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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज बिहार के राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन करेंगे। इसके जरिए प्रधानमंत्री की कोशिश भारत की प्राचीन विरासत को पुनर्जीवित करने की है। ये नया परिसर नालंदा के प्राचीन खंडहरों के करीब ही है। (Indian Express)
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एक समय था जब नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे बड़ा शिक्षण केंद्र हुआ करता था। इसे दुनिया का पहला आवासीय विश्वविद्यालय माना जाता है जहां छात्र और शिक्षक एक ही परिसर में रहते थे।
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नालंदा विश्वविद्यालय में इतनी किताबें थीं कि जब बख्तियार खिलजी ने उसमें आग लगाई तो वो करीब तीन महीने तक जलती रहीं। ये वही बख्तियार खिलजी है जिसको नालंदा विश्वविद्यालय के एक आचार्य ने मौत के मुंह से निकाला था। लेकिन उसके बाद भी उसने भारत के इस प्राचीन धरोहर को नष्ट कर दिया। यहां तक कि वहां के धार्मिक विद्वानों और छात्रों तक को उसने मार डाला था। आइए जानते हैं बख्तियार खिलजी ने ऐसा क्यों किया?
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आगे बढ़ने से पहले बता दें कि, उस दौरान नालंदा विश्वविद्यालय में करीब 10 हजार विद्यार्थी और 2 हजार अध्यापक थे। इसकी लाइब्रेरी में करीब नब्बे लाख किताबों का संग्रह था। मेडिसिन, तर्कशास्त्र, गणित और बौद्ध सिद्धांतों के बारे में छात्र यहां अध्ययन करते थे।
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नालंदा विश्वविद्यालय में न सिर्फ भारत बल्कि जापान, कोरिया, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, फारस, तुर्की के साथ ही दुनिया के कई और देशों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
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नालंदा विश्वविद्यालय पर पहले भी दो हमले हो चुके थे लेकिन वो उतने विनाशकारी नहीं थे जितना तीसरा हमला था। वर्ष 1193 में तुर्क सेनापति इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय पर सबसे विनाशकारी हमला किया था।
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ऐसा कहा जाता है कि, उस समय बख्तियार खिलजी उत्तर भारत में बौद्धों द्वारा शासित कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। इसी दौरान वो इतना बीमार पड़ गया कि उसके हकीमों ने भी हाथ खड़े कर दिए थे और लोगों ने मान लिया था कि उसकी कुछ ही दिनों में मौत हो जाएगी। इसी बीच किसी ने उसे नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद विभाग के प्रमुख आचार्य राहुल श्रीभद्र से इलाज करवाने की सलाह दी।
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खिलजी को अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था इसलिए वो आचार्य से इलाज करवाने के लिए तैयार नहीं हुआ। उसे ऐसा लगता था कि, उसके हकीम भारतीय वैद्य से ज्यादा काबिल और ज्ञानी हैं। लेकिन अंत में उसकी जान बचाने के लिए आचार्य राहुल श्रीभद्र को बुलवाया गया। अब बख्तियार खिलजी ने वैद्यराज के सामने एक अजीब सी शर्त रख दी कि वो उनके द्वारा दी गई किसी भी प्रकार की दवा को नहीं खाएगा।
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बख्तियार खिलजी की शर्त ये थी कि वैद्याराज उसे बिना दवाई के ठीक करें। वैद्यराज उसकी शर्त मान गए और कुछ दिनों के बाद उसके पास एक कुरान लेकर पहुंचे और उन्होंने कुरान के कुछ पन्नों को पढ़ने के लिए कहा। वैद्यराज आचार्य राहुल श्रीभद्र ने कहा कि, इन पन्नों को पढ़ने के बाद वो ठीक हो जाएगा।
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हुआ भी वैसा… बख्तियार खिलजी कुरान के उन पन्नों को पढ़ने के बाद ठीक हो गया। दरअसल, कहा जाता है कि बख्तियार खिलजी को जिन कुरान के पन्नों को वैद्यराज ने पढ़ने के लिए कहा था उसपर उन्होंने दवा का लेप लगाया था। जब खिलजी पन्नों को थूक के साथ पलटता तो दवा उसके मुंह में आती और वो ठीक हो गया।
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अब ये देख खिलजी को आश्चर्य हुआ कि भारतीय विद्वान, आयुर्वेद आचार्य और शिक्षक उसके हकीमों से ज्यादा ज्ञानी और काबिल हैं। ये बात उसे खाने लगी। अंत में में बख्तियार खिलजी ने भारत से बौद्ध धर्म, ज्ञान और आयुर्वेद की जड़ों को मिटाने का फैसला किया। जिसके बाद उसने नालंदा की पुस्तकालय में आग लगा दी और उस आग में करीब 9 मिलियन पांडुलिपियां जलकर राख हो गईं।
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इतिहासकारों की मानें तो, नालंदा विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में लगाई गई आग तीन महीने तक जलती रही। इसके बाद बख्तियार खिलजी और उसकी तुर्की सेना ने नालंदा के हजारों धार्मिक विद्वानों और भिक्षुओं को भी जला कर मार दिया।
