से कम उपयोग और ज्यादा से ज्यादा उत्पादन होना चाहिए। शूमाकर का मानना था कि प्रकृति की भी प्रदूषण को झेलने की एक सीमा होती है। मगर सत्तर के दशक में उनकी इस चेतावनी का मजाक उड़ाया गया। पर अब जलवायु परिवर्तन पर काम करने वाले सरकारी और गैर-सरकारी संगठन उनकी चेतावनी को स्वीकार कर रहे हैं।
जिस तरह मौसम करवट बदल रहा है, उसका असर अब पूरी दुनिया पर दिखाई देने लगा है। भविष्य में इसका सबसे ज्यादा बुरा असर एशियाई देशों पर पड़ेगा। एशिया में गरम दिन बढ़ सकते हैं या फिर सर्दी के दिनों की संख्या बढ़ सकती है। एकाएक भारी बारिश या फिर अचानक बादल फटने की घटनाएं हो सकती हैं। न्यूनतम और अधिकतम दोनों तरह के तापमान में खासा परिवर्तन देखने में आ सकता है। इसका असर पारिस्थितिकी तंत्र पर तो पड़ेगा ही, मानव समेत तमाम जंतुओं और पेड़-पौधों की जिंदगी पर भी पड़ेगा। लिहाजा, समय रहते चेतने और हिमालय से निकलने वाली दस नदियों के सूखने की चेतावनी को गंभीरता से लेने की जरूरत है।