समुद्र किनारे औंधे मुंह पड़े तीन साल के सीरियाई बच्चे एलेन कुर्दी के शव की तस्वीर ने दुनिया को हिला दिया है। लाल रंग की टी-शर्ट और नीले जूते पहने यह बच्चा उन बारह सीरियाई लोगों में से एक था और जो यूनान जाने के लिए नाव पर सवार थे। नाव डूब जाने से बीच रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। सोशल मीडिया और दुनिया भर के समाचार पत्रों के मुख पृष्ठों पर वह तस्वीर छा गई। ब्रिटेन के अखबार इंडिपेंडेंट ने कहा कि अगर समुद्र तट पर बह कर आए मृत सीरियाई बच्चे के शव की यह तस्वीर शरणार्थियों के प्रति यूरोप का दृष्टिकोण नहीं बदल पाए, तो और क्या उन्हें बदल पाएगा!

दरअसल, एलेन कुर्दी के बलिदान ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया है। कल तक सीरियाइयों के लिए अपना दरवाजा बंद कर चुके यूरोपीय देशों को नीति बदलने की घोषणा करनी पड़ी है। यह साफ है कि अगर एलेन के परिवार को वैधानिक रूप से शरण मिल गई होती तो कभी इस दशा को प्राप्त नहीं होते। उसकी तस्वीर खींचने वाले छायाकार निलुफेर देमीर ने कहा कि मुझे लगा कि इस बच्चे में अब जिंदगी नहीं बची है, तो मैंने तस्वीर लेने की सोची, ताकि दुनिया को बताया जा सके कि हालात कितने खराब हो चुके हैं।

आइएसआइएस के आतंक से डरा एलेन का परिवार नाव से तुर्की पहुंचने की कोशिश कर रहा था। नाव पलट गई और एलेन, उसके पांच साल के भाई गालिप कुर्दी और मां रेहाना की पानी में डूब कर मौत हो गई। सीरियाई शहर कोबान आइएसआइएस और कुर्दिश विद्रोहियों के बीच जंग की वजह से तबाह हो चुका है। तीन महीने पहले ही अब्दुल के परिवार के ग्यारह लोगों को आइएसआइएस के आतंकियों ने मार डाला था। हालांकि जो अब्दुल पिछले कई महीनों से इस शहर से भागने की कोशिश कर रहा था, वह यहां आया और इसी शहर के कब्रिस्तान में एलेन, उसकी मां और भाई को दफनाया।

अब्दुल्ला ने कहा कि वह अब सीरिया छोड़ कर कहीं नहीं जाएगा। वह सिर्फ अपने परिवार की वजह से शहर छोड़ना चाहते था। जब परिवार ही नहीं बचा, तो किसके लिए भागना! आतंकवादी चाहे तो मार दें या जिंदा छोड़ें, कोई अंतर नहीं। एलेन के पिता अब्दुल्ला ने कहा कि उन्हें इस बात का अफसोस पूरी जिदंगी रहेगा कि वे अपने बच्चे को बचा नहीं पाए। पूरा परिवार बारह अन्य लोगों के साथ सीरिया से निकल कर यूरोप जा रहा था। अब्दुल्ला ने कहा कि मेरे बच्चे गोद में सिमटे थे कि नाव डूब गई। मैंने बचाने की कोशिश की, लेकिन हाथों से फिसलते गए। आंखों के सामने समुद्र में समा गए।

बहरहाल, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अयोग के प्रमुख एंटोनियो ग्यूटेरेस ने यूरोपीय देशों से अपील की कि वे करीब दो लाख शरणाार्थियों को तुरंत शरण दें। यूरोपियन यूनियन ने सोलह सितंबर को होने वाली बैठक में इस संकट से निकलने के रास्ते पर विचार करने का फैसला किया है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून ने कहा कि वे शरण देने को तैयार हैं। उन्होंने शरण दिए जाने को लेकर देश के कानून की समीक्षा के आदेश दे दिए हैं।

जर्मनी ने कहा कि यूरोप के सभी देश शरणार्थियों को जगह देने से इनकार करने लगेंगे, तो इससे ‘आइडिया आॅफ यूरोप’ ही खत्म हो जाएगा। वह बच्चा बच सकता था, अगर यूरोप के देश इन लोगों को शरण देने से इनकार नहीं करते। तुर्की के राष्ट्रपति रीसेप अर्डान ने जी 20 सम्मेलन में कहा कि इंसानियत को इस मासूम की मौत की जिम्मेदारी लेनी होगी। जर्मनी और फ्रांस ने एलान किया कि शरणार्थियों के लिए मौजूदा नियम में ढील दी जाएगी, ताकि लोगों का आना आसान हो।

इस प्रकार यूरोप की सोच बदल रही है और शायद अब कोई दूसरा एलेन कुर्दी इस दशा को प्राप्त न हो। हालांकि इस मुद्दे पर यूरोपीय देशों में मतभेद समाप्त नहीं हो रहे। पहले कोटा प्रणाली का सुझाव आया, जो अस्वीकृत हो गया। इसका एक व्यावहारिक कारण यह है कि कुछ देशों में ज्यादा शरणार्थी आ चुके हैं और वे दबाव में हैं। हंगरी ने तो सर्बिया की सीमा पर एक सौ पचहत्तर किलोमीटर लंबी बाड़ लगा दी है।

गौरतलब है कि ब्रिटेन ने जनवरी 2014 के बाद से केवल दो सौ सोलह और तुर्की ने दो लाख सीरियाई शरणार्थियों को अपनाया है। तुर्की के राष्ट्रपति ने तो यहां तक कह दिया कि अट्ठाईस देश मिल कर यह बहस कर रहे हैं कि अट्ठाईस हजार शरणार्थियों को आपस में कैसे बांटा जाए। इस साल जुलाई तक चार लाख अड़तीस हजार लोग यूरोपीय देशों में शरण मांग चुके हैं। पिछले साल तक पांच लाख इकहत्तर हजार लोग यूरोप में शरण ले चुके हैं।

लेकिन एलेन की मौत के बाद चल रही बहस के दो पहलू हैं। इनमें पहला आइएसआइएस आतंकवादियों के कहर से भाग रहे लोगों को शरण देने का है। इसमें दो राय नहीं कि शरणार्थियों की बढ़ती संख्या से पूरा यूरोप परेशान है। खासकर शेंगेन देशों में। शेंगेन क्षेत्र के अंतर्गत कुल छब्बीस यूरापीय देश आते हैं, जिन्होंने अपनी सामान्य सीमा या कॉमन बॉर्डर पर पासपोर्ट और दूसरे किस्म के सीमा नियंत्रण हटा लिए हैं। सामान्य वीजा नीति के तहत यह पूरा इलाका एक देश की तरह काम करता है। यहां लोगों के आने-जाने पर पाबंदी नहीं है।

यूरोपीय देशों में शरण लेने की कोशिश करने वाले लोग अधिकतर भूमध्य सागर के जरिए वहां पहुंचने की कोशिश करते हैं। जिन देशों में ये जाते हैं, वहां संख्या बढ़ने पर अंतरराष्ट्रीय नियमों और मापदंडों के अनुसार इनके लिए भोजन, छत और स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया कराने में सरकार को दिक्कतें आती हैं। इस साल यूनान की सीमा पर सबसे ज्यादा लोग शरण लेने पहुंचे। इनमें से अधिकतर सीरिया के नागरिक थे, जो नाव में सवार होकर अवैध तरीके से तुर्की तक पहुंचे। प्रश्न है कि ये आते ही क्यों हैं, जिनसे शरणार्थी समस्या पैदा हो रही है? विचार तो इस प्रश्न पर भी होना चाहिए।

दरअसल, अधिकतर लोग सीरिया और लीबिया से पहुंच रहे हैं, जहां बीते चार साल से आइएसआइएस ने कब्जे के लिए गृहयुद्ध छेड़ा हुआ है। आइएसआइएस ने लोगों का जीना मुहाल कर रखा है। इसके अलावा अफगानिस्तान, इराक और नाइजीरिया से भी लोग गरीबी, आतंकवादियों के हमले और उनके विरुद्ध युद्ध से परेशान होकर यूरोप जाना चाहते हैं। यूरोप के कोसोवो और सर्बिया जैसे देशों से भी शरणार्थी आ रहे हैं। लेकिन इनकी संख्या कम है।

अब ये जाएं तो कैसे? कोई सरकारी या अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था है नहीं। यूरोप के देश इनको शरण देने को तैयार नहीं। तो फिर छोटी-छोटी नावों में बैठ कर ये अलग-अलग रास्तों से गंतव्य तक जाने की कोशिश करते हैं। मसलन, ट्यूनीशिया या लीबिया से इटली पहुंचने की कोशिश करते हैं। क्षमता से ज्यादा लोगों के इन नावों पर सवार होने की वजह से ऐसे बड़े हादसे भी हुए। मानव तस्कर धन ऐंठ कर लोगों की जान की परवाह न करते हुए इन्हें रबड़ की नावों में बिठा कर भेज देते हैं। ये पहुंच गए तो इनकी नियति, अन्यथा ये नावें तैरते ताबूत बन जाती हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक, एक साल में 1.60 लाख लोग समुद्र के रास्ते यूनान आ चुके हैं। करीब पैंतीस सौ लोगों की मौत नाव डूबने से हो चुकी है।

एलेन के पिता अब्दुल्ला ने कहा कि उसने कनाडा में रह रही अपनी बहन के माध्यम से वहां शरण मांगी थी। कनाडा ने इनकार कर दिया। यूरोपीय देश पहले ही शरणार्थियों को लेने से इनकार कर रहे थे। उन्होंने अपने परिवार को यूनान ले जाने के लिए तस्करों को दो बार पैसे दिए, लेकिन उनकी हर कोशिश नाकाम रही। इसके बाद उन्होंने एक नाव पर सवार होकर पहुंचने की कोशिश की। मगर तेज लहरों की वजह से नाव पलट गई।

क्या इस समस्या का केवल शरणार्थी पहलू है? कतई नहीं। आखिर हजारों लोग युद्ध और संघर्ष से घिरे सीरिया, लीबिया या अन्य स्थानों से क्यों भाग रहे हैं? आइएसआइएस के आतंक और उनसे निपटने में सरकारों की विफलता के कारण। पिछले वर्ष और इस वर्ष अगस्त तक की उसके द्वारा मारे गए लोगों की सामने आई संख्या को जोड़ दें तो करीब सात हजार हो जाती है। वह बच्चों-बच्चियों का गुलाम बाजार लगाता है। उन्हें सेक्स जेहाद के लिए तैयार करता है और जो नहीं हो पाते उन्हें मार देता है। अभी कुछ दिनों पहले उसने उन्नीस कम उम्र की लड़कियों को इसी कारण मौत के घाट उतार दिया।

यजीदी बच्चों और महिलाओं के साथ जिस कू्ररता से पेश आया और जिस नृशंसता से उनको मौत देता है कम से कम वैसा एलेन कुर्दी के साथ तो नहीं हुआ। तो तत्काल इन्हें शरण मिले, जिससे बेवजह मरने से बचें। शरण देना तो केवल वहां से भागने वालों को अस्थायी सुरक्षा देना है। इसका निदान आइएसआइएस को संघर्ष करके खत्म करने या फिर एकदम दुर्बल कर देने में ही है। यह समझ से परे है कि जो यूरोप शरणार्थी समस्या पर विचार कर रहा है, वह आइएसआइएस से सामूहिक सैनिक और वैचारिक युद्ध पर विमर्श क्यों नहीं कर रहा। उसके बगैर इसका समाधान हो ही नहीं सकता।

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