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कर्नाटक में भारी सियासी ड्रामे के बाद आखिरकार मंगलवार (23 जुलाई, 2019) को एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली जेडी(एस) और कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार गिर ही गई। विस में विश्वास मत पर वोटिंग के दौरान उसके खिलाफ 105 वोट पड़े, जबकि 99 वोट इसके पक्ष में डले। यह वही कुमारस्वामी हैं, जिन्होंने खुद कभी बगावत कर सीएम की कुर्सी हासिल की थी, पर वह कभी भी मुख्यमंत्री रहते हुए अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। इससे पहले, चार फरवरी, 2006 से नौ अक्टूबर 2007 (लगभग 21 माह) तक वह सूबे के सीएम रहे थे।
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मौजूदा समय में उन्हें अपने (कांग्रेस) विधायकों के जिस बागी रवैये का सामना करना पड़ा, कुछ ऐसा ही रवैया 2006 में उनके नेतृत्व में जेडी(एस) के 42 एमएलए ने अपनाया था। सूबे में तब भी जेडी(एस)-कांग्रेस के गठबंधन वाली सरकार थी और कांग्रेसी नेता धर्म सिंह तब मुख्यमंत्री थे।
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सरकार गिरने के पीछे उस दौरान यही वजह रही कि कुमारस्वामी 42 विधायकों के साथ अलग हो गए थे। आगे तत्कालीन राज्यपाल टीएन चतुर्वेदी ने उन्हें सरकार बनाने के लिए न्यौता दिया था, जिसके बाद कुमारस्वामी के नेतृत्व में जेडी(एस)-बीजेपी के गठजोड़ की सरकार बनी थी।
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आगे 2018 के विस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को 104 सीट हासिल हुईं, जबकि कांग्रेस को 80 और जेडीएस के खाते में 37 सीटें आई थीं। फिर 23 मई को कुमारस्वामी को सीएम की जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला, मगर इस बार भी उनकी किस्मत उन्हें दगा दे गई।
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कुमारस्वामी इस बार में महज 14 महीने ही सरकार चला सके। सरकार गिरने के चंद देर बाद राज्यपाल वजुभाई वाला को उन्होंने इस्तीफा सौंपा। विश्वास मत पर वोटिंग के दौरान वह बोले- मैं दुर्घटनावश सीएम हूं। मुझे भाग्य यहां तक खींच कर लाया है।
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बता दें कि कर्नाटक में कांग्रेस-जद(एस) की सरकार गिरने के साथ ही सूबे में लगभग तीन हफ्ते से चल रहे सियासी ड्रामे का अंत भी हो गया। कुमारस्वामी को संख्या बल का साथ नहीं मिला और उन्होंने विश्वास मत प्रस्ताव पर चार दिन की चर्चा के खत्म होने के बाद हार का सामना किया। विधानसभा में बीते गुरुवार को उन्होंने विश्वास मत का प्रस्ताव पेश किया था। (सभी फोटोः पीटीआई)
