भारत ही नहीं, बल्कि तीसरी दुनिया के देशों की श्रम शक्ति और युवा शक्ति समृद्ध देशों में किसी न किसी तरीके से प्रवेश कर रातों-रात अपनी आर्थिक स्थिति बदल लेना चाहती है। सवाल है कि पहली, दूसरी और तीसरी दुनिया का वर्गीकरण कैसे होता है? द्वितीय महायुद्ध के बाद से देखें, तो पहली दुनिया समृद्ध पश्चिमी या यूरोपीय देशों और अमेरिका की है।

दूसरी दुनिया रूस समर्थक देशों की और तीसरी दुनिया पश्चिमी देशों से आजाद हुए या अपनी गरीबी से जूझते देशों की है। आर्थिक विकास शास्त्र ने इसका वर्गीकरण विकासवादी व्यवस्था के रूप में किया है। यानी पहली दुनिया विकसित देशों की, दूसरी दुनिया विकासशील देशों की जिनमें भारत भी शामिल है और तीसरी दुनिया अविकसित देशों की है जिनमें गरीब देश शामिल हैं।

तीसरी दुनिया की युवा शक्ति पहली दुनिया या पश्चिमी देशों की ओर भागती है, क्योंकि जिस देश में वे रहते हैं, वहां उन्हें अपने सपने साकार होने की कोई संभावना नजर नहीं आती। धनी होने का सपना देखते हजारों नौजवान हर वर्ष इन देशों में जाकर काम करना चाहते हैं। अगर वैध तरीके से न जा सके, तो अवैध तरीके से या अपनी जान हथेली पर रख कर भी ये नौजवान समृद्ध देशों में प्रवेश करना चाहते हैं। जो रास्ते में मर-खप गए, उनका कोई अता-पता नहीं चलता। जो किसी तरह विदेश चले भी गए, तो वे वहां भी वे दोयम दर्जे की जिंदगी जीते हैं और किसी न किसी प्रकार अपने पांच साल पूरे कर ग्रीन कार्ड पाने की इच्छा रखते हैं।

जब से डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की सत्ता संभाली है, तब से न केवल अमेरिका, बल्कि उसके साथी अमीर देश कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया आदि भी आप्रवासी नागरिकों को (खासतौर से उन उन्नीस देशों के नागरिकों, जिनके बारे में ट्रंप ने सूची जारी की है और यह कहा है कि उनके देश में गैर-कानूनी घटनाओं से लेकर हिंसक वारदात यही लोग करते हैं) अपनी सीमा से निष्कासित करने की कोशिश में लगे हैं। इन सभी देशों में भारतीयों की भी पर्याप्त संख्या है। उनको हथकड़ियों-बेड़ियों में वापस भेजा जा रहा है। इन लोगों का स्वागत करने के लिए अमेरिका तैयार नहीं, बल्कि ट्रंप देश से इनको बाहर करना चाहते हैं। ये यही भारतीय हैं जिनके कौशल और श्रम से अमेरिका का आधार बना है।

अभी वाइट हाउस में अफगानिस्तान के एक शरणार्थी द्वारा की गई गोलीबारी से एक नेशनल गार्ड की मौत हो गई। इस बात से खीझ कर ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में गरीब देशों के प्रवासियों का प्रवेश बंद है। वर्तमान आप्रवासियों में से अगर किसी से सुरक्षा को खतरा लगता है तो उसे भी तुरंत उसके देश भेज दिया जाएगा।

कनाडा ने छात्र वीजा पर सख्ती की

अमेरिका की देखादेखी कनाडा ने छात्र वीजा पर सख्ती कर दी है। अब वीजा रद्द करने की दर चूंकि 75 फीसद तक पहुंच गई है, इसलिए नया प्रवेश 40 फीसद तक गिर गया। आज यहां 70 फीसद वीजा आवेदन रद्द हो रहे हैं। वर्ष 2023 में यही दर 32 फीसद थी। ब्रिटेन गए छात्र अपने साथ पहले परिवार ला सकते थे, लेकिन 2025 से वीजा नवीनीकरण में सख्ती बरती जाने लगी। परिवार लाने पर रोक लग गई। इस तरह से कई भारतीय ब्रिटेन छोड़ने के लिए मजबूर हो गए।

आस्ट्रेलिया ने भी इस वर्ष से नई प्रवासन नीति लागू कर दी है जिसमें छात्र वीजा को कठिन बना दिया गया है। वर्ष 2024 में अगर यहां 96 हजार 490 प्रवासी भारतीय छात्र थे, तो इसी वर्ष पहले छह महीनों में यह संख्या कम होकर 87 हजार 600 हो गई। अब जब अपने हित साधने की यह नीति इन समृद्ध देशों ने लागू कर दी है, तो भारतीयों या अन्य 19 गरीब देशों के छात्रों के लिए समृद्ध देशों में प्रवेश बहुत कठिन हो गया है। अमेरिका ने तो और भी कई नियम बना दिए। ग्रीन कार्ड देने की अवधि बढ़ा दी और इसे आसानी से न लागू करने की नीति अपनाई। इस समय इसकी प्रतीक्षा सूची में लगभग दस लाख भारतीय हैं। मगर अमेरिका या अन्य समृद्ध देशों को यह नहीं भूलना चाहिए कि आज उनकी प्रगति और समृद्धि में इन्हीं प्रवासी नागरिकों का खून-पसीना लगा है।

एक राजनीतिक संदेश यूरोप, कनाडा और आस्ट्रेलिया सरकार को भी चला गया कि वे प्रवासियों को आने से रोकें। अगर यह श्रम शक्ति उत्पादन प्रक्रिया से बाहर हो जाती है, तो इन देशों की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है। अमेरिका आज 30 ट्रिलियन डालर की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति है, तो उसका 20 फीसद हिस्सा इन आप्रवासियों की मेहनत पर ही टिका है।

समृद्ध देशों में तीन प्रकार के प्रवासी

तीन प्रकार के प्रवासी अमेरिका या समृद्ध देशों में पाए जाते हैं। भारतीय, चीनी और लैटिन अमेरिकी। गौरतलब है कि इन प्रवासी नागरिकों की श्रम शक्ति सस्ती है। आर्थिक विश्लेषक बताते हैं कि 15 अमेरिकी राज्यों की अर्थव्यवस्था अधिकतर इन्हीं श्रमिकों की दिन-रात की मेहनत पर निर्भर करती है। हालांकि इन राज्यों में अमीरी के साथ-साथ बंदूक संस्कृति भी पनप गई है। फिरौती मांगने का धंधा इन राज्यों में है ही। जहां 15 राज्य इन आप्रवासियों पर लगभग 40 फीसद तक निर्भर हैं। ये आप्रवासी बहुत ईमानदारी से और मेहनत करके जिंदगी जीते हैं।

एक आंकड़े के मुताबिक अमेरिका में कुल अपराध दर के मुताबिक ये प्रवासी, स्थानीय नागरिकों की अपेक्षा अपराध में कम ही लिप्त पाए गए। अब ट्रंप ने इन्हीं प्रवासियों को रोकने के आदेश पर मंजूरी लेने की इच्छा जाहिर कर दी है।

हालांकि भारत की युवा शक्ति और अन्य उभरते देशों की नौजवान पीढ़ी विदेश को अपना एकमात्र मोक्ष द्वार नहीं मानती। तीसरी दुनिया के जिन देशों में जो ‘जेन-जी’ वाली पीढ़ी उभर कर आ गई है, वह अपने देश में ही यथोचित रोजगार और गरिमा से जीना चाहती है। वह इन समृद्ध देशों के रहम पर दोयम दर्जे की जिंदगी अपनाने के लिए इनका सहारा नहीं लेना चाहती।

कुछ देशों की सरकारें आतंकवादियों को कर रही सहयोग

दूसरी ओर यह भी एक सच है कि कुछ देशों में आतंकवादियों के अड्डे हैं और उनके लिए सरकारों का अप्रत्यक्ष सहयोग है, नहीं तो वहां छिपे आतंकी इतनी आसानी से भारत विरोधी गतिविधियां कैसे चलाते? इन देशों की अपनी समृद्धि भी हाड़तोड़ मेहनत करने वाले आप्रवासी नागरिकों की वजह से है, मगर आज कई बड़े देशों ने अपने यहां रह रहे प्रवासी नागरिकों का जीना मुश्किल कर दिया है। उन्हें हर दिन अपनी धरती से निष्कासित करने की धमकी देते हैं। जबकि उनके परिश्रम के बूते ही अमेरिका वर्षो से आर्थिक शक्ति के रूप में दुनिया के शीर्ष पर है।

अब भी अमेरिका यही कहता है कि वह तकनीकी पेशेवरों का अपने देश में स्वागत करेगा, लेकिन यह नहीं चाहता कि मेहनत-मजदूरी करने वाले लोग अमेरिका में आ जाएं और अपनी मेहनत और कम वेतन के बल पर अमेरिकी जनता की नौकरियों के लिए जारी होने वाला पैसा अपने भुगतान के रूप में हथिया लें। इस पूरे परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए भारत अब केवल आयात आधारित अर्थव्यवस्था न रहे, अपने पैरों पर और मजबूती से खड़ा हो जाए। स्वावलंबन की इस राह पर युवा पीढ़ी को नौकरियां दें।

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