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जम्मू कश्मीर इस वक्त चुनाव को लेकर चर्चा में है। यहां पर 10 सालों बाद विधानसभा चुनाव हुआ है। ऐसे में हर किसी की नजर नतीजों पर टिकी हुई है कि वादी की किसकी सत्ता बनेगी। ऐसे में आइए जानते हैं कश्मीर का लाल सोना किसे कहते हैं और इसका ईरान से क्या नाता है? (Photo: Pexels)
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क्या है लाल सोन?
दरअसल, केसर को कश्मीर का लाला सोना कहा जाता है। पूरी दुनिया में ईरान के बाद भारत केसर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। केसर को दुनिया का सबसे महंगा मसाला भी कहा जाता है। ये अपने रंग, खुशबू, स्वाद और औषधि गुणों के लिए जाना जाता है। (Photo: Freepik) -
भारत दूसरे स्थान पर
दुनिया में खपत होने वाले केसर का 90 फीसदी उत्पादन ईरान करता है। ईरान दुनिया में पैदा होने वाले लगभग 500 टन केसर में से 450 टन की सप्लाई अकेले ही करता है। दूसरे स्थान पर भारत है जो लगभग 25 टन केसर का उत्पादन करता है और देश में सबसे अधिक केसर कश्मीर में पाया जाता है। (Photo: Freepik) -
एक किलो केसर में कितने लगते हैं फूल?
एक ग्राम केसर में करीब 463 धागे होते हैं जिनकी लंबाई 3/8 से 1/2 इंच होती है। केसर क्रोकस नामक फूल के लाल स्टिग्मा से मिलता है। एक किलो केसर के लिए 1.5 लाख से 2 लाख फूलों को हाथों से इकट्ठा करना होता है। (Photo: Pexels) -
मिला है जीआई टैग
कश्मीरी केसर को जीआई टैग भी मिला हुआ है। एक किलो केसर की कीमत 2 से 3 लाख रुपये तक जा सकती है। कश्मीर हर साल करीब 18 लाख टन केसर का उत्पादन करता है। कश्मीर के पंपोर इलाके में सबसे अधिक केसर की खेती होती है। इसके अलावा बडगाम और श्रीनगर में भी इसकी खेती होती है। कश्मीर की लाल मिट्टी और वहां का ठंडा मौसम इसके लिए काफी उपयुक्त होता है। (Photo: Freepik) -
ईरान में क्या कहते हैं?
केसर ईरान से होते हुए भारत पहुंची। ईरान में इसे ‘देवताओं का मसाला’ कहा जाता है। इतिहासकारों की मानें तो ईरान के शासकों ने अपने शाही बगीचों में केसर की खेती को बढ़ावा दिया था और इसे एक अनमोल खजाने की की तरह संजोया। (Photo: Freepik) -
कैसे पहुंचा भारत?
ईरान के बाद केसर का सफर यूनान और रोम तक पहुंचा। इन सभ्यताओं में केसर को एक बहुमूल्य वस्तु माना जाता था और इसका उपयोग खाद्य पदार्थों, औषधियों और सौंदर्य उत्पादों में किया जाता था। (Photo: Freepik) -
ये लेकर केसर आए थे भारत
इतिहासकारों की मानें तो छठी शताब्दी ईसा पूर्व में फोनेशियन व्यापारियों ने कश्मीर में केसर का व्यापार शुरू किया था। वो अपने जहाजों में केसर लेकर कश्मीर आते थे और यहां के स्थानीय लोगों को इसकी खेती करना सिखाते थे। (Photo: Freepik) -
ये भी मान्यता
केसर को लेकर एक पारंपरिक मान्यता है कि 11वीं और 12वीं शताब्दी के आसपास दो विदेशी सन्यासी हजरत शेख शरीफुद्दीन और ख्वाजा मसूद वली कश्मीर आए थे। इसी दौरान वो बीमार पड़ गए। उस दौरान कश्मीर में एक आदिवासी समुदाय ने उन सन्यासियों का इलाज किया। इसके बदले में संन्यासियों ने आदिवासियों को एक अनमोल उपहार दिया जो केसर का फूल था जिसके बाद भारत में इसकी पैदावार शुरू हुई। (Photo: Freepik)