आधुनिक जीवनशैली की भाग-दौड़ में महिलाएं अपनी जरूरत या सुविधा के लिए कई बार ऐसे निर्णय लेती हैं, जो उनके स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकते हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य का मतलब उनका संपूर्ण हित है। यह हमारे समाज की भी नैतिक जिम्मेदारी है कि महिलाओं को सुरक्षित और स्वस्थ जीवन जीने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान की जाए। कुछ समय पहले दिल्ली में एक युवती की असामयिक मृत्यु ने एक बार फिर हमारे सामने महिलाओं के स्वास्थ्य और दवाओं के अनियंत्रित उपयोग की गंभीर समस्या को उजागर किया है। इस युवती की मृत्यु इसलिए हो गई, क्योंकि उसने बिना चिकित्सीय सलाह के हार्मोन से जुड़ी दवाओं का सेवन किया था, जिससे उसे ‘डीप वेन थ्रोम्बोसिस’ (डीवीटी) की समस्या हो गई थी। यह घटना न केवल दवाओं के दुरुपयोग की समस्या को दर्शाती है, बल्कि महिला स्वास्थ्य के प्रति हमारे समाज की उदासीनता को भी उजागर करती है।

यह कोई छिपा तथ्य नहीं है कि जागरूकता के अभाव में कई महिलाएं अपनी किसी बीमारी का इलाज समय पर नहीं करा पातीं और उसका खमियाजा या तो वे लंबे समय तक उठाती हैं या फिर शरीर में कोई जटिल रोग बैठ जाता है, जो उनके सहज जीवन को बाधित कर देता है। दिल्ली में जिस युवती की ‘डीप वेन थ्रोम्बोसिस’ से मौत हुई, उसके मामले में भी कुछ इसी तरह की जटिलता कारण बनी। यह एक ऐसी गंभीर बीमारी है, जिसमें शरीर की गहरी नसों में रक्त के थक्के बन जाते हैं। चिकित्सकों ने जब इस मामले में गहन जांच की, तो पता चला कि रक्त का थक्का नाभि तक फैल गया था।

यह घटना हमारे समाज की उस मानसिकता को दर्शाती है, जहां महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता। ‘डीप वेन थ्रोम्बोसिस’ की पहचान करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इसके लक्षण अक्सर सूक्ष्म होते हैं। पैरों में सूजन, तेज दर्द, गर्माहट की अनुभूति और त्वचा का लाल या नीला पड़ना इसके प्रमुख संकेत हैं। अगर समय पर इलाज न कराया जाए तो ये थक्के फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं, जिसे ‘पल्मोनरी एम्बोलिज्म’ कहा जाता है और यह समस्या अक्सर जानलेवा साबित होती है। ऐसे में चिकित्सकों से उम्मीद की जाती है कि वे मरीजों को विभिन्न दवाओं के संभावित दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दें और यह भी समझाएं कि किन स्थितियों में तत्काल चिकित्सीय सहायता लेनी चाहिए।

भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े कुछ जरूरी विषयों पर अभी भी खुली चर्चा नहीं होती

इस मामले में अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों में सामने आए आंकड़े अत्यंत चिंताजनक हैं। हार्मोन से संबंधित गर्भनिरोधक दवाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं में ‘वेनस थ्रोम्बोएम्बोलिज्म’ का खतरा सामान्य महिलाओं की तुलना में दो से छह गुना तक बढ़ जाता है। सामान्य परिस्थितियों में प्रति एक लाख महिलाओं में से केवल पांच से दस महिलाएं ही प्राकृतिक रूप से इस बीमारी की शिकार होती हैं, लेकिन दूसरी पीढ़ी की हार्मोन से जुड़ी दवाओं के उपयोग से यह जोखिम तीन-चार गुना और तीसरी पीढ़ी की दवाओं से छह से आठ गुना तक बढ़ जाता है। अमेरिकन कालेज आफ आब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलाजिस्ट्स के अध्ययन के अनुसार, जो महिलाएं छह महीने तक लगातार हार्मोन से जुड़ी दवाओं का उपयोग करती हैं, उनमें डीवीटी, पक्षाघात और दिल के दौरे का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। खासकर उपयोग के पहले वर्ष में यह जोखिम सबसे अधिक होता है।

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भारत में महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े कुछ जरूरी विषयों पर अभी भी खुली चर्चा नहीं होती। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, देश में अधिकांश महिलाएं बिना किसी चिकित्सीय सलाह के अपने प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी दवाओं का सेवन करती हैं। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि हार्मोन से संबंधित दवाओं का गलत उपयोग गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है। सामाजिक दबाव, शर्म और अज्ञानता के कारण महिलाएं अक्सर अपनी समस्याओं को छिपाती हैं और बिना चिकित्सक की सलाह के दवाओं का सेवन करती हैं। विशेष अवसरों, यात्राओं या परीक्षाओं के दौरान माहवारी या अपनी सेहत से जुड़ी असुविधा से बचने के लिए वे ऐसी दवाओं का सहारा लेती हैं, जो अत्यंत खतरनाक है।

महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों को परिवारों को समझना होगा

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, एस्ट्रोजन युक्त गर्भनिरोधक दवाओं का उपयोग करने वाली महिलाओं को नियमित चिकित्सीय जांच कराते रहना चाहिए। विशेष रूप से पैंतीस वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं, धूम्रपान करने वाली महिलाओं, उच्च रक्तचाप की समस्या एवं मोटापे से ग्रस्त महिलाओं और जिनके पारिवारिक इतिहास में रक्त का थक्का बनने की समस्या है, उनके लिए यह जोखिम और भी अधिक बढ़ जाता है।

चिकित्सा विशेषज्ञों का मानना है कि हार्मोन से संबंधित दवाओं का उपयोग केवल चिकित्सीय निगरानी में ही किया जाना चाहिए। ‘अमेरिकन कालेज आफ आब्स्टेट्रिशियन एंड गायनेकोलाजिस्ट्स’ के मुताबिक, मासिक धर्म का दमन चिकित्सीय निगरानी में सुरक्षित हो सकता है, लेकिन यह आवश्यक है कि महिलाएं अपने चिकित्सक से संपूर्ण जानकारी साझा करें और नियमित जांच कराती रहें।

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कई बार कुछ घटनाएं एक व्यापक समाज के लिए सबक का काम करती हैं। सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि महिलाओं की सेहत से जुड़ी समस्याओं पर ईमानदारी से चर्चा नहीं करने से महिलाओं सहित समूचे समाज की समस्या और ज्यादा जटिल ही होगी। परिवारों को यह समझना होगा कि महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं, जितने कि पुरुषों के। देर से इलाज कराने या डाक्टर की सलाह को नजरअंदाज करने से जीवन को खतरा हो सकता है।

माता-पिता और परिवारजनों को महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। शर्म या झिझक के कारण इलाज में देरी करना जानलेवा साबित हो सकता है। हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। दवा की दुकानों में बिना चिकित्सक की सलाह के हार्मोन से संबंधित दवाओं की बिक्री पर सख्त नियंत्रण होना चाहिए। दवा विक्रेताओं को ऐसी दवाओं के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी होनी चाहिए और उन्हें ग्राहकों को चिकित्सीय सलाह लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

समाज के प्रत्येक स्तर पर फैलानी होगी जागरूकता

महिलाओं को हार्मोन से संबंधित दवाओं के सही उपयोग और संभावित जोखिमों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है। चिकित्सकों को ऐसी दवाओं के नवीनतम दुष्प्रभावों के बारे में नियमित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, ताकि वे मरीजों को सही सलाह दे सकें। दूसरी ओर, महिलाओं को भी अपनी सेहत को लेकर जागरूक होने की जरूरत है, ताकि वे अगर किसी दवा का सेवन करती हैं, तो रक्तचाप, रक्त थक्का बनने की प्रवृत्ति और अन्य महत्त्वपूर्ण मानकों की जांच कराना जरूरी मानें। पैरों में असामान्य सूजन, दर्द, गर्माहट या त्वचा के रंग में परिवर्तन जैसे लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। इन लक्षणों के दिखने पर तुरंत चिकित्सकीय सहायता लेनी चाहिए। हालांकि इस समस्या का समाधान केवल चिकित्सा जगत की जिम्मेदारी नहीं है। समाज के प्रत्येक स्तर पर जागरूकता फैलानी होगी। परिवारों को महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशील बनना होगा।