इन दिनों हमारे विचारों की दुनिया में अजीब-सी अराजकता फैली हुई है। मानो हम बिना किसी लक्ष्य दिशाहीन होकर भटक रहे हों और बेवजह की बातों के जंगल में कहीं खो गए हों। हमें समझना होगा कि हमारे विचारों का मकसद हमें एक अच्छा, सलीकेदार, सभ्य, सुसंस्कृत, सफल, समृद्ध और सम्मानित इंसान बनना होना चाहिए। एक समझदार इंसान अपने विचारों को हमेशा किसी सही उद्देश्य और अपनी सुरुचि के अनुसार इस्तेमाल करता है।

हमारे मन में हर पल कई प्रकार के विचार आते हैं। समझ से काम न लें, तो हम उनमें उलझ कर रह जाते हैं। नकारात्मक और निरर्थक विचारों की उलझन में हम जीवन के अर्थ खो देते हैं।

आकर्षण का नियम कहता है कि समान चीजें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं। जैसा हम सोचते हैं, वैसे ही और नए विचार हमारी ओर आने लगते हैं। हम नकारात्मक विचार पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो कुछ ही मिनट में आपके मन में ऐसे ही विचार आते हैं जो हमें परेशान करते हैं। मन बहुत उलझ गया हो, विचलन और झुंझलाहट महसूस हो रही हो, तो कभी शांत बैठकर यह जानना चाहिए कि जीवन से क्या चाहिए।

जब तक ईमानदारी से यह स्वीकार नहीं करते कि हम वास्तव में चाहते क्या हैं, तब तक एक भ्रम बना रहेगा। जब तक हम अपने जीवन, किसी परिस्थिति या रिश्तों में साफ-साफ यह नहीं मांगते कि हमें क्या चाहिए, तब तक स्पष्टता नहीं आएगी। यह भ्रम तब तक नहीं जाएगा। इसलिए विषम परिस्थितियों में कुछ देर शांत बैठ कर अपने भीतर झांकना चाहिए, ताकि हम सच में जान सकें कि जीवन से चाहते क्या हैं।

अक्सर होता यह है कि जल्दीबाजी में हम अपने जीवन को ही ध्यान से नहीं देख पाते। नतीजतन, समस्याओं और नकारात्मकता में उलझ कर हम तनावग्रस्त हो जाते हैं। यह समझना होगा कि समस्याएं जीवन का एक अभिन्न अंग हैं और इनसे निपटते हुए आगे बढ़ना ही जीवन की कला है।

इस दुनिया में हमारे लिए सब कुछ आसान होने वाला नहीं है। यहां हमें अपने जीवन के हर मोड़ पर कुछ अनुभव प्राप्त होंगे। इन्हें एकत्रित करके उनसे कुछ सीखना है। जीवन निरंतर परिवर्तनशील विषयों से भरा हुआ है। हमें बार-बार कुछ न कुछ छोड़ना पड़ता है। जैसे अपना प्यार भरा बचपन, मनभावन सपने और कई बार अपने प्रियजन। यह बेहद स्वाभाविक है।

जीवन में सुख और विकास के लिए यह सीखना बहुत जरूरी है कि हर चीज हमेशा के लिए नहीं होती। नुकसान को बदलाव और बिछोह को इसी तरह स्वीकार करना चाहिए कि हर रिश्ते, हर दौर का अंत होता ही है। कई बार हमें खुद ही आगे बढ़ने के लिए लोगों और चीजों को विदाई देनी पड़ती है। अपेक्षाओं को छोड़ना सुकून और विनम्रता की दिशा में उठाया गया पहला कदम है।

अगर हम जीवन को इस नजरिए और उद्देश्य से देखने लगें कि यहां हर रोज कोई नया अनुभव हासिल करना है और जीवन जीने की नई कला सीखनी है, तो विचारों की धारा और जीवन का अंदाज ही बदल जाएगा। फिर मुसीबतें सीखने का अवसर और चुनौतियां परीक्षा जैसी लगने लगेंगी, जिसमें उत्तीर्ण होकर हम खुद को सफल महसूस करेंगे।

हमें सोचना होगा कि जीवन एक अभ्यास-पुस्तिका है, जिसमें दिए गए सवालों को हल करना हमारी दिनचर्या है। एक समस्या और है जो हमारे विचारों को घुटन और अराजकता की तरफ धकेलती है। स्मार्टफोन के इस युग में वाट्सऐप और एसएमएस के जरिए टेलीग्राम की तरह अति संक्षिप्त संदेश प्रेषण की आदत ने हमारी अभिव्यक्ति की कला, संवाद प्रेषण, शब्द भंडार और भावनाओं का क्षरण कर लिया है।

आमने-सामने बैठकर बातचीत या फोन पर बातचीत करना मानो लोग भूल ही गए हैं। ऐसे में जब हम अपनी भावनाओं को दबा लेते हैं, तो विभिन्न मानसिक, शारीरिक व्याधियों के शिकार हो जाते हैं या फिर लोगों से हिंसा घृणा आदि होने लगती है।

आज भावनात्मक समस्याएं बीमारियों की एक बड़ी वजह बनती जा रही हैं। अत्यधिक सूचनाओं, अफवाहों और नकारात्मक माहौल के कारण विचारों में अराजकता अत्यधिक बढ़ गई है। लोग जाने अनजाने भय, अकेलेपन, हताशा, अवसाद, बेचारगी से जूझ रहे हैं। लोगों में जीवन की निरर्थकता के भाव उन्हें चैन से नहीं जीने दे रहे हैं।

लोगों में अपनी पीड़ा छिपाने और दूसरों के साथ साझा न करने की प्रवृत्ति दिनोंदिन बढ़ रही है। जबकि समाजशास्त्रियों, व्यवहार विशेषज्ञों और मनोवैज्ञानिकों ने परिचित या अपरिचित लोगों से संवाद करने की प्रवृत्ति को सुखी, स्वस्थ और सुकूनदेह जीवन के लिए आवश्यक बताया है।

हाल ही में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया कि जब लोग अपनी ढकी-छिपी भावनाओं के बारे में बातें करते हैं, तो उन्हें सुकून और शांति मिलती है। यह प्रक्रिया उन्हें अपनी भावनाओं को समझने में मददगार भी होती है।

कई बार चिंता फायदेमंद भी होती है। किसी बुरी खबर का सामना करने के लिए जिस तरह की तैयारी करनी जरूरी हो जाती है, उसके लिए यह भी जरूरी होता है कि हम उनके उपाय और नतीजे पर चिंतन करें। किसी बुरी स्थिति में हम पहले ही सोच लें कि ज्यादा से ज्यादा क्या बुरा हो सकता है और उसे उससे कैसे निपट सकते हैं। इससे अवसाद नहीं होगा।

हां, किसी दुख और परेशानी का सामना करना है तो ऐसा पूरी तरह से सकारात्मक होकर ही किया जा सकता है। हम अपने मन की निराशाओं को इस तरह से संभालें कि उससे हमारे वर्तमान पर किसी तरह का कोई असर न पड़ सके। यह तभी संभव है कि हम बेचैन न हों। इससे हम लगातार सकारात्मक और शांत बने रहेंगे।

कुछ लोग खुद को दुखी रखने और दिखने के लिए अपने दुखों का अभ्यास भी करते रहते हैं। यह एक बुरी आदत है जो किसी को भी कभी चैन से रहने नहीं देती।