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17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपना जन्मदिन मनाएंगे। इस मौके पर हम आपको बताते हैं उनकी जीवन यात्रा का एक ऐसा अनोखा अध्याय, जिसने उन्हें आज का नरेंद्र मोदी बनाया। बहुत कम लोग जानते हैं कि सिर्फ 17 साल की उम्र में नरेंद्र मोदी ने अपना घर छोड़ दिया था और भारत भ्रमण पर निकल पड़े थे। यह सफर उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ, जिसने उनके व्यक्तित्व, सोच और भविष्य की दिशा तय की। (Photo Soiurce: @modiarchive/X)
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नरेंद्र मोदी का जीवन हमेशा से साहस, संघर्ष और आत्मअनुशासन का उदाहरण रहा है। उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण अध्याय तब शुरू हुआ, जब उन्होंने मात्र 17 साल की उम्र में अपना घर छोड़ दिया। इस उम्र में जहां अधिकांश बच्चे पढ़ाई, खेल और दोस्तों की दुनिया में खोए रहते हैं, वहीं नरेंद्र मोदी ने खुद को समाज और राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। (Photo Soiurce: @modiarchive/X)
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घर छोड़ने का कारण
बचपन से ही मोदी जी के भीतर समाज के लिए कुछ करने का जज्बा था। उन्हें आध्यात्मिकता और सेवा कार्यों में गहरी रुचि थी। यही कारण था कि किशोरावस्था में ही उन्होंने घर-परिवार की सीमाओं से बाहर निकलकर भारत को नजदीक से जानने और समझने का निर्णय लिया। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
बचपन से जिज्ञासु और आत्मनिर्भर
वडनगर में चाय की दुकान पर पिता की मदद करने वाले नरेंद्र मोदी बचपन से ही मेहनती, जिज्ञासु और किताबों के प्रति आकर्षित रहे। वे घंटों लाइब्रेरी में किताबें पढ़ते और बहस-चर्चाओं में भाग लेते थे। छोटी उम्र में ही उनके मन में समाज के लिए कुछ करने की इच्छा जाग चुकी थी। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
भारत भ्रमण की शुरुआत
17 वर्ष की उम्र में उन्होंने वडनगर से निकलकर पूरे देश की यात्रा की। इस दौरान वे हिमालय के पर्वतीय इलाकों, रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ और कई आश्रमों में गए। उन्होंने न केवल देश की विविध संस्कृति और परंपराओं को देखा, बल्कि जीवन के कठिन अनुभवों को भी नजदीक से समझा। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
आध्यात्मिकता और स्वामी विवेकानंद का प्रभाव
मोदी के विचारों पर स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का गहरा असर पड़ा। विवेकानंद की जीवनी पढ़ने के बाद उन्होंने ठान लिया कि उन्हें भी जीवन को आध्यात्मिक खोज और समाज सेवा के लिए समर्पित करना है। यही वजह रही कि 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ने का साहसिक निर्णय लिया। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
विवेकानंद का ‘नए भारत’ का सपना और ‘जगतगुरु भारत’ की अवधारणा ने मोदी जी के जीवन को एक नई दिशा दी। यह यात्रा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक साधना भी थी, जिसने उनके व्यक्तित्व को और भी परिपक्व बनाया। (Photo Soiurce: @modiarchive/X)
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भारत भ्रमण का अनुभव
घर छोड़ने के बाद मोदी ने लगभग दो साल तक भारत के अलग-अलग हिस्सों की यात्रा की। वे हिमालय की वादियों में साधु-संतों के बीच रहे। इसके अलावा उन्होंने रामकृष्ण मिशन, बेलूर मठ में समय बिताया। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
विभिन्न आध्यात्मिक स्थलों और आश्रमों में रहकर सेवा कार्य और साधना की। इस दौरान उन्होंने भारतीय संस्कृति, विविधता और जीवन की सादगी को करीब से देखा। (Photo Soiurce: @modiarchive/X)
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बदला हुआ दृष्टिकोण और जीवन का उद्देश्य
लगभग दो साल तक भारत भ्रमण करने के बाद जब नरेंद्र मोदी घर लौटे, तो वे पहले जैसे नहीं थे। वे और अधिक परिपक्व, आत्मविश्वासी और स्पष्ट उद्देश्य वाले इंसान बन चुके थे। उन्हें अब पता था कि उनका जीवन सिर्फ व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि समाज और राष्ट्र की सेवा को समर्पित होगा। (Photo Soiurce: @modiarchive/X) -
अब उनके भीतर एक स्पष्ट लक्ष्य था— समाज के लिए काम करना, राष्ट्र निर्माण में योगदान देना, और गरीब और वंचित तबके की आवाज बनना। यही वह दौर था जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जोड़ा और आगे चलकर राजनीति तथा राष्ट्रसेवा के रास्ते पर अग्रसर किया। (Photo Soiurce: @modiarchive/X)
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