केंद्र सरकार ने देश में निवेश को प्रोत्साहन देने और कारोबारी सुगमता को बढ़ाने के लिए कई सुधार किए हैं, जिसे तकनीकी भाषा में ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस’ कहते हैं। पिछले वर्ष ‘ईज आॅफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग’ में भारत ने रिकॉर्ड तीस पायदान सुधार कर सौवां स्थान हासिल किया था। इस बार विश्व बैंक की 2019 की कारोबारी सुगमता की वैश्विक रैंकिंग में भारत पचासवां स्थान पाना चाहता था, लेकिन वह 190 देशों की सूची में 23 पायदान की छलांग लगाते हुए सतहत्तरवें स्थान पर ही पहुंच सका। दरअसल, सरकार द्वारा उठाए गए सुधारात्मक कदमों की वजह से ही भारत चार सालों के अंदर यह उपलब्धि हासिल कर सका। लेकिन एक आकलन के मुताबिक अगर रियल एस्टेट पंजीकरण, कारोबार शुरू करने और अनुबंधों के प्रवर्तन में लगने वाला समय कम होता तो भारत शीर्ष के पचास देशों में शामिल हो सकता था। इस रिपोर्ट के अनुसार कारोबारी माहौल में सुधार के लिहाज से भारत दुनिया भर में पांचवां सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाला देश रहा।
कारोबार सुगमता रैंकिंग में न्यूजीलैंड शीर्ष पर है। उसके बाद क्रमश: सिंगापुर, डेनमार्क और हांगकांग का स्थान आता है। सूची में अमेरिका आठवें, चीन 46 वें और पाकिस्तान 136 वें स्थान पर है। विश्व बैंक ने इस मामले में सबसे अधिक सुधार करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में भारत को दसवें स्थान पर रखा है। कारोबारी माहौल में सुधार को आंकने के लिए विश्व बैंक ने जो दस मानदंड रखे हैं, उनमें से छह में भारत ने सुधार किया है। इनमें कारोबार शुरू करना, निर्माण परमिट, बिजली की सुविधा प्राप्त करना, कर्ज मिलना, करों का भुगतान, सीमा पार व्यापार, अनुबंधों को लागू करना और दिवाला प्रक्रिया से निपटना शामिल है। अगर भारत ‘कर भुगतान’ के मामले में दो अंक फिसल कर 121 वें स्थान पर नहीं पहुंचा होता, ऋणशोधन और दिवालिया संहिता लागू करने के बाद ऋणशोधन समाधान मामले में उसे पांच स्थान का नुकसान नहीं हुआ होता तो वह आसानी से 50 वीं रैंकिंग को हासिल कर लेता। ऋणशोधन समाधान मामले में भारत का स्थान 108 वां रहा, क्योंकि आईबीसी के तहत दावों के निपटान की दर महज 59 फीसद रही।
इन दोनों के विपरीत विदेश व्यापार और निर्माण की अनुमति में भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया। विदेश व्यापार में भारत 129 वें स्थान से छलांग लगाते हुए 52 वें स्थान पर पहुंच गया। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के अनुसार बंदरगाहों पर जोखिम प्रबंधन प्रणाली लागू करने के कारण भारत बेहतर अंक प्राप्त कर सका। ई-संचित मोबाइल ऐप से कस्टम दस्तावेजों के ई-भुगतान की सुविधा उपलब्ध कराने में भी भारत ने बेहतर प्रदर्शन किया है। विश्व बैंक पिछले पंद्रह सालों से हर साल ईज आॅफ डूइंग बिजनेस की सूची जारी करता रहा है। इसमें सभी 190 देशों के कारोबार नियमन के दस क्षेत्रों- कारोबार शुरू करना, निर्माण की अनुमति हासिल करना, बिजली कनेक्शन देने की प्रक्रिया और उसमें लगने वाला समय, संपत्ति का पंजीकरण, कर्ज मिलने में लगने वाला समय, अल्पसंख्यक निवेशकों की सुरक्षा, कर का भुगतान, दूसरे देशों के साथ व्यापार करने में सहजता का प्रतिशत, समझौते को लागू कराने और दिवालियापन का समाधान करने में तेजी आदि के आधार पर रैंकिंग का निर्धारण किया जाता है।
साथ ही, इसके तहत नए कारोबार को शुरू करने और खरीद-फरोख्त वाले उत्पादों के लिए वेयर हाउस बनाने में लगने वाला समय, उसकी लागत और प्रक्रिया, किसी कंपनी के लिए बिजली कनेक्शन और व्यवसायिक संपत्तियों के निबंधन में लगने वाला समय, निवेशकों के पैसों की सुरक्षा गारंटी, कर संरचना का स्तर, कर के प्रकार और संख्या, कर जमा करने और निर्यात में लगने वाला समय और उसके लिए आवश्यक दस्तावेज, दो कंपनियों के बीच होने वाले अनुबंधों की प्रक्रिया और उस पर आने वाले खर्च आदि को रैंकिंग तय करने में आधार बनाया जाता है।
विश्व बैंक की ओर से जारी यह रिपोर्ट इस मायने में अहम है कि इससे किसी भी देश के प्रति निवेशकों का भरोसा बढ़ता है और वैश्विक स्तर पर संबंधित देश की साख में भी इजाफा होता है। सरकार ने हाल ही में कारोबारी सुगमता को सहज बनाने के लिए कई आर्थिक सुधार किया है। औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के मुताबिक भारत 122 सुधारों को लागू कर चुका है और इन्हें मान्यता दिलाने के लिए सरकारी तंत्र विश्व बैंक के साथ मिल कर काम कर रहे हैं। कारोबारी सुगमता के लिए नब्बे और सुधारों को हकीकत में बदलने की कोशिश चल रही है। इसके तहत निर्माण परमिट देने में तेजी लाना, नई कंपनियों के पंजीकरण को आसान बनाना, निदेशकों की पहचान ‘आधार’ के जरिए करना आदि शामिल हैं। इस क्रम में रैंकिंग को बेहतर करने के लिए औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग नोडल एजेंसी के रूप में कार्य कर रहा है।
इस साल जीएसटी से जुड़े कर भुगतान के मामले में भारत की रैंकिग फिसली है, लेकिन इसमें सुधार आने की संभावना बढ़ी है। हालांकि अभी भी कई क्षेत्रों में सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। भारत की जीडीपी वृद्धि के हिसाब से देश में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की स्थिति और भी बेहतर होगी। गौरतलब है कि मौजूदा समय में जीडीपी रैंकिंग के मामले में भारत चौथे स्थान पर है। अन्य सुधारों के अंतर्गत वित्तीय सेवा विभाग बैंक खाता खोलने के लिए कंपनी की सील की मौजूदा आवश्यकता को समाप्त करने पर विचार कर रहा है।
‘कैपिटल इक्विपमेंट’ के आयात पर भी नकद वापसी को एक वर्ष के अंदर वापस करने की योजना है। फिलहाल इस आलोक में इनपुट टैक्स क्रेडिट का दावा करना होता है। औद्योगिक महकमे ने भी कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय के लिए कई सुधार का प्रस्ताव किया है, जिसमें ‘डिजिटल सिग्नेचर’ और डायरेक्टर आडटेंफिकेशन नंबर को ‘आधार’ से बदलना शामिल है। इस क्रम में डिजिटल सिग्नेचर को ‘यूजर नेम’ या ‘वन-टाइम पासवर्ड’ से बदला जा सकता है। कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय कंपनियों के पंजीकरण के बाद एक अलग स्थायी खाता संख्या देने की प्रक्रिया को भी समाप्त कर सकता है। इस रिपोर्ट में भारत को छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के पैमाने पर विश्व में अग्रणी माना गया है। इसके मुताबिक, भारत ने छोटे निवेशकों के हितों की सुरक्षा, ऋण और विद्युत उपलब्धता के क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन किया है। भारत के कंपनी कानून और प्रतिभूति नियमन को भी काफी उन्नत माना गया है।
दरअसल, 2017 की कमजोर रैंकिंग के बाद उठाए गए सुधारात्मक कदमों से भारत की रैंकिंग में सुधार आया। उदाहरण के तौर पर वित्त वर्ष 2014-15 में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में भारत की रैंकिंग 142 वीं, 2015-16 में 131 वीं, 2016-17 में 130 वीं और 2017-18 में सौवीं रही। ताजा रिपोर्ट इस अवधि के दौरान दिल्ली और मुंबई में क्रियान्वयन में लाए गए सुधारों पर आधारित है। इस दौरान स्थायी खाता संख्या और कर खाता संख्या के आवेदनों को मिला कर नई दिल्ली में कारोबार की शुरुआत करने की प्रक्रिया तेज हुई है। इसी तरह मुंबई में मूल्यवर्धित-कर और पेशा-कर के आवेदनों को मिला कर कारोबार शुरू करना आसान हुआ है। कहा जा सकता है कि कारोबार को सुगम बनाने के लिए मौजूदा सरकार विश्व बैंक के साथ मिल कर सुधारों को अमलीजामा पहनाने की कोशिश कर रही है। अगर इस प्रयास में सफलता मिलती है तो उम्मीद है कि अगले साल भारत इससे बेहतर उपलब्धि हासिल कर पाएगा।