योगेश कुमार गोयल

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) और राष्ट्रीय रोग सूचना एवं अनुसंधान केंद्र ने कुछ महीने पहले ‘राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम’ की रिपोर्ट पेश की थी। इसमें बताया गया था कि वर्ष 2025 तक देश में साढ़े सात लाख से ज्यादा पुरुष और आठ लाख से ज्यादा महिलाएं कैंसर का शिकार बन सकते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार अगले पांच साल में दो लाख (14.8 फीसद) महिलाएं स्तन कैंसर और पचहत्तर हजार (5.4 फीसद) महिलाएं गर्भाशय कैंसर से जूझ रही होंगी। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली तो यह है कि अगले पांच साल में करीब पौने तीन लाख (19.7 फीसद) लोग भोजन नली के कैंसर की चपेट में आ सकते हैं।

‘नेशनल हैल्थ प्रोफाइल-2019’ के अनुसार देश में 2017 से 2018 के बीच ही कैंसर के मामलों में तीन सौ फीसद की वृद्धि दर्ज की गई। ‘वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट’ के मुताबिक भारत में 2018 में कैंसर के करीब 11.6 लाख मामले सामने आए थे, जिनमें से करीब आठ लाख लोगों की मौत हो गई थी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) और ‘इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च आॅन कैंसर’ ने भी भारत को लेकर कुछ चिंताजनक रिपोर्टें जारी की हैं। इनमें कहा गया है कि हर दस भारतीयों में से एक को अपने जीवन में कैंसर होने और प्रत्येक पंद्रह में से एक व्यक्ति की कैंसर से मौत होने की आशंका है।

इन रिपोर्टों में निम्न व मध्यम आय वाले देशों में रोकथाम और देखभाल संबंधी सेवाओं में निवेश की कमी के चलते वर्ष 2040 तक कैंसर के मामले इक्यासी फीसद बढ़ने की आशंका जताई गई है। डब्लूएचओ के अनुसार वर्ष 2018 में दुनियाभर में कैंसर से छियानवे लाख लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से सत्तर फीसद मौतें गरीब देशों या भारत जैसे मध्यम आय वाले देशों में हुईं।

इन मौतों में विश्वभर में कैंसर से हुई कुल मौतों की आठ फीसद मौतें केवल भारत में हुई थीं। ‘जर्नल आॅफ ग्लोबल आॅन्कोलॉजी’ में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक भारत में हर दस में से सात कैंसर मरीजों की मौत हो जाती है, जबकि विकसित देशों में यह संख्या तीन से चार है। इसका कारण कैंसर का इलाज करने वाले डॉक्टरों की कमी बताया गया है।

भारत में जहां हर दो हजार कैंसर मरीजों पर एक डॉक्टर है, वहीं अमेरिका में यह स्थिति भारत के मुकाबले बीस गुना बेहतर है। डब्लूएचओ के मुताबिक पिछले दो दशकों में भारत में कैंसर के मरीजों की संख्या दोगुनी हो गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक देश में प्रतिवर्ष करीब ग्यारह लाख लोग कैंसर के शिकार होते हैं और इनमें दो तिहाई ऐसे मरीज होते हैं, जिनमें कैंसर का पता बहुत देर से चलता है और उस स्थिति में उनके जीवित बचने की संभावनाएं न्यून रह जाती हैं।

‘कैंसर’ ऐसा शब्द है, जिसका नाम सुनते ही लोगों के दिलो-दिमाग में ऐसे मरीज की तस्वीर उभर आती है, जो मृत्यु के करीब होता है। लोगों को कैंसर होने के संभावित कारणों के प्रति जागरूक करने, प्राथमिक स्तर पर कैंसर की पहचान करने और इसके शीघ्र निदान व रोकथाम के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए दुनियाभर में हर साल चार फरवरी को ‘विश्व कैंसर दिवस’ मनाया जाता है।

यह तो अब साबित हो चुका है कि कैंसर होने के पीछे खानपान से लेकर हमारी जीवनशैली में आए बदलाव सबसे बड़ा कारण हैं। आधुनिक जीवनशैली, नियमित व्यायाम न करना, भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान न देना, प्रदूषित वातावरण इत्यादि कई ऐसे अहम कारण हैं, जो शरीर में कैंसर के प्रमुख कारक साबित हो सकते हैं। चिंताजनक स्थिति यह है कि दुनियाभर में अब हर आयु वर्ग के लोग कैंसर की गिरफ्त में आ रहे हैं, जिनमें महिलाएं और कम आयु के बच्चे भी शामिल हैं।

कैंसर विशेषज्ञों के अनुसार पश्चिमी देशों में जहां महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाले स्तन कैंसर के मामले प्राय: पचास से सत्तर साल की आयु में सर्वाधिक दर्ज किए जाते हैं, वहीं भारत में चालीस से साठ वर्ष की आयु की महिलाओं में ऐसे मामले सबसे ज्यादा देखे जा रहे हैं।

भारत में तो अब जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उनमें बीस से तीस वर्ष की महिलाओं में भी स्तन कैंसर के मामले आ रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार महानगरों में महिलाओं में स्तन कैंसर के मामलों में निरंतर वृद्धि हो रही है। हालांकि नियमित जांच और समय पर निदान से स्तन कैंसर से बचाव संभव है और समय पर कैंसर का पता लगा लिया जाए तो इसका शत-प्रतिशत उपचार भी संभव है।

कुछ समय पूर्व यह चौंका देने वाली जानकारी भी सामने आई थी कि दुनियाभर में हर साल करीब तीन लाख बच्चे इस जानलेवा बीमारी की चपेट में आते हैं। इनमें अठहत्तर हजार से भी ज्यादा बच्चे भारत के हैं। कैंसर विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों और व्यस्कों में होने वाले कैंसर में कई अंतर होते हैं और देश में कैंसर के कुल मरीजों में बच्चों की संख्या तीन से पांच फीसद के बीच ही है, लेकिन यह संख्या भी कम चिंताजनक नहीं है, क्योंकि बच्चों में प्राय: होने वाले एक्यूट लिम्फोब्लास्टिक ल्यूकेमिया, ब्रेन ट्यूमर, होज्किन्ज लिम्फोमा, साकोर्मा, एंब्रायोनल ट्यूमर इत्यादि बड़ी आसानी से उन्हें मौत के मुंह में पहुंचा देते हैं। चिंता की बात यह है कि जहां इलाज के बाद विकसित देशों में करीब अस्सी फीसद बच्चे ठीक हो जाते हैं, वहीं भारत में यह दर केवल तीस फीसद ही है।

भारत में विशेषकर ग्रामीण अंचलों में ऐसे बच्चों के अस्पताल व आधुनिक चिकित्सा सेवाओं तक पहुंचने की दर महज पंद्रह फीसद भी नहीं है। बच्चों में भी कैंसर के मामले बढ़ने का एक बड़ा कारण प्रदूषित वातावरण के अलावा उनके खानपान की आदतों में जंक फूड का शामिल होना भी माना गया है, जिससे शरीर की पोषण स्थिति कमजोर पड़ जाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और वे आसानी से ऐसी गंभीर बीमारियों की चपेट में आने लगते हैं।

दुनियाभर में कैंसर से लड़ने और इस पर विजय पाने के चिकित्सीय उपाय हो रहे हैं। अब चिकित्सा के क्षेत्र में शोधकतार्ओं के प्रयासों के चलते कैंसर का शुरूआती चरण में इलाज संभव है। यही कारण है कि 1990 के बाद से कैंसर से मरने वालों की संख्या में करीब पंद्रह फीसद की कमी आई है।

‘रोबोटिक सर्जरी’ जैसी नई तकनीकों से कैंसर के इलाज में क्रांतिकारी बदलाव आया है। दरअसल रोबोट शरीर के ऐसे किसी भी हिस्से में बनी गांठ तक पहुंच सकता है, जहां इलाज के पारंपरिक तरीकों से पहुंचना बेहद मुश्किल होता है। रोबोट शल्य चिकित्सा से इलाज के दौरान गलती की संभावना भी बेहद कम हो जाती है और इलाज ज्यादा सटीक तरीके से हो पाता है। कैंसर के इलाज के दौरान अंगों का खराब हो जाना या दाग पड़ जाना एक सामान्य बात होती थी, लेकिन अब रोबोट तकनीक के इस्तेमाल ने अंगों को सुरक्षित बनाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई है।

दरअसल रोबोच के जरिए शल्य चिकित्सा से न केवल मरीज का बेहतर इलाज होता है, बल्कि प्रभावित अंग भी सुचारू रूप से काम करते रहते हैं। बहरहाल, यह जान लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी किसी भी व्यक्ति को किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन यदि सही समय पर इसका पता लगा लिया जाए तो इसका सौ फीसद उपचार भी संभव है। अब यह पहले की भांति पूर्ण रूप से लाइलाज बीमारी नहीं रही। लोग इस बीमारी, इसके लक्षणों और इसके भयावह खतरे के प्रति जागरूक रहें, इसीलिए कैंसर और इसके कारणों के प्रति लोगों को जागरूक किया जाना जरूरी है।