तमिलनाडु के करूर में हाल ही में हुई भीड़-संबंधी घटनाओं ने सार्वजनिक सुरक्षा पर बहस फिर से शुरू कर दी है। जहां 41 मौत और सैकड़ों के घायल होने के बाद भी अभिनेता से नेता बने विजय पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई वहीं अल्लू अर्जुन को पुष्पा 2 की स्क्रीनिंग में हुए हादसे के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। अगर देखा जाए तो फिल्म की स्क्रीनिंग के इवेंट की जिम्मेदारी किसी अभिनेता की नहीं होती है मगर जब किसी नेता की राजनीतिक रैली होती है तो सीधे तौर पर जिम्मेदारी उसकी होती है, उसके बावजूद जहां एक की गिरफ्तारी हो गई वहीं दूसरे का FIR में नाम तक नहीं है। आइए सिलसिलेवार इस घटना को समझते हैं।

27 सितंबर 2025 को तमिल अभिनेता से राजनेता बने विजय की पार्टी, तमिलागा वेत्रि कझगम (TVK) ने करूर, तमिलनाडु में एक विशाल राजनीतिक रैली आयोजित की। इस रैली में अनुमानित संख्या से अधिक लोग एकत्र हुए। रैली के दौरान विजय के वाहन के पास अचानक भीड़ बढ़ गई, जिससे भगदड़ मच गई। इस हादसे में 41 लोग अपनी जान गंवा बैठे, जिनमें 10 बच्चे और 17 महिलाएँ शामिल थीं, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए।

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तमिलनाडु पुलिस ने दो वरिष्ठ पार्टी कार्यकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया, जबकि विजय को आरोपी नहीं बनाया गया। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने मृतक परिवारों को 10 लाख रुपये की सहायता देने की घोषणा की। एक्सपर्ट के अनुसार यह हादसा भीड़ प्रबंधन की कमी और आपातकालीन योजना के अभाव के कारण हुआ।

इस घटना ने कई लोगों को अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’ की स्क्रीनिंग के दौरान हुई घटना की याद दिला दी।

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अल्लू अर्जुन स्क्रीनिंग घटना

13 दिसंबर 2024 को तेलुगु अभिनेता अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा 2’ की स्क्रीनिंग के दौरान हैदराबाद के संध्या थिएटर में भगदड़ मची। इस दौरान एक महिला की मौत हुई और उसका आठ साल का बेटा गंभीर रूप से घायल हुआ। अल्लू अर्जुन को इस मामले में गिरफ्तार किया गया, लेकिन अगले ही दिन उन्हें अंतरिम जमानत मिल गई। जांच में थिएटर सुरक्षा और भीड़ नियंत्रण में चूक सामने आई। यह मामला राजनीतिक बहस का विषय भी बन गया।

कार्रवाई में अंतर

दोनों घटनाओं की तुलना करने पर कार्रवाई में स्पष्ट अंतर नजर आता है। जहाँ 41 मौतों के बावजूद थलपति विजय के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, वहीं अल्लू अर्जुन को गिरफ्तार कर लिया गया। विजय की रैली में बड़ी संख्या में लोग थे और यह मास कैजुअल्टी थी। जिम्मेदारी मुख्य रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं को दी गई और न्यायिक जांच की मांग की गई। वहीं, अल्लू अर्जुन की स्क्रीनिंग में भीड़ कम थी, लेकिन अभिनेता की गिरफ्तारी हुई।

जहाँ 41 लोगों की मौत होने के बावजूद थलपति विजय के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, वहीं अल्लू अर्जुन को केवल एक मौत की घटना में गिरफ्तार किया गया। इस अंतर ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं: क्या कार्रवाई घटना की गंभीरता पर आधारित है या मीडिया और सार्वजनिक दबाव पर?