समय प्रकृति के द्वारा दिया गया एक ऐसा अमूल्य उपहार है, जो निरंतर गतिमान रहता है। विशेष बात यह है कि इसकी गति पर किसी भी परिस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। समय के तीन पहलू हैं, जिनको हम भूतकाल, वर्तमान एवं भविष्य के नाम से जानते हैं। अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो इन सभी पहलुओं में वर्तमान का महत्त्व सर्वाधिक है। कारण यह है कि भूतकाल स्मृतियों के रूप में संचित हो जाता है और भविष्य कल्पनाओं के रूप में प्रस्फुटित होता रहता है। इन दोनों पर ही हमारा लेशमात्र भी नियंत्रण नहीं होता। समय के जिस पहलू को हम अपने अनुसार नियंत्रित और समायोजित कर सकते हैं, वह है वर्तमान।

इतना अवश्य है कि इस वर्तमान को सुंदर ढंग से चित्रित करने और सजाने-संवारने में हम भूतकाल की स्मृतियों और अनुभवों तथा भविष्य के लिए की गई कल्पनाओं का सहारा ले सकते हैं।

भूतकाल के साथ अनेक सकारात्मक और नकारात्मक पहलू जुड़े रहते हैं

वर्तमान का प्रत्येक छोटे से छोटा क्षण हमारे लिए एक छोटे से जीवन की भांति है, जिसको हमें खुलकर पूरी प्रसन्नता और उत्साह के साथ जीने का प्रयास करना चाहिए। भूतकाल के साथ अनेक सकारात्मक और नकारात्मक पहलू जुड़े रहते हैं। अच्छे अनुभव और स्मृतियां इसके सकारात्मक पहलू हैं, जबकि असफलताएं, कठिन संघर्ष और कष्ट भूतकाल के नकारात्मक पहलू को निर्मित करते हैं।

यह पूर्णतया हमारी बुद्धिमत्ता और विवेक पर निर्भर करता है कि हम भूतकाल के किस पहलू का उपयोग वर्तमान की रचना करने में करते हैं। रही बात भविष्य की, तो वह तो पूर्णतया हमारे हाथ से बाहर है। हम केवल और केवल अपने लक्ष्य से संबंधित अच्छी कल्पनाएं करके, उनके रंगों को वर्तमान के आलेखन में सुव्यवस्थित और सुनियोजित ढंग से भर सकते हैं।

भविष्य को लेकर अपने मन में प्रतीक्षा का भाव रखना और इस कारण वर्तमान की उपेक्षा करते रहना नितांत अविवेकपूर्ण है। यह एक कटु सत्य है कि जब वर्तमान भूतकाल में परिणत हो जाता है, तभी हमें उसकी वास्तविक सुंदरता का अनुभव होता है। भूतकाल के लिए पश्चाताप और भविष्य के लिए चिंता हमें एक ऐसे भंवर में धकेल देते हैं, जो हमारे सुंदर सपनों और आकांक्षाओं से हमें हमेशा के लिए दूर कर देता है। हमें आशा, शांति, सुकून और संतोष से भरे हुए जीवन का अनुभव करने के लिए भूत और भविष्य पर केंद्रित न रहते हुए सतत रूप से वर्तमान की सुंदरता का रसास्वादन करते रहना चाहिए।

वर्तमान और वास्तविकता सही मायने में एक दूसरे के पर्याय है

वर्तमान की उपेक्षा करना किसी भी दृष्टिकोण से बुद्धिमता का परिचायक नहीं है, क्योंकि वर्तमान और वास्तविकता सही मायने में एक दूसरे के पर्याय हैं। भूतकाल वास्तविकता के दायरे को पार करके एक अलग आयाम में पहुंच चुका है, जबकि भविष्य अभी वास्तविकता में परिणत ही नहीं हुआ है। इसलिए भूतकाल और भविष्य से बंधे रहकर वर्तमान की सुंदरता को भूल जाना कहीं न कहीं हमारे अविवेक और अदूरदर्शिता को ही दर्शाता है। वर्तमान का प्रत्येक पल अपने आप में एक अल्पकालिक, लेकिन सुंदर से जीवन को अभिव्यक्त करता हुआ प्रतीत होता है।

आवश्यकता है केवल उसे पहचानते हुए उसकी अद्भुत सुंदरता में खोकर जीवन के उस अमूल्य क्षण में छिपे हुए आनंद की अनुभूति करने की। भूतकाल की कल्पना और भविष्य की चिंता निश्चित रूप से इस अनुभूति में बहुत बड़ी बाधक बन सकती है। चिंता, दुख और निराशा जैसे भाव तभी जन्म लेते हैं, जब हम या तो भूतकाल के विषय में अधिक विचार करते हैं या फिर भविष्य को लेकर अगणित निराधार कल्पनाओं में खो जाते हैं।

वर्तमान तो ऐसा क्षण है, जिसको अपनी अपेक्षानुरूप आकार देना पूर्ण रूप से हमारे अपने वश में होता है। जरा अपने विवेक और दूरदर्शिता के साथ इस तथ्य के विषय में विचार करें कि जो हमारे विचारों, बुद्धिमता एवं क्षमताओं के दायरे से बाहर है, उसके पीछे अपने अमूल्य समय को बर्बाद करके हमें क्या हासिल होने वाला है। हमारे दृष्टिक्षेत्र एवं कल्पनाक्षेत्र की सीमाओं के भीतर केवल और केवल वर्तमान ही है। सुख एवं प्रसन्नता का भाव केवल और केवल वर्तमान पर केंद्रित रहकर ही अर्जित किया जा सकता है।

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भविष्य को लेकर योजना बनाना तो सर्वथा उचित है किंतु यह मान लेना कि भविष्य हमारे विचारों के अनुरूप ही आकार ग्रहण करेगा, बेवकूफी है। वर्तमान का प्रत्येक क्षण शांति एवं प्रसन्नता का अथाह भंडार है, बशर्ते कि भूतकाल एवं भविष्य से संबंधित किसी भी तरह के विचार का उसके साथ कोई भी दखल न हो। प्रत्येक दिन हमें जीवन के रूप में प्रकृति द्वारा दिए गए अमूल्य उपहार के लिए उसे हृदय से धन्यवाद देना चाहिए।

प्रकृति के द्वारा रची गई सुंदर एवं अद्भुत प्रकृति की गोद में अपना कुछ समय व्यतीत करते हुए उसके मौन संदेश को सुनने एवं समझने का प्रयास करना चाहिए। प्रकृति की मौन ध्वनि को केवल और केवल उसी स्थिति में समझा जा सकता है जबकि हम शांत चित्त से एकांत में बैठकर अपनी अंतरात्मा से जुड़ने का प्रयास करें। मगर क्या यह उस स्थिति में संभव है जब हमारे अंतर्मन में भूतकाल एवं भविष्य को लेकर अनेक उधेड़बुन चल रही हो। संभवत: नहीं, क्योंकि प्रकृति से सच्चे अर्थो में जुड़ने के लिए मन का विकारमुक्त होना नितांत आवश्यक है।

चिंता एवं अनावश्यक विचारों की भीड़ मन को विकृत करने में अहम भूमिका निभाती हैं। जब मन पूर्णरूपेण वर्तमान के साथ सम्बद्ध होता है, तो हमारी भावनाएं, विचार, इच्छाशक्ति एवं संवेदनाएं बाहरी परिवेश के साथ पूर्णतया लयबद्ध होती हैं और ऐसी स्थिति में हम अपने अंतस के भीतर एक अद्भुत आनंद को जन्म लेता हुआ महसूस कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो वर्तमान से जुड़ाव ही जीवन को एक सही एवं अर्थपूर्ण दिशा प्रदान कर सकता है।