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साख दांव पर: मैं उम्मीद करता हूं कि सरकार, न्यायपालिका आतंकवाद के सभी मामलों में ऐसी ही तत्परता और प्रतिबद्धता दिखाएगी चाहे आरोपी कोई भी जाति और धर्म का क्यों न हो। ऐसे आरोपियों पर जिस तरह मामला चल रहा है उसे लेकर मन में संदेह है। आइए देखते हैं क्या होता है। सरकार और न्यायपालिका की साख दांव पर है। (दिग्विजय सिंह, कांग्रेस नेता)
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मृत्युदंड नहीं आतंकवाद का हल: ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि मृत्युदंड प्रतिरोधक के तौर पर काम करता है। यह सब सरकार की अयोग्यता है। मृत्युदंड से कहीं भी आतंकी हमले को नहीं रोका जा सका है। (शशि थरूर, कांग्रेस नेता)
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रक्तपिपासु होने की क्या जरूरत: फांसी की सजा एक तरह से राज्य की ओर से दंडात्मक हिंसा है और यह हिंसक भीड़ की मानसिकता को दर्शाता है। हमें इतना रक्तपिपासु होने की क्या जरूरत थी? (प्रशांत भूषण, वरिष्ठ वकील)
