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गुजरात की सांस्कृतिक विरासत में कई ऐसे पर्व और मेले शामिल हैं, जो यहां के लोगों की परंपराओं और जीवनशैली को दर्शाते हैं। इन्हीं में से एक है ‘घेर नो मेलो’, जिसे गुजरात के सबसे बड़े आदिवासी समूह द्वारा रविवार को कावट में बड़े धूमधाम से मनाया गया। यह मेला न केवल आदिवासी संस्कृति को जीवंत रखता है, बल्कि समुदाय के लोगों को एक साथ जोड़ने का भी काम करता है। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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क्या है ‘घेर नो मेलो’?
‘घेर नो मेलो’ गुजरात के आदिवासी समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला एक पारंपरिक पर्व है, जिसमें लोग अपनी सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक नृत्य, संगीत और रीति-रिवाजों के माध्यम से अपनी परंपराओं को संजोते हैं। यह त्योहार सामुदायिक एकता, आपसी सहयोग और उत्सव के महत्व को दर्शाता है। (Express Photo by Bhupendra Rana) -
इस मेले का आयोजन कावट (Kavat) में किया गया, जहां गुजरात के विभिन्न हिस्सों से हजारों की संख्या में आदिवासी लोग एकत्र हुए और अपनी परंपरागत धरोहर का जश्न मनाया। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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कैसे मनाया जाता है यह पर्व?
‘घेर नो मेलो’ में आदिवासी समुदाय के लोग पारंपरिक पोशाक पहनकर विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेते हैं। इस मेले में मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्यक्रम होते हैं—
(Express Photo by Bhupendra Rana) -
पारंपरिक नृत्य एवं गीत: इस मेले में आदिवासी समुदाय अपने पारंपरिक नृत्य पेश करते हैं, जिनमें ‘गरबा’, ‘तिमली’, ‘डांग नृत्य’ और अन्य लोकनृत्य शामिल होते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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विशेष पूजा-अर्चना: इस दिन विशेष रूप से देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, जिसमें समुदाय के बुजुर्ग और युवा शामिल होते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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सामुदायिक दावत: मेले में लोगों के लिए विशेष पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं, जिन्हें सभी मिल-बांटकर खाते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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हस्तशिल्प और पारंपरिक वस्तुओं की प्रदर्शनी: इस मेले में आदिवासी समुदाय द्वारा बनाए गए हस्तशिल्प, पारंपरिक आभूषण, हथकरघा वस्त्र और अन्य उत्पादों की प्रदर्शनी लगाई जाती है। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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कृषि और पशुपालन से जुड़ी गतिविधियां: इस मेले में किसानों और पशुपालकों के लिए विशेष आयोजन किए जाते हैं, जहां वे अपनी खेती और पशुपालन से जुड़े अनुभव साझा करते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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‘घेर नो मेलो’ का महत्व
यह मेला सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय की एकता, परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण का प्रतीक है। यह उत्सव नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने और उनके अंदर अपने सांस्कृतिक गौरव को बनाए रखने का भी एक जरिया है। (Express Photo by Bhupendra Rana) -
इस मेले की खास बात यह है कि इसमें ‘घेर’ (Ghers) नामक नृत्यकार होते हैं, जो अपने विशिष्ट परिधान और साज-सज्जा के लिए जाने जाते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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घेर पारंपरिक रूप से रंग-बिरंगे सिर के आभूषण पहनते हैं, जिन्हें मोर पंखों से सजाया जाता है। इन सिर के आभूषणों पर अक्सर आईना या पारिवारिक तस्वीरें लगाई जाती हैं। घेर अपने चेहरे और शरीर को सफेद स्याही से विभिन्न पशु प्रिंटों से सजाते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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साथ ही, वे घंटियों से सजी हुई बेल्ट पहनते हैं, जो उनके नृत्य के दौरान बजती हैं और संगीत में एक अनूठा तालमेल जोड़ती हैं। कुछ घेर पारंपरिक पुरुष पोशाक में होते हैं, तो कुछ महिला पोशाक धारण करते हैं। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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मेले में घेरों का नृत्य देखने लायक होता है। वे एक अनजाने से लगने वाले बीट पर नृत्य करते हैं, लेकिन उनके हर कदम में एक अद्भुत सामंजस्य देखने को मिलता है। यह नृत्य मुख्य रूप से ढोल और बांसुरी की धुनों पर किया जाता है। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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नृत्य के दौरान कुछ घेर अपने शरीर को तेल और ग्रीस से चिकना कर लेते हैं, जिससे उनकी गतियों में अलग सी चमक और लय देखने को मिलती है। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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इस मेले का आयोजन समुदाय के सामाजिक और आर्थिक विकास में भी सहायक होता है, क्योंकि यहां स्थानीय कारीगरों और कलाकारों को अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने और बेचने का अवसर मिलता है। (Express Photo by Bhupendra Rana)
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