जीवन में सबसे बड़ी खोज यही होती है कि कौन हमारे अपने हैं और कौन हमें केवल परिस्थितियों के हिसाब से स्वीकार करता है। अक्सर हम दिल की गहराइयों से किसी को अपना मान लेते हैं। हम सोचते हैं कि अब यह रिश्ता हमें अकेला नहीं रहने देगा, यह जुड़ाव हमें सहारा देगा। लेकिन अजीब विडंबना है कि जिन लोगों को हम सबसे अधिक अपनाते हैं, वही हमें कई बार सबसे ज्यादा अजनबी-सा महसूस कराते हैं।

मनुष्य का स्वभाव ही विरोधाभासों से भरा है। एक ओर हम रिश्तों को जीने के लिए जीते हैं, तो दूसरी ओर कुछ लोग अपने भीतर ऐसी दीवारें खड़ी कर लेते हैं कि चाहकर भी कोई उनके करीब नहीं पहुंच सकता। वे अपनी भावनाएं बांटने से डरते हैं, किसी पर भरोसा करने से घबराते हैं। कभी उन्हें लगता है कि अगर उन्होंने किसी को दिल में जगह दी, तो वे कमजोर पड़ जाएंगे। इस डर में वे दूसरों को अपने जीवन के दरवाजे पर खड़ा रखते हैं, जहां सामने वाला व्यक्ति चाहे जितना भी अपनापन दे, उसे हमेशा बाहर वाला ही माना जाता है।

ऐसे अनुभव इंसान को भीतर तक तोड़ देते हैं। हम बार-बार सोचते हैं कि शायद हमारी मोहब्बत अधूरी थी, शायद हमारी नीयत में कोई कमी रही, या शायद हमारी सच्चाई उन्हें समझ नहीं आई। ऐसी ही स्थिति में व्यक्ति अपनी मन:स्थिति में ऐसे पायदान पर भी पहुंच जाता है, जहां सामने वाले की गलती के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है।

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कई बार यह भी होता है कि गलती करने वाले या गलत होने वाले के व्यवहार और बात का संजाल ऐसा होता है कि गलत वह खुद होता है और पीड़ित व्यक्ति को ही खुद को गलत मानने पर मजबूर कर देता है। सामाजिक व्यवहार का यह पहलू अक्सर हमारे आसपास दिख जाएगा कि जो व्यक्ति गलत होता है, वह जोर से बोल कर किसी निर्दोष को अपराध बोध में धकेल देता है। जबकि सच्चाई यह होती है कि यह वास्तव में पीड़ा से गुजरने वाले की कमी नहीं, बल्कि उनके बरक्स खड़े व्यक्ति की मानसिकता का प्रतिबिंब होता है। वे चाहे कितनी भी बातें करें, भीतर से रिश्तों को उतनी गहराई से जीना ही नहीं चाहते। उनके लिए अपनापन एक बोझ है, एक जिम्मेदारी है, जबकि हमारे लिए वह आत्मा का जुड़ाव है।

रिश्तों की असली पहचान शब्दों से नहीं, बल्कि उस सहजता से होती है जो हमें किसी की मौजूदगी में महसूस होती है। जब कोई व्यक्ति सचमुच अपना होता है, तो उसकी आंखों की खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है। मगर जब कोई हमें अजनबी समझता है, तब हमारे हजार शब्द भी उसके दिल तक नहीं पहुंच पाते। यह अजनबीपन केवल व्यवहार का नहीं, बल्कि संवेदनाओं का होता है। यह हमें लगातार यह एहसास कराता है कि हम उनके जीवन में कभी भी अपनी जगह नहीं बना पाए। कभी-कभी ऐसा अजनबीपन हमें भीतर तक चोट पहुंचाता है, मगर साथ ही यह एक गहरी सीख भी देता है। यह सिखाता है कि हर रिश्ता उतना गहरा नहीं होता, जितना हम उसे मान लेते हैं। कुछ रिश्ते केवल सतही होते हैं, कुछ औपचारिकता भर होते हैं और कुछ समय के साथ मिट जाते हैं। हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि हर किसी से आत्मा तक जुड़ाव संभव नहीं है। यह पहचान आसान नहीं, लेकिन आवश्यक है।

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जीवन का सबसे बड़ा संतुलन यही है कि हम अपनी भावनाओं को कहां खर्च करें। अगर हम उन लोगों पर अपनी ऊर्जा लगाते हैं जो हमारी अनदेखी करते हैं, हमें बार-बार अजनबी-सा महसूस कराते हैं, तो हम धीरे-धीरे थकने लगते हैं, टूटने लगते हैं। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम अपने अपनत्व और सच्चाई को वहां लगाएं जहां उसका मूल्य समझा जाए। जहां हमें बार-बार साबित न करना पड़े कि हम कितने सच्चे हैं। जहां हमारे अस्तित्व को बिना किसी प्रमाण के स्वीकार कर लिया जाए। फिर अगर किसी के सामने हमें अपने सच्चे होने को साबित करना पड़ता है, वहां हमारी जगह कितने दिनों तक बनी रहेगी और क्या गारंटी है कि एक बार के बाद फिर से हमसे सफाई नहीं मांगी जाएगी, हमारे सच्चे होने का सबूत नहीं मांगा जाएगा?

अजनबीपन का दर्द गहरा होता है, लेकिन इसका सकारात्मक पक्ष भी है। यह हमें आईना दिखाता है कि कौन हमारे लिए सही है और कौन केवल हमारी उपस्थिति का लाभ उठा रहा है। यह अनुभव हमें सिखाता है कि प्रेम और अपनापन किसी एकतरफा प्रयास से नहीं बनता, बल्कि दोनों ओर से दिल की खिड़कियां खुली हों तो ही रिश्ता सांस ले पाता है। आखिरकार असली अपनापन वही है, जहां हम बिना किसी प्रयास के सहज लगें। जहां हमारी खामोशी भी समझ ली जाए और हमारी उपस्थिति ही अपनापन का प्रमाण बन जाए। जो लोग हमें अजनबी-सा महसूस कराते हैं, वे शायद कभी भी अपने नहीं हो सकते। उन्हें उनके हाल पर छोड़ देना ही सबसे बड़ी राहत है।

जीवन छोटा है, और इसे केवल उन रिश्तों में जीना चाहिए, जहां हमें अजनबी नहीं, बल्कि सबसे करीबी माना जाए। जहां हमारे लिए जगह बनाई न जाए, बल्कि हम पहले से ही उस जगह का हिस्सा हों। सच्चे रिश्ते वही हैं जो आत्मा को हल्का करें, बोझिल न बनाएं। और जब हम यह सीख जाते हैं, तब हमें एहसास होता है कि अजनबीपन भले दर्द दे, लेकिन यह हमें हमारे असली अपनों तक पहुंचा देता है।