पृथ्वी से तारे हमें बहुत छोटे नजर आते हैं, जबकि वे हमारी धरती से भी आकार में बड़े हैं। जो हमें जैसा दिखता है, वह जरूरी नहीं कि वैसा ही हो। लगातार वर्षों की मेहनत, शोध, अध्ययन के जरिए हम ऐसी कई जानकारियां जुटा सके हैं, जो हमारी सामान्य दृष्टि की समझ से परे थीं। यह बहुत धैर्य और चिंतन का काम तो है ही, साथ ही विस्मित कर देने वाली विनम्रता का भी परिणाम है, जिसमें हम अपनी दृष्टि, समझ पर पुनर्विचार करने के लिए तैयार हो जाते हैं और अपनी समझ के दायरे को चिंतन के जरिए विस्तार देते हैं। किसी भी विषय के कुशल विशेषज्ञ को भी हम सीखते, समझते, खोज करते हुए ही पाते हैं।
हम बहुत कुछ जानते हैं और हम बहुत कुछ नहीं जानते हैं- यही हर काल, परिस्थिति की वास्तविकता होती है। जो यह समझ जाता है उसके लिए प्रगति के रास्ते खुल जाते हैं। आम जीवन में सामान्य व्यक्ति अपनी चीजों की सरलता और जटिलता का अनुमान अपने परिप्रेक्ष्य से लगाने लगता है। पहले से दिए गए तथ्यों, सामग्री के माध्यम से हम जीवन की कई गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास करते रहते हैं। कभी-कभी हमें इस बात का भी भ्रम होने लगता है कि हम सब कुछ जानने और समझने लगे हैं, जबकि हम किसी भी स्थिति का बेहद छोटा-सा भाग देख और समझ पा रहे होते हैं।
दैनिक जीवन में हर दिन हम कई लोगों से संपर्क में आते हैं, मनुष्य की मन:स्थिति उसकी परिस्थितियों पर निर्भर करती है। ऐसे में हम हर पल किसी बिल्कुल अलग व्यक्तित्व से मिल रहे होते हैं। हमारे पास अपने और दूसरों के प्रति कोई ठोस व्यवहार का तरीका मौजूद नहीं हो पाता जो हर व्यक्तित्व और हर परिस्थिति के लिए उपयुक्त हो। हम सब अपने आप के सहजबोध को सटीक मानकर व्यवहार करने लगते हैं। रोजमर्रा के जीवन में सामान्य परिस्थितियों में आ रहे लोगों के बारे में अध्ययन करना हमेशा संभव नहीं हो पाता। साथ ही हम इस भ्रम में भी बने रहते हैं कि हमें आवश्यक जानकारी का संज्ञान है। हां, कुछ खास परिस्थितियों में पृष्ठभूमि की जांच कर लेना हम जरूरी मानते हैं।
हम कभी अपनी समझ, परिपक्वता, शिष्टाचार को याद रखते हुए व्यवहार करते हैं तो कभी सामने वाले के ओहदे, उसके व्यक्तित्व को देखते हुए। कभी ऐसा भी होता है कि हम अपनी उस समय की अपनी मन:स्थिति के अनुसार व्यवहार करने लगते हैं। हमारा व्यवहार और आपसी संबंध परिस्थितियों के वश में रहते हैं, जिनमें ठहराव और स्थिरता की कमी देखने को मिलती है। ऐसे में लगता है, हमारी अनभिज्ञता का बोध ही हमें सही रास्ता सुझा सकता है। जब हम यह स्वीकार कर सकें कि हम अपने बेहद करीबी व्यक्ति को भी पूरी तरह से नहीं जानते। हमारे मन में जो मानसिक चित्र बना हुआ है, जो पूर्वाग्रह निर्मित हो चुके हैं, उससे ऊपर उठकर हम दूसरों को नई दृष्टि से देखने, समझने की कोशिश कर सकें। हमारे करीब खड़े व्यक्ति की परिस्थिति, उसकी मानसिक अवस्था हमसे पूरी तरह अलग हो सकती है। एक ही परिवार का हर सदस्य भिन्न हो सकता है, उसकी चिंताएं, खुशियां, उसकी जरूरतें अलग हो सकती हैं।
हमारे अधीन और हमारे साथ काम करने वालों का जीवन, हमारे नजदीकी संबंधी, दोस्तों के जरूरी मुद्दे, प्राथमिकताएं हमसे बिल्कुल अलग हो सकते हैं। देखा जाए तो हम सब एक बहुत बड़ी दुनिया में अपनी-अपनी अलग अनोखी दुनिया लेकर जी रहे हैं। अलग-अलग उम्र में हम सब अपनी अलग गति से किसी अलग ही पड़ाव पर हैं। भले ही हम सब एक ही दृश्य देख रहे हैं, एक ही छत के नीचे, पर हम सब उसे अपनी समझ के विस्तार से, अपने अनुभवों से समझ रहे हैं। किसी यात्रा के दृश्य की कल्पना की जा सकती है, जिसमें सभी एक ही ट्रेन में सवार हैं। कोई छुट्टियां मनाने जा रहा है, कोई नौकरी के साक्षात्कार के लिए, कोई अपने जीवन की सबसे बड़ी क्षति में सम्मिलित होने जा रहा है। इसमें दुख, उत्साह, चिंता, उम्मीदें एक ही समय में एक ही गाड़ी के भीतर सवार हैं।
सोच कर देखा जाए कि सबको एक साथ लेकर चलना, जिसमें किसी की भावनाएं आहत न हों, यह कितना जटिल हो सकता है। पर एक दूसरे के बारे में जानकारी न होते हुए भी हम एक दूसरे के साथ आपसी सहयोग और स्वस्थ रिश्ते बना सकते हैं, जब हम एक दूसरे के लिए दया और सहानुभूति की भावना रखते हैं। छोटे-बड़े प्रसंगों में जब हम अपना धैर्य नहीं खोते, किसी की मासूमियत में हुई गलती को स्नेह के साथ ठीक कर देते हैं, यह सोचते हुए कि हो सकता है कि आज उसका दिन कठिन हो। अपनी लगातार राय देने की जगह किसी को विनम्रता से पूछ लेते हैं कि बताइएगा कि मैं आपकी कुछ मदद कर सकूं, तो वहां हम सही आचरण कर रहे होते हैं।
जब कभी हमारे सहायक के द्वारा काम में गुणवत्ता नहीं आ पा रही होती है, हम उसे समय देते हैं सुधार करने का। नाराजगी से पहले, अपेक्षाओं से पहले हम सामने वाले की जरूरतों का, उसकी मन:स्थिति के बारे में विचार करना आम है। बहुत कुछ जानने के दंभ से खुद को बचाकर हम अपने व्यवहार, नजरिये पर अक्सर गौर करने लगते हैं। ‘मुझे हर विषय की जानकारी है’- इस भाव के दबाव से खुद को मुक्त कर ‘मुझे बहुत कुछ नहीं पता है और मैं सीखने, समझने के लिए तैयार हूं’-ऐसा करके हम खुद के प्रति तो दया रखते ही हैं, स्वस्थ और खुशनुमा रिश्ता खुद से और दूसरों से स्थापित करने में सफल भी हो जाते है।
