चुनाव मीडिया का त्योहार है। मीडिया का सौभाग्य है कि भारत चुनाव-प्रधान देश है। इस साल एक ऐसा चुनाव मीडिया के त्योहारी पैकेज में जुड़ गया जिसके बारे में इस साल से पहले इतनी चर्चा कभी नहीं हुई थी।

दिल्ली स्थित कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया संसद से चंद कदम दूर है। इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी की बिल्डिंग के ठीक सामने है। देश के सभी प्रमुख अखबारों का ब्यूरो आईएएनएस बिल्डिंग में है फिर भी इस क्लब का चुनाव अब से पहले इतनी सुर्खियाँ नहीं बटोर सका था। इस क्लब के सदस्य केवल वर्तमान सांसद और भूतपूर्व सांसद होते हैं। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव में किसी पार्टी का व्हिप वगैरह नहीं चलता यानी सांसद और पूर्व सांसद अपनी मर्जी से वोट देने के लिए आजाद होते हैं। ज्यादातर मौकों पर ये चुनाव निर्विरोध ही हो जाते थे मगर इस बार भाजपा के दो सासंदों के बीच एक पद (सचिव-प्रशासन) के लिए हुई टक्कर ने इसे हाई प्रोफाइल चुनाव बना दिया। यह स्वाभाविक भी था क्योंकि देश में ऐसा कोई चुनाव नहीं होता है जिसमें अमित शाह और सोनिया गांधी इत्यादि विभिन्न दलों के दिग्गज एक ही वोटर-लिस्ट में शामिल वोटर हों। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब की वीआईपी मतदाता सूची के कारण इस चुनाव का वजन सामान्य चुनाव से बहुत ज्यादा बढ़ गया।

सचिव-प्रशासन पद के लिए हुए चुनाव के नतीजे आए तो राजीव प्रताप रूडी ने भाजपा के पूर्व सांसद संजीव बालियान को चुनाव हरा दिया। चुनाव के दौरान भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने खुलेआम रूडी के खिलाफ प्रचार किया। मीडिया में इस आशय की खबरें चलीं कि अमित शाह, पीयूष गोयल और जेपी नड्डा इत्यादि भी संजीव बालियान के पक्ष में थे। सोनिया गांधी, राजीव गांधी, कनिमोझी इत्यादि राजीव प्रताप रूडी के साथ थे। इन अटकलों की पुष्टि मुश्किल है क्योंकि गुप्त मतदान में जब तक वोट देने वाला खुद न बोले तब तक यह कहना मुश्किल है कि उसने किसे वोट दिया। मगर अटकलाजी पर कोई रोक नहीं है तो इस चुनाव में भी जमकर कयासबाजी चली।

Rajiv Pratap Rudi in Bihar
बिहार में आयोजित एक कार्यक्रम में राजीव प्रताप रूडी (तस्वीर- राजीव प्रताप रूडी का फेसबुक)

चुनाव परिणाम के बाद मीडिया राजीव प्रताप रूडी के बयान लेने के उतावला था और रूडी ने मीडिया को निराश भी नहीं किया। जिस कहानी के केन्द्र में जबरदस्त टकराव (कॉन्फ्लिक्ट) हो, वह हमेशा लोकप्रिय साबित होती है। मगर इस कहानी में नया मोड़ अब आया है जब कॉन्स्टिट्यूशन क्लब के चुनाव परिणाम आने के करीब तीन हफ्ते बाद राजीव प्रताप रूडी के दो वीडियो इंटरव्यू एक ही दिन पब्लिश हुए हैं। इन इंटरव्यू में रूडी ने जो कहा है उसे सुनकर बहुतों का राजनीतिक एन्टेना एक्टिव हो गया होगा।

रूडी 2017 से नरेन्द्र मोदी कैबिनेट से बाहर हैं। रूडी भाजपा प्रवक्ता हैं मगर पिछले कुछ सालों से वह लगभग म्यूट थे। कॉन्स्टिट्यूशन क्लब चुनाव के माध्यम से लाइमलाइट में लौटने के बाद रूडी खुद को राजपूत समाज के ‘गारंटर’ के रूप में प्रस्तुत करने में ज्यादा रुचि ले रहे हैं। रूडी ने इंटरव्यू में बताया कि वह पिछले तीन सालों से बिहार में ‘सांगा यात्रा’ निकाल रहे हैं जिसकी प्रेरणा महाराणा सांगा हैं जिन्होंने मध्य काल में राजपूत रियासतों का एक संघ बनाया था। रूडी ने मीडिया पर तंज भी कसा कि उनकी यात्रा का उसने पहले संज्ञान नहीं लिया।

रूडी ने सीधे कहा कि वह उसी तरह राजपूत समाज के गारंटर बनना चाहते हैं जैसे यादव समाज के लालू यादव, कुर्मी समाज के नीतीश कुमार, पासवान समाज के चिराग पासवान और माझी समाज के जीतन राम माझी इत्यादि गारंटर हैं। राजीव प्रताप रूडी ने दावा किया कि उनका राजपूत समाज बिहार की 243 विधान सभा सीटो में से 70 पर खुद जीतने या हार-जीतने तय करने की शक्ति रखता है। एक गैर-भाजपा राजनीतिक दल के प्रवक्ता से जब इस रूडी के दावे के बारे में दरयाफ्त की तो उन्होंने कहा कि रूडी बढ़ा-चढ़ाकर बोल रहे हैं, अधिक से अधिक 25 सीटों पर राजपूत निर्णायक हो सकते हैं!

अगर हम मान लें कि बिहार विधान सभा की 70 नहीं, 25 नहीं, केवल 15 सीटों पर राजपूत वोट निर्णायक होते हैं तो बिहार के नाजुक राजनीतिक समीकरण में ये 15 सीटें सरकार बना बिगाड़ सकती हैं। याद रखें कि वर्तमान विधान सभा में राजद-कांग्रेस-कम्युनिस्ट गठबंधन को महज आठ विधायक और मिल जाते तो राज्य में उनकी सरकार होती। भाजपा-जदयू गठबंधन के खाते से अगर 15 सीट कम हो जाते तो उन्हें सत्ता से बाहर होना होता।

रूडी की सार्वजनिक छवि अंग्रेजी-दाँ भद्रलोक राजनेता की है मगर अब वो कहने लगे हैं कि बिहार में जाति की राजनीति ही चलती है। उन्होंने जन सुराज के प्रशांत किशोर को भी जाति की हकीकत स्वीकार करने की सलाह दी। रूडी ने यहाँ तक कह दिया कि जब तक वह जाति से ऊपर उठकर बात करते थे तब तक चुनाव नहीं जीते मगर जब से वो लोगों को बताने लगे कि वे ठाकुर हैं तब से वह चुनाव जीतने लगे। जाति की महिमा बखानने के साथ ही रूडी ने अपने इंटरव्यू में लालू यादव और नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की। रूडी ने यह भी दावा किया अब लालू यादव भी उन्हें पसन्द करने लगे हैं। कुल मिलाकर रूडी ने अपने ताजा इंटरव्यू में खुद को सर्वदल प्रिय (राजपूत) नेता के रूप में प्रस्तुत किया है। बिहार चुनाव की रोशनी में रूडी के इस नए अवतार के राजनीतिक निहितार्थ गहरे हैं।

लोक सभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में यह नरेटिव चलाने का प्रयास हुआ कि राजपूत समाज भाजपा से नाराज है। यूपी लोक सभा में भाजपा को लगे तगड़े झटके के लिए पार्टी के अन्दर कलह और गलत टिकट वितरण को बड़ा कारण बताया गया। पार्टी की अन्दरूनी कलह में राजपूत समाज की नाराजगी एक चर्चित मुद्दा रही थी। जिस संजीव बालियान ने रूडी को सांसदों के क्लब के चुनाव में चुनौती दी, उसी बालियान ने लोक सभा में अपनी हार का एक कारण पश्चिमी यूपी के भाजपा नेता संगीत सोम को बताया था। संगीत सोम भी राजपूत हैं। योगी आदित्यनाथ बनाम अमित शाह के नरेटिव में भी राजपूत एंगल को काफी उछाला गया। लोक सभा चुनाव के दौरान तैयार पृष्ठभूमि में अगर रूडी यह सन्देश देने में कामयाब हो जाते हैं कि वो बिहार के ‘सांगा समाज’ को अकेले दम पर मोबलाइज कर सकते हैं जिसका असर 15-20 सीटों पर पड़ सकता है तो उनका चुनावी महत्व काफी बढ़ जाएगा और भाजपा के लिए उन्हें ठण्डे बस्ते में रखना नामुमकिन हो जाएगा।