देश में सड़कों पर सुरक्षा का मसला अब गंभीर चिंता का विषय बन गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग हों, एक्सप्रेस-वे हों या फिर संपर्क मार्ग, हर जगह रोजाना बड़ी संख्या में लोग दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। यह आशंका हमेशा बनी रहती है कि पता नहीं कब, किस मार्ग पर किसके साथ हादसा हो जाए। सवाल है कि तमाम सड़कों पर वाहनों में या पैदल यात्रा करना अब इतना जोखिम भरा और खतरनाक क्यों होता जा रहा है? बड़े वाहन हो या फिर दो पहिया, किसी पर भी यात्रा करना अब सुरक्षित नहीं रह गया है? सबसे ज्यादा खतरा पैदल यात्रियों को सताने लगा है।
सड़क की इस हकीकत से सरकार और प्रशासनिक अमला सभी भली-भांति वाकिफ हैं। मगर हादसों को रोकने के लिए कोई भी उपाय अभी तक कारगर साबित नहीं हुआ है।
भारत में सड़क सुरक्षा की स्थिति बेहद चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2023 में देशभर में 4.61 लाख सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिसमें से 1.72 लाख से ज्यादा लोगों की असमय मौत हो गई। यह तब है, जब देश में सड़क तंत्र का महज दो फीसद हिस्सा-राष्ट्रीय राजमार्ग हैं, जो 30-35 फीसद मौतों के लिए जिम्मेदार है।
यह आंकड़ा दर्शाता है कि देश भर में सभी तरह की सड़क दुर्घटनाओं में होने मौतों में सबसे ज्यादा भूमिका राष्ट्रीय राजमार्गों की है। चिंता की बात यह है कि तमाम सुरक्षात्मक नियमों, कानूनों और जागरूकता अभियानों के बावजूद राजमार्गों पर हो रही दुर्घटनाओं में कमी आने के बजाय इनकी संख्या लगातार बढ़ रही हैं।
जिन कारणों से सड़क हादसों में तेजी आई है, उनमें खराब सड़क अभियांत्रिकी भी है, जिसमें अंधे मोड़, तिरछे-आड़े मोड़ और जरूरी सुरक्षा संकेतों की कमी शामिल है। इसके अलावा सीमा से अधिक गति, चालकों की थकान और ध्यान विचलन भी एक बड़ी वजह है।
कमजोर प्रवर्तन भी राजमार्ग पर हादसों का एक कारण है, जिसमें यातायात प्रबंधन की कमी और सीमित गति कैमरों के कारण नियमों का पालन न हो पाना है। इसके साथ ही सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के दिशा-निर्देशों की अनदेखी, पर्याप्त रोशनी का अभाव, कोहरा, लापरवाही से वाहन चलाना और अचानक ब्रेक फेल हो जाना भी हादसों की वजह बन रहा है।
सड़क सुरक्षा के लिए महज अवसंरचना का विकास ही जरूरी नहीं है, बल्कि वक्त के अनुसार सुरक्षा नियमों में बदलाव और व्यापक जनजागरूकता भी आवश्यक है। पिछले दस वर्षों में केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय और राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने सड़क हादसों को कम करने के लिए तमाम तरह के कदम उठाए हैं, लेकिन उससे हादसों में कमी नहीं आई।
इन कदमों के तहत सड़क से अतिक्रमण हटाने के लिए केंद्र से राज्यों को निर्देश तथा सड़कों के डिजाइन, संकेतकों और लेन में सुधार के अलावा ‘ब्लैक स्पाट’ की पहचान एवं सुधार कार्य में तेजी लाना जैसे उपाय शामिल हैं।
सरकार ने उन्नति पूर्ण चालक सचेत यांत्रिकी यानी एडीएएस को सभी ट्रक और बसों में अनिवार्य करने का फैसला किया है। इसी तरह अक्तूबर, 2027 तक वाहनों के नए माडल में स्वचालित आपात ब्रेक्र प्रणाली, ‘डाइवर ड्रोजिंनेस अलर्ट’ और ‘लेन डिपार्चर वार्निंग’ प्रणाली लगाना जरूरी ہوگا। वर्ष 2028 से सभी पुराने माडल में भी ये व्यवस्थाएं करनी होंगी।
मगर, राजमार्गों पर बढ़ती वाहनों की संख्या की वजह से ये कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं। जाहिर है कि सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में महज नीतिगत सुधार के अलावा व्यावहारिक रूप से हादसों को रोकने के लिए और भी ज्यादा सुधार करने होंगे। जब तक नीति, कानून और कार्यान्वयन पर बराबर गौर नहीं किया जाएगा, तब तक सड़कें पूरी तरह से सुरक्षित और भयरहित नहीं बन पाएंगी।
सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में महाराष्ट्र ने एक मिसाल पेश की है। इसके तहत विशेष राजमार्ग पुलिस बल का गठन किया गया है। इस बल में दो हजार से ज्यादा कर्मी तैनात हैं, जो राज्य के प्रमुख राष्ट्रीय एवं राज्य राजमार्गों पर निरंतर गश्त और निगरानी करते हैं। महाराष्ट्र का यह माडल दूसरे राज्यों के लिए नजीर बन सकता है। अगर केंद्र सरकार इसे राष्ट्रीय स्तर पर लागू करे, तो सड़क हादसों की बढ़ती संख्या पर कुछ हद तक अंकुश लगाया जा सकता है। दूसरे राज्यों में यह जिम्मेदारी राज्य पुलिस और यातायात पुलिस इकाइयां बखूबी निभा सकती हैं।
आजादी के बाद से तमाम सुरक्षा जरूरतों के लिए पुलिस या सुरक्षा बलों का गठन किया गया, लेकिन यातायात सुरक्षा बल का गठन केंद्रीय स्तर पर नहीं हो सका है। सवाल है कि जब सरकार सड़क सुरक्षा के लिए बजट में निर्धारित राशि भी खर्च न कर पा रही हो, तो सुधार की उम्मीद कैसे बने?
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर ‘गति प्रबंधन दिशा-निर्देश’ जितनी जल्दी हो सके, लागू किए जाने चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में किए जा रहे सारे प्रयास अधूरे रह जाएंगे। सड़क हादसों में आ रही तेजी को देखते हुए सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके तहत तत्काल कुछ विशेष तरह के कदम उठाने की जरूरत है।
सबसे पहले, राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड का गठन जितनी जल्दी हो सके, सरकार को करना चाहिए। जिससे सड़क सुरक्षा से जुड़ी सभी तरह की नीतिगत, तकनीकी और संस्थागत एजंसियों के बीच समन्वय स्थापित हो सके। दूसरा, देश के लिए राष्ट्रीय गति प्रबंधन दिशा-निर्देश तैयार करने की जरूरत है, जिसके अंतर्गत गति निगरानी, कैमरा-आधारित प्रवर्तन और स्वचालित दंड प्रणाली को बेहतर बनाए जा सके।
तीसरा, राजमार्ग प्राधिकरण, राज्य परिवहन विभाग और राज्य सरकारों के बीच नियमित संयुक्त समीक्षा व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, ताकि सड़क सुरक्षा योजनाओं, ‘ब्लैक स्पाट’ सुधार कार्यों और प्रवर्तन गतिविधियों की प्रगति पर नजर रखी जा सके। इससे देश भर में सड़क सुरक्षा की बेहतर निगरानी हो सकेगी और हादसों में हो रही वृद्धि को कम करने में भी मदद मिलेगी।
सड़क सुरक्षा वास्तव में जीवन सुरक्षा, परिवार सुरक्षा, समाज सुरक्षा और राष्ट्र सुरक्षा से जुड़ा मसला है। इसलिए इसे जितनी दृढ़ता, गंभीरता और प्राथमिकता दी जाए, उतना बेहतर होगा। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि देश के प्रत्येक व्यक्ति को यात्रा-सुरक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। इसके तहत वाहन चलाने का बेहतर प्रशिक्षण हासिल करना, नशे में वाहन न चलाना तथा यातायात नियमों और कानूनों का पूरी तरह पालन करना होगा।
किसी वाहन से आगे निकलने की होड़ वाली प्रवृत्ति को त्यागना होगा, जो न केवल अपनी जान को जोखिम में डालती है, बल्कि दूसरे की जिंदगी से भी खिलवाड़ करती है। अपनी सुरक्षा जितनी जरूरी है, उतनी ही दूसरे की सुरक्षा भी है। लापरवाही या सड़क नियमों को तोड़कर आगे बढ़ना हादसे को निमंत्रण देना है। दो पहिया वाहनों पर सवार लोगों के हर हाल में हेलमेट पहनने और चार पहिया वाहनों में सीट बेल्ट बांधने तथा गति सीमा का पालन करने से हादसों की भयावहता को कम किया जा सकता है।
इस बात को समझना बेहद जरूरी है कि सिर्फ सरकारी स्तर पर प्रयासों से ही देश में सड़क दुर्घटनाओं को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। यह सब शासन, प्रशासन और समाज के सामूहिक प्रयासों से ही संभव हो सकता है।
