कोशिश बहुत की है, लेकिन न जाने क्यों मुझे राहुल गांधी की वोट चोरी वाली बातों पर यकीन नहीं होता है। पिछले सप्ताह उन्होंने अपना ‘बम’ फोड़ा यह कह कर कि हरियाणा का पूरा चुनाव मोदी सरकार ने चुनाव आयोग की सहायता लेकर कांग्रेस पार्टी से चुराया था पिछले साल। जैसे अक्सर करते हैं जब कोई नया ‘बम’ उनके हाथ लगता है। उन्होंने एक स्कूल अध्यापक की तरह बड़ी स्क्रीन के सामने खड़े होकर पत्रकारों को अपने इस नए बम के बारे में बताया। स्क्रीन पर कई तस्वीरें थीं एक ही लड़की की और नेता प्रतिपक्ष ने बिल्कुल स्कूल शिक्षक के अंदाज में पूछा, ‘क्या कोई बता सकता है मुझे कि यह लड़की कौन है और कहां की है?

हरियाणा की लगती है क्या आपको?’ फिर ख़ुद ही उन्होंने इस लड़की का परिचय दिया। ब्राजील की एक माडल है यह, उन्होंने कहा। जैसे कि कोई बहुत बड़ा खुलासा कर रहे हों, और आगे बताया कि इस लड़की ने कोई बाईस बार वोट किया हरियाणा के विधानसभा चुनावों में कभी स्वीटी के नाम से, कभी पिंकी बन कर, तो कभी सरस्वती।

इस खुलासे के अगले दिन ब्राजील की उस माडल ने सोशल मीडिया पर वीडियो साझा किया, जिसमें खूब मजे लेते हुए उसने बताया कि यह उसकी ही तस्वीर है, लेकिन कई साल पुरानी। उसने यह भी कहा कि उसको मालूम नहीं, क्यों इस तस्वीर को भारत की चुनावी चर्चा में घसीट लिया गया है। अगले दिन ऐसा हुआ कि कुछ खोजी पत्रकारों ने हरियाणा के उस गांव में जाकर तहकीकात की जहां यह ‘फर्जी’ मतदान हुआ था। वहां मालूम यह हुआ कि जिनके कार्ड राहुल ने अपनी स्क्रीन पर दिखाए थे, वे वास्तव में असली महिलाओं के थे और इनमें से एक महिला का नाम पिंकी ही था।

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राहुल के इस बम में से सारी ऊर्जा निकल चुकी है। इसलिए कि कुछ ज्यादा ही बोल रहे हैं। चुनावों में धांधली इस स्तर पर कभी नहीं हो सकती कि किसी राज्य का पूरा का पूरा चुनाव फर्जी हो जाए। इतने बुलंद हैं राहुल जी के हौसले कि अब आरोप लगा रहे हैं चुनाव आयोग पर कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिल कर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के भी चुनाव चोरी किए हैं। ऐसी शक्ति होती प्रधानमंत्री के हाथ में, तो क्या लोकसभा चुनावों में पूर्ण बहुमत हासिल करने की कोशिश न करते? क्या वह चोरी ज्यादा काम न आती?

ऐसा कहने के बाद, लेकिन यह भी कहना जरूरी है कि जब नेता प्रतिपक्ष इतने गंभीर आरोप लगा रहे हैं चुनाव आयोग पर, तो उसका दायित्व है पूरी सफाई देना। पिछली बार जब राहुल ने कर्नाटक वाला बम फोड़ा था, तो मुख्य चुनाव आयुक्त ने जवाब देने के बदले आक्रामक होकर कहा कि ठोस सबूत हैं अगर, तो उनके सामने राहुल जी अपने नाम से याचिका क्यों नहीं देते। ऐसे कहने के बदले अगर उन्होंने आश्वासन दिया होता कि नेता प्रतिपक्ष के तमाम आरोपों की पूरी जांच की जाएगी, तो शायद राहुल को बिहार में यात्रा निकाल कर न कहना पड़ता हर आमसभा में ‘वोट चोर, गद्दी छोड़’। तालियां बजी थीं उनकी इस बात पर लेकिन वोट चोरी का आरोप चुनावी मुद्दा नहीं बना।

इसलिए जब बिहार में मतदान के ऐन एक दिन पहले राहुल अपना ‘हाइड्रोजन बम’ फोड़ते हैं, तो थोड़ा-सा उनके नौटंकीबाज होने का शक भी होता है और ऐसा भी लगने लगता है कि राहुल को बिहार के चुनावों में हारने के आसार दिखने लगे हैं। उनके महागठबंधन पर प्रधानमंत्री ने खुद आम सभाओं में आक्रामक अंदाज में कहा है कि वे ‘घुसपैठियों’ के वोटों से जीतने की उम्मीद रखते हैं और देश की आस्था का भी मखौल उड़ाते हैं।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि छठी मैया का अपमान करते हैं कांग्रेस के आला प्रचारक और आज तक कांग्रेस के किसी बड़े नेता ने अयोध्या जाकर राम मंदिर में माथा टेकने की तकलीफ नहीं की है। प्रधानमंत्री ने अपनी आम सभाओं में लोगों को सावधान किया है कि महागठबंधन के आने से जंगलराज वापस आएगा।

कांग्रेस पार्टी के नेता जवाब में ‘वोट चोरी’ की बातें कर रहे हैं, लेकिन अभी तक यह इतना बड़ा मुद्दा नहीं बना है इस चुनाव में। काश कि इन्होंने जोहरान ममदानी की कमाल की जीत से कुछ सीखा होता। ममदानी जब न्यूयार्क का महापौर बनने चुनाव में उतरे थे, तो अमेरिकी राजनीतिक पंडितों ने कहा था कि उनकी हार पक्की है। उनके सामने था एक ऐसा व्यक्ति जो न्यूयार्क के एक पुराने राजनीतिक परिवार का वारिस था। एंड्रयू क्यूमो के पिता मारियो क्योमो, न्यूयार्क के राज्यपाल कई साल रहे थे। इस पद पर उनका बेटा भी रहा था, जिन्हें गंभीर आरोपों के बाद अपने पद से हटना पड़ा था।

ममदानी ने पिछले सप्ताह चुनाव जीत कर साबित किया कि जो राजनेता मतदाताओं की दिल की बातें करते हैं उनको जनता जरूर वोट देती है। ममदानी ने महंगाई की बात कीं और याद दिलाया कि न्यूयार्क में किराए इतने ज्यादा हैं कि लोग शहर के बाहर रह कर रोज घंटों सफर करने पर मजबूर हैं। न्यूयार्क के आम नागरिकों पर ध्यान देने की वजह से ममदानी जीते।

बिहार में सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी

रोजगार की इतनी कमी है बिहार में कि इस राज्य के नौजवान बाकी देश में नौकरी ढूंढ़ने पर मजबूर हैं। पलायन की बात प्रशांत किशोर कर रहे हैं सबसे ज्यादा और इसके उपाय भी रख रहे हैं लोगों के सामने, लेकिन राजनीति में इतने नए हैं कि सर्वेक्षण बताते हैं कि उनके लिए जीत तकरीबन असंभव है। अफसोस कि ऐसा है। अफसोस कि बिहार के मतदाताओं के सामने कोई नया राजनेता जीतते नहीं दिख रहा है। अफसोस कि उनके सामने वही पुराने विकल्प हैं जो पिछले दो दशकों से रहे हैं।