उमेश प्रताप सिंह
सरकार ने अगले पांच वर्षों में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को जीडीपी के ढाई प्रतिशत तक ले जाने का लक्ष्य रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। इसलिए बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने की जरूरत है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जब एक फरवरी को बजट पेश करेंगी तो उद्योग जगत के साथ-साथ आम लोगों को भी काफी उम्मीदें होंगी। गौरतलब है कि फरवरी-मार्च में उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जाहिर है, चुनाव का असर भी बजट पर दिखेगा।
वैसे इस समय अर्थव्यवस्था के सामने आर्थिक विकास को रफ्तार देने की चुनौती तो है ही, साथ ही महंगाई व बेरोजगारी प्रमुख समस्याएं हैं। ऐसे में जबकि अर्थव्यवस्था धीरे-धीरे कोरोना की मार से उबर रही है, बजट से अपेक्षाएं बड़ी हैं। अभी भी अर्थव्यवस्था में उपभोग और निजी निवेश अपेक्षित दर से नहीं बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों से सरकार का व्यय अर्थव्यवस्था को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ऐसे में बजट का महत्त्व और बढ़ जाता है।
कोविड-19 के कारण अर्थव्यवस्था में जो भारी गिरावट आई और इससे जो संकट खड़े हुए, उनसे निकलने के लिए जरूरी हो गया है कि सरकारी खर्च, निजी निवेश, उपभोग और निर्यात को बढ़ाने वाले कदम उठाए जाएं। पिछले कुछ वर्षों में आर्थिक समृद्धि में सरकारी उपभोग में वृद्धि का काफी बड़ा योगदान रहा है जो कि औसतन लगभग सात फीसद सालाना दर से बढ़ा है। निवेश सकल घरेलू उत्पाद का लगभग तीस फीसद या उससे कम है, उपभोग में भी वृद्धि काफी धीमी है, जबकि शुद्ध निर्यात ऋणात्मक है। ऐसे में सरकारी खर्च में वृद्धि अर्थव्यवस्था में तेजी लाएगी।
अर्थव्यवस्था में समृद्धि को बढ़ाने और रोजगार सृजन को प्राथमिकता देने के कारण सरकार पूंजीगत खर्च बढ़ा रही है और ढांचागत क्षेत्र पर भारी रकम खर्च कर रही है। सामान्य तौर पर केंद्र सरकार का पूंजीगत व्यय सकल घरेलू उत्पाद के दो फीसद से नीचे रहा है। इसमें बढ़ोतरी 2014-15 के बाद हुई। पिछले दो वर्षों में यह बढ़ कर जीडीपी का 2.4 फीसद हो गया है। पूंजीगत व्यय बढ़ने से परिसंपत्तियों का सृजन और ढांचागत क्षेत्र में निर्माण होता है। इससे अर्थव्यवस्था की उत्पादन क्षमता बढ़ती है। साथ ही निजी क्षेत्र में भी पूंजीगत खर्च बढ़ता है और रोजगार के मौके बनते हैं।
आने वाले बजट में यह आशा की जा रही है कि सरकार सड़क, रेलवे क्षेत्र आदि से संबंधित परियोजनाओं पर खर्च में तीस फीसद तक की बढ़ोतरी कर सकती है। यह है भी जरूरी। सड़क, रेलवे, ऊर्जा आदि क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश से आर्थिक गतिविधियों को विस्तार मिलता है और रोजगार सृजन होता है। यदि सरकार के खर्च की गुणवत्ता ठीक है तो ऐसे में यदि राजकोषीय घाटा साढ़े छह-सात फीसद से ऊपर भी रहता है तो चिंता की बात नहीं है।
सरकार की उत्पादन आधारित योजना से कोविड-19 प्रभावित क्षेत्रों को काफी राहत मिली है। सरकार को इस योजना का विस्तार करना चाहिए और इस पर सही ढंग से अमल करना चाहिए। इससे निवेश, रोजगार और उत्पादन में वृद्धि होगी। कोविड संकट के कारण निम्न आय वर्ग और मध्य वर्ग की आय पर सबसे ज्यादा असर पड़ा है। ऐसे में सरकार को अभी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को चालू रखने की आवश्यकता है। इसके साथ ही महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में खर्च बढ़ाना होगा, इससे ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़ाने में भी मदद मिलेगी। शहरों से गांव की ओर पलायन को रोकने के लिए सरकार को शहरी क्षेत्र के गरीबों और श्रमिकों के लिए भी रोजगार गारंटी योजना शुरू करनी होगी।
भारत में लगभग सात करोड़ लोग आयकर रिटर्न भरते हैं। इसमें से वास्तविक रूप में लगभग डेढ़ करोड़ लोग ही कर देते हैं। यह भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है कि जनसंख्या का दो फीसद हिस्सा भी कर नहीं दे रहा है! जो दुकानदार, डाक्टर, वकील, व्यवसायी या अन्य लोग कर नहीं दे रहे हैं, उनसे कर कैसे वसूला जाए इस पर गंभीरता से सोचने और कार्य करने की आवश्यकता है। ईमानदारी से कर देने वालों में नौकरी पेशा वर्ग ही सबसे आगे है। आय कर की दरें और वर्ग विवेकपूर्ण नहीं हैं। करदाताओं के लिए बचत संबंधी छूटे भी अब मामूली लगती हैं। इसलिए बजट से यह उम्मीद की जा रही है कि इस मुद्दे सरकार कोई राहत दे। यह आवश्यक भी है, क्योंकि यह सुधार वर्षों से लंबित पड़ा है। आवश्यकता इस बात की है कि कोई ऐसा प्रोत्साहन कदम उठाया जाए जिससे करदाताओं का दायरा बढ़े।
शिक्षा और स्वास्थ्य की गुणवत्ता अर्थव्यवस्था को मजबूत और संपोषणीय बनाने के लिए बेहद आवश्यक है। शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों के प्रति सरकारों का रवैया निराशाजनक ही रहा है। लगता है कि इन दोनों क्षेत्रों को पूरी तरह से निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़ दिया गया है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किया जाने वाला काम सिर्फ खानापूर्ति रह गई है। शिक्षा पर होने वाले व्यय को बढ़ा कर जब तक जीडीपी का पांच फीसद नहीं किया जाता, तब तक आधुनिक अर्थव्यवस्था के अनुरूप श्रम की मांग को पूरा कर पाना कठिन होगा। भविष्य में अर्थव्यवस्था की मजबूती का मुख्य आधार ज्ञान और ज्ञान का उत्पादन ही होगा।
जहां तक बात है स्वास्थ्य क्षेत्र की, तो निम्न वर्ग तक बेहतर चिकित्सा सुविधाओं को पहुंचाने में सरकार थोड़ी गंभीर दिखाई देती है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत राज्य सरकारों को सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए केंद्र सरकार ने सहायता दी है। आयुष्मान भारत जैसी महत्त्वाकांक्षी योजना के तहत भी गरीबों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंच रही हैं। लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि सरकारी अस्पताल ही बीमार हैं, सफाई से लेकर इलाज की सुविधाओं तक पर गौर करें तो पता चलता है कि उनकी स्थिति बेहद खराब है। सरकार ने अगले पांच वर्षों में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च को जीडीपी के ढाई प्रतिशत ले जाने का लक्ष्य रखा है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। इसलिए बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने की जरूरत है।
कोविड पाबंदियों के दौरान कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही शहरों से पलायन करके गांव में पहुंचे श्रमिकों का सहारा बनी। ऐसे में कृषि क्षेत्र और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए बजट में खर्च बढ़ाने की उम्मीद है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण, कृषि के लिए सिंचाई सुविधाओं में विस्तार और कृषि आधारित उद्योगों और सहायक गतिविधियों में निवेश बढ़ाने के लिए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाना होगा। ग्रामीण क्षेत्र में भंडारण और विपणन की सुविधाओं के लिए भी बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है। कृषि सुधारों को वापस लेने के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इसके लिए ठोस प्रावधान करेगी।
अभी भी बहुत सारे क्षेत्र महामारी की मार से उबर नहीं पाए हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों के लिए अलग से प्रोत्साहन देने की जरूरत है। लघु, मध्यम और कुटीर उद्योग तो नोटबंदी और जीएसटी लागू होने के बाद से ही परेशानी का सामना कर रहे हैं। उम्मीद है कि प्रस्तावित बजट में इनके लिए रियायतों के प्रावधान किए जाएंगे। इसी प्रकार पर्यटन, होटल जैसे क्षेत्र भी बजट से विशेष प्रोत्साहनों की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
अब सरकारों के समस्त उपायों के केंद्र में पर्यावरण मित्र विकास या हरित अर्थव्यवस्था है। बिजली चलित वाहनों के उत्पादन में तेजी लाने, नई वाहन कबाड़ नीति घोषित करने से लेकर हरित ऊर्जा के उत्पादन को काफी बढ़ावा मिल रहा है और निजी क्षेत्र इन पर भारी निवेश भी कर रहा है। बजट में ऐसे प्रावधान होने चाहिए जो पर्यावरण प्रदूषण को कम करने में सहायक हो और कम से कम कार्बन उत्सर्जन हो।