-
भारतीय मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं, बल्कि दिव्य ऊर्जा का केंद्र होते हैं। यहां की हर परंपरा, हर क्रिया और हर आचरण के पीछे गहरी आध्यात्मिक समझ छिपी होती है। अक्सर लोग अनजाने में कुछ ऐसी गलतियाँ कर देते हैं, जो मंदिर-शिष्टाचार के अनुसार सही नहीं मानी जातीं। आइए जानें मंदिर में कौन-कौन सी बातें जरूर ध्यान रखनी चाहिए और उनका आध्यात्मिक महत्व क्या है। (Photo Source: Pexels)
-
देवी–देवता के बिल्कुल सामने खड़े न हों
पूजा करते समय सीधे मूर्ति के बिलकुल सामने खड़े होने से बचना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि भगवान के सामने थोड़ी दूरी और विनम्रता बनाए रखना चाहिए। साथ ही, आंखें पूरी तरह बंद न करें, बल्कि कुछ क्षणों के लिए भगवान के साथ आई कॉन्टैक्ट करें। इससे मन एकाग्र होता है और भावाभिव्यक्ति (expression of emotion) गहरी होती है। (Photo Source: Unsplash) -
हमेशा बाएं से दाएं (घड़ी की दिशा में) परिक्रमा करें
परिक्रमा करने की सही दिशा घड़ी की दिशा यानी बाएं से दाएं है। यह दिशा ऊर्जा प्रवाह के अनुरूप मानी जाती है। दाएं हाथ की ओर भगवान को रखकर क्लॉकवाइज परिक्रमा करने से शरीर और मन दोनों दिव्य कंपन के साथ तालमेल में आते हैं। (Photo Source: Unsplash) -
दर्शन के बाद तुरंत वापस न लौटें
दर्शन करने के बाद लोग अक्सर जल्दी में बाहर निकल जाते हैं, जबकि शास्त्रों में कहा गया है कि कम से कम एक मिनट वहीं बैठकर शांत रहना चाहिए। इससे मंदिर की सकारात्मक तरंगें आपके शरीर और आभामंडल (aura) में प्रवेश कर पाती हैं। (Photo Source: Pexels) -
चप्पल इस तरह न रखें कि कोई उसके ऊपर से गुजर जाए
मंदिर के बाहर चप्पल ऐसे न रखें कि किसी को उसके ऊपर से गुजरना पड़े। कहा जाता है कि किसी का चप्पल के ऊपर से गुजरना आपके सौभाग्य पर से लांघने जैसा माना जाता है। (Photo Source: Unsplash) -
घंटा बजाने के बाद उसके नीचे एक क्षण ठहरें
घंटे की ध्वनि मन के विकार दूर करती है, मानसिक स्पष्टता बढ़ाती है और चेतना को जागृत करती है। इसलिए घंटा बजाने के बाद उसके नीचे कुछ क्षण खड़े होकर उसकी दिव्य कंपन को महसूस करना चाहिए। यह मन को शुद्ध करता है और आंतरिक ऊर्जा जगाता है। (Photo Source: Unsplash) -
महिलाओं के लिए शास्त्रीय नियम
शास्त्रों में महिलाओं को शक्ति-स्वरूपा कहा गया है। इसीलिए उन्हें पूर्ण साष्टांग दंडवत करने की आवश्यकता नहीं मानी जाती। हाथ जोड़कर, आधा शाष्टांग भी उनके लिए पूर्ण होता है। (Photo Source: Unsplash)
(यह भी पढ़ें: मंत्र लिखे वस्त्र पहनना शुभ होता है या अशुभ? जानिए क्या कहते हैं प्रेमानंद महाराज) -
पैरों को तुरंत न धोएं
कई लोग दर्शन के बाद तुरंत अपने पैर धो लेते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि मंदिर का स्पंदन पैरों और सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से भी शरीर में प्रवेश करता है। इसलिए तुरंत पैरों को धोना उचित नहीं माना गया, कुछ देर तक पैरों को वैसे ही रहने दें। (Photo Source: Unsplash) -
प्रसाद को वहीं खड़े-खड़े स्वीकार करें
प्रसाद केवल भोजन नहीं, ईश्वरीय आशीर्वाद माना जाता है। इसे घर ले जाने से पहले मंदिर परिसर में ही थोड़ी मात्रा अवश्य ग्रहण करें। दर्शन के तुरंत बाद वहीं खड़े होकर प्रसाद ग्रहण करना अधिक शुभ माना गया है। यही शास्त्रीय परंपरा है। (Photo Source: Unsplash) -
मंदिर के शिखर को प्रणाम जरूर करें
मंदिर में प्रवेश करते ही सबसे पहले शिखर दर्शन करें। कहा गया है- ‘शिखर दर्शनम् सर्व पाप नाशनम्’, यानी मंदिर के शिखर का दर्शन करने से अनेक दोष और नकारात्मकता दूर होती है। यह परंपरा अत्यंत पुण्यदायी है। (Photo Source: Pexels) -
मंदिर की पिछली दीवार को छूना क्यों शुभ माना जाता है?
मंदिर की पिछली दीवार को देवस्थान के सबसे करीब माना जाता है। कहा जाता है कि गर्भगृह में स्थापित देवता के ठीक पीछे मंदिर की पिछली दीवार होती है। यह स्थान दिव्य ऊर्जा के सबसे निकट माना जाता है। इस दीवार को स्पर्श करना ऐसा माना जाता है मानो आप भीतर स्थापित शक्ति से सीधे जुड़ रहे हों। कई भक्त मानते हैं कि अगर वे गर्भगृह के अंदर नहीं जा पा रहे हैं, तो पीछे की दीवार को छूने से वही ऊर्जा प्राप्त होती है। (Photo Source: Pexels) -
मंदिर के ताले को छूना एक कृतज्ञता का संकेत
कई श्रद्धालु मंदिर के दरवाजे के ताले को छूते हैं। मंदिर के बंद ताले को छूना इस भाव से होता है-‘आज इस ताले के खुलने से ही हमें प्रभु का दर्शन मिला। इसलिए इसे स्पर्श करके कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।’ (Photo Source: Freepik) -
मंदिर दर्शन केवल ‘दर्शन’ नहीं, एक आध्यात्मिक यात्रा है
मंदिर जाने का अर्थ सिर्फ भगवान को देख लेना नहीं है। मंदिर में हमारा हर कदम, हर भाव, हर क्रिया ऊर्जा को प्रभावित करता है। चाहे वह प्रसाद ग्रहण करने का तरीका हो, परिक्रमा की दिशा हो, चप्पल रखने का ढंग, ये सभी छोटी-छोटी बातें हमारी आध्यात्मिक अनुभूति को गहरा बनाती हैं और आशीर्वाद को कई गुना बढ़ा देती हैं। (Photo Source: Pexels) -
ये नियम किसी पर जबरदस्ती नहीं हैं, बल्कि शास्त्रों में वर्णित सद्भावनाएं हैं, जिन्हें अपनाने से मंदिर यात्रा और भी पवित्र और फलदायी बनती है। हालांकि, आप अपनी सुविधा और श्रद्धा के अनुसार मंदिर दर्शन कर सकते हैं। ये बातें हिंदू शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार बताई गई हैं, जिनका पालन करने से दिव्यता का अनुभव और गहरा महसूस होता है। (Photo Source: Pexels)
(यह भी पढ़ें: मंदिरों की घंटी बजाने का रहस्य, जानिए क्या होता है असर और इसके पीछे का विज्ञान)