जिंदगी में सब कुछ सामान्य चल रहा होता है। हम अपने उद्देश्यों में सफल होने के लिए ईमानदार प्रयास कर रहे होते हैं। एकदम नहीं, कुछ समय बाद विश्वास उगता है कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं, हमारी कोशिशों का परिणाम एक दिन अच्छा ही निकलेगा। उठते-बैठते हमारे विचारों और भावनाओं में, ‘धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय’ जैसी पुरानी धारणाएं भी उगती रहती हैं।

ऐसे व्यावहारिक विचार हमें आने वाले समय के प्रति आशावान बनाते हैं। हमें धैर्य थमाते हैं। भागदौड़ भरे जीवन में जबरदस्ती तेज चलने की गति को धीमा करते हैं, जिससे हमारे मानस और शरीर को आराम मिलता है। जिंदगी खुशगवार रहने की कोशिश करती है। विवाह के बाद अधिकांश दंपति संतान चाहते हैं। परिवार में शिशु जन्म की प्रतीक्षा हो रही हो, तो खुशी मनाने की प्रतीक्षा और तैयारी में कई व्यक्ति शामिल रहते हैं।

सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण किरदार तो भावी मां का ही रहता है, जो विवाह के साथ ही, और फिर प्रसव के अप्रत्याशित समय तथा उसके बाद भी डाक्टर की सलाह पर अमल करती है। नौकरी करने वाली महिला का प्रयास रहता है कि जब तक हो सके, काम करते हुए सक्रिय रहे। उसे प्रसूति समय की ओर होती तैयारियों के दौरान पारिवारिक सलाह, संतुलित खानपान, दवाइयों और निश्चित अंतराल पर हो रहे चिकित्सीय परामर्श और जांच की प्रक्रिया से गुजरना होता है। चिकित्सक की महंगी फीस, दवाइयों की कीमत अदा करनी होती है।

सामान्य चल रही स्थिति में महत्त्वपूर्ण अंतराल तब आता है, जब शिशु जन्म होने में कुछ दिन ही बाकी रह जाते हैं। उम्मीद रहती है कि सब ठीक चल रहा है, इसलिए कोई परेशानी नहीं होगी, लेकिन वक्त किस घड़ी अपना मिजाज बदल लेगा, कह नहीं सकते। चिकित्सक ने गर्भावस्था को आदर्श मानते हुआ कहा कि सब ठीक है।

प्रसव से ठीक पहले शिशु अपनी अवस्था बदल लेता है और मां, पिता और चिकित्सकों की टीम को चुनौतीपूर्ण स्थिति में ला खड़ा करता है। ऐसी स्थिति में मां सबसे ज्यादा जोखिम झेलती है और उतना ही संकट दुनिया में आने वाला बच्चा सहता है। हालांकि अगर पिता स्त्रियों के प्रति संवेदनशील मिजाज रखता है, तो उसकी हिम्मत भी कम जोखिम भरी नहीं होती।

जहां माता-पिता साथ हों, वहां वास्तविक व्यावहारिक संबल मिल जाता है, लेकिन जहां कोई प्रियजन साथ नहीं हो पाता, तो परेशानियां सवाल खड़े करती है कि जो होना है, होकर रहेगा। कठिन समय के लिए आपकी तैयारी कितनी रही? हम यह भूल जाते हैं कि अप्रत्याशित स्थिति से निपटने के लिए क्या जरूरी तैयारी करनी चाहिए थी। यह हम तब समझते हैं जब आपात समय आ चुका होता है और हमारे पास स्थिति से किसी भी तरह निपटने के सिवा और कोई विकल्प नहीं रह जाता।

कितनी बार ऐसा होता है कि कुछ ही लम्हों में स्थिति का रूप-रंग बदल जाता है। जिंदगी कांटों के बीच उलझ जाती है। व्यक्ति सामान्य जिंदगी जीते हुए सकारात्मक सोचता है। उसे लगता है, सब ठीक रहेगा, लेकिन हम अक्सर यहीं गलती करते हैं। सहज चलते समय के दौरान व्यक्ति कठिन समय के लिए तैयारी करना भूल जाता है और जब अप्रिय स्थिति उत्पन्न होती है तो वक्त ऐसी भाषा में इम्तिहान लेता है, जो हमने पढ़ी नहीं होती। असमंजसों की भीड़ जमा हो जाती है। वक्त तो कभी भी नई करवट ले सकता है।

आने वाला जीवन सुचारु रहे, इसलिए मासिक आय में मिली राशि में से सबसे पहले बचत के रूप में कुछ फीसद रखने की बहुमूल्य सलाह गौर करने लायक है। यह बचत आकस्मिक, अनियोजित खर्चों के लिए की जाती है। बीमा की महत्ता हमेशा बनी रही है। कठिन समय में बीमा राशि बहुत बड़ा सहारा बनती है। व्यक्ति जान खोता है, लेकिन बीमा उपलब्ध होने के कारण बचे हुए व्यक्तियों की जिंदगी को सहारा मिल जाता है।

वाहन का बीमा पहले ही करवाया जाता है, ताकि दुर्घटना में हुआ नुकसान झेला जा सके। जीवन की पल-पल बदलती, संघर्षमय, असुरक्षित परिस्थितियों में सशक्त आर्थिक पक्ष की बहुत जरूरत है। आपात स्थिति में घर के बुजुर्ग बहुत सहयोगी रहते हैं, लेकिन अनेक एकल परिवारों के साथ पारिवारिक सामंजस्य स्थापित न होने के कारण, निजी बीमारी या दूसरी अपरिहार्य परिस्थितियों के कारण साथ नहीं रह नहीं पाते। विदेश में रहने वाले परिवारों के अभिभावकों का कई बार कुछ कारणों से वीजा नहीं लग पाता, इसलिए वे जा नहीं पाते।

आस-पड़ोस के लोगों को उनकी प्राथमिकताएं पकड़े रहती हैं। रिश्तेदार, मित्रों के आश्वासन, आपसी संबंधों में कथित सहयोग को व्यावहारिक नहीं बना पाते। अब वक्त और माहौल ऐसा हो चला है कि आत्मविश्वास, संपर्क और सुविधाओं के साए में जिंदगी आराम से बिताना अच्छा है, लेकिन उस कठिन वक्त के लिए भी तैयारी सुनिश्चित करना जरूरी है जो पता नहीं कब, किस लम्हा आकर सामान्य स्थिति को असामान्य बना सकता है। मुश्किल समय का ध्यान रखा जाए, तो ज्यादा परेशान होने की नौबत नहीं आएगी।