एक कार्यशील समाज के लिए विश्वास आवश्यक है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए हमें मूल रूप से उन लोगों पर भरोसा करने में सक्षम होना चाहिए, जिन्हें हम प्यार करते हैं। अपने दोस्तों और परिवार पर..। साथ ही अपने पड़ोसियों, सहकर्मियों और यहां तक कि उन लोगों पर भी, जिन्हें हम अच्छी तरह से नहीं जानते। मसलन, हमारे किराना दुकानदार और हमें दूध पहुंचाने वाले। शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के सभी उम्र के ढाई लाख से अधिक प्रतिभागियों को शामिल करते हुए लगभग पांच सौ अध्ययनों के परिणामों का विश्लेषण किया, ताकि यह देखा जा सके कि भरोसा करने में सक्षम होने से उनके जीवन की संतुष्टि और खुशी पर क्या प्रभाव पड़ा।
उन्होंने पाया कि विश्वास और कल्याण एक साथ चलते हैं। दूसरों पर भरोसा करने से खुशहाली बढ़ी और बेहतर खुशहाली का एहसास किसी और पर ज्यादा भरोसा करने में मदद करता है। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जैसे-जैसे हम जीवन के विभिन्न चरणों से गुजरते हैं, भरोसा और उसका महत्त्व बदलता जाता है। बच्चों, किशोरों और बुजुर्गों के लिए भरोसा युवा या मध्यम आयु वर्ग के वयस्कों की तुलना में थोड़ा ज्यादा जरूरी है।
विश्वास का विकास शिशु उम्र से ही शुरू हो जाता है। स्नेहपूर्वक, ध्यानपूर्ण और संवेदनशील देखभाल पाकर शिशु सीखते हैं कि वे अपने आसपास के लोगों पर भरोसा कर सकते हैं और उनकी दुनिया एक सुरक्षित और दयालु जगह है। दूसरी ओर, अगर उन्हें कठोर, अनियमित या उपेक्षापूर्ण देखभाल मिलती है, तो वे इसके विपरीत सीखेंगे, जिससे उन्हें बाद में मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं, वे अनुभव से सीखना शुरू करते हैं कि हर कोई भरोसेमंद नहीं होता।
हमें खुद के करीब ले जाते हैं खाली लम्हे, जिनका हमें नहीं देना होता हिसाब
शोध बताते हैं कि पांच साल की उम्र के बच्चे भी उस वयस्क को पहचान लेते हैं जो उन्हें धोखा देने की कोशिश कर रहा है, और उस व्यक्ति के सच बोलने पर भरोसा नहीं करेंगे। इसका मतलब है कि बच्चों को भरोसा दिलाने के लिए हमें खुद भी भरोसेमंद होना चाहिए। जैसे-जैसे बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं, दूसरों पर भरोसा करना उनके लिए आवश्यक सहकर्मी संबंधों को विकसित करने के लिए महत्त्वपूर्ण बना रहता है। इस दौरान ऐसे मित्रों और मार्गदर्शकों की आवश्यकता होगी जिन पर वे भरोसा कर सकें।
भले ही किशोर खुद को माता-पिता से अलग करना सीख जाते हैं और अधिक दूर या सहकर्मी-केंद्रित लग सकते हैं, माता-पिता उनके विकास के लिए महत्त्वपूर्ण बने रहते हैं, भले ही इस प्रक्रिया से विश्वास कम हो जाए। हालांकि दूसरों पर भरोसा करना सीखने की शुरुआत बचपन में ही हो सकती है, लेकिन दूसरों पर भरोसा करने की क्षमता और जरूरत, खासकर पारस्परिक संबंधों में, जीवन भर बढ़ती रहती है। चूंकि मधुर, घनिष्ठ संबंध हमारी भलाई के लिए बहुत महत्त्ववपूर्ण हैं और विश्वास मजबूत संबंध बनाने में मदद करता है, इसलिए यह समझ में आता है कि अधिक भरोसेमंद और विश्वसनीय होने से हमारी सकारात्मक भावनाएं और जीवन संतुष्टि बढ़ेगी।
अपने व्यापक समुदाय से जुड़े रहना, इसके लिए थोड़ा अधिक संवेदनशील होना और दूसरों की सामान्य अच्छाई पर भरोसा करना आवश्यक हो सकता है। हालांकि पूर्वाग्रह हमें उन लोगों पर भरोसा करने से रोक सकते हैं, जो हमसे अलग दिखते, सोचते या कार्य करते हैं। अध्ययनों में पाया गया है कि जिन नागरिकों का अपनी सरकार और अपनी संस्थाओं पर अधिक भरोसा होता है, वे भी अधिक खुश रहते हैं।
वृद्धावस्था में विश्वास और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है। जहां कई बुजुर्गों के लिए अपने परिवार और दोस्तों में से करीबियों पर भरोसा करना सबसे जरूरी है, वहीं दूसरे भरोसेमंद रिश्ते भी मायने रखते हैं। बुजुर्ग लोग अक्सर उम्र बढ़ने के साथ अपने पड़ोसियों और यहां तक कि अजनबियों पर भी ज्यादा भरोसा करते हैं, क्योंकि कमजोर रिश्ते शारीरिक या संज्ञानात्मक गिरावट के दौर में (खासकर अगर उनके करीबी रिश्तेदार चले जाएं या उनका निधन हो जाए) सांत्वना और सहायता का स्रोत बन सकते हैं।
बेशक, बुजुर्गों को दूसरों पर अंधाधुंध भरोसा नहीं करना चाहिए, फिर भी उन्हें दूसरों पर अपना समग्र विश्वास खोने की जरूरत नहीं है। बशर्ते वे किसी पर भरोसा करने से पहले उसकी विश्वसनीयता की जांच कर सकें।
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यों तो हर व्यक्ति, चाहे उसकी उम्र या लिंग कुछ भी हो, भरोसेमंद और विश्वसनीय होने से लाभान्वित हो सकता है, लेकिन अविश्वास को बढ़ावा देने वाले समाज में यह बहुत कठिन हो सकता है। अगर हम किसी तानाशाही शासन में रह रहे हैं या जहां राजनीतिक भ्रष्टाचार, हिंसक अपराध या नागरिकों पर अवैध निगरानी का बोलबाला है, तो हमारे लिए दूसरों पर भरोसा करना मुश्किल या खतरनाक भी हो सकता है।
फिर भी, भरोसा न करना हमारे स्वभाव में नहीं है। मनुष्य होने के नाते हम जीवित रहने के लिए एक-दूसरे की सद्भावना पर निर्भर हैं। अपने परिवारों, सामाजिक दायरे, आस-पड़ोस और संस्थाओं में विश्वास को जीवित रखकर हम सभी के लिए एक ज्यादा भरोसेमंद और खुशहाल समाज बनाने में मदद कर सकते हैं।