सबलता आत्मशक्ति से जुड़ा पक्ष है। अंतर्मन का यह सामर्थ्य संसाधनों की हर कमी पर भारी पड़ता है। हर मोर्चे पर संघर्ष करने की ऊर्जा देता है। विचारणीय है कि यही आत्मिक ऊर्जा जुटाकर हमारे देश की स्त्रियां सबल बनी हैं। अपने लक्ष्यों तक पहुंची हैं। जीवन की दशा पलटने का काम किया है। हर मोर्चे पर नई दिशा चुनने का जीवट रखा है। भारतीय महिलाओं ने घर-आंगन की अनगिनत समस्याओं के बीच भी अपने मन का मौसम बदलने के प्रयास किए हैं। समाज और परिवार में ही नहीं, देश-दुनिया तक, अपने अस्तित्व की सार्थकता सिद्ध करने में सफलता हासिल की है। आधी आबादी ने बार-बार अपनी कर्मठता और आत्मशक्ति को सिद्ध किया है।

समस्याओं के आगे नत होने के बजाय संघर्ष की राह चुनी है। यही कारण है कि अपनी भीतरी शक्तियों को जागृत कर उन्नति का आकाश छूने के अनगिनत उदाहरण आज गांवों से लेकर महानगरों तक में मौजूद हैं। सामाजिक बंधनों और पारिवारिक मोर्चे पर मौजूद अड़चनों के बावजूद भारतीय महिलाओं ने हर क्षेत्र में रेखांकित करने योग्य उपस्थिति दर्ज कराई है।

सुखद है कि समाज ने भी स्त्री शक्ति के सामर्थ्य को स्वीकारना सीख लिया है। आधी आबादी के सशक्तीकरण और समानता के परिवेश की यह नीति भारत के संविधान में भी समाहित है। अनुच्छेद 14 हर मोर्चे पर महिलाओं के लिए समानता के अधिकार को सुनिश्चित करता है। व्यावहारिक रूप से भी देखा जाए तो समानता का धरातल प्रगति के पथ पर बढ़ते कदमों को मजबूती देता है।

दरअसल, मातृ शक्ति की उपासना वाले भारतीय समाज में स्त्रियां सदा से ही शक्तिस्वरूपा मानी गई हैं। रूढ़िवादी सोच और स्वार्थ साधने के लिए बनाए गए बंधनों ने महिलाओं की कठिनाइयां बढ़ाई हैं। बावजूद इसके स्त्रियों ने समय के साथ अपने जीवन को साधा है। आज पारिवारिक ही नहीं, सामुदायिक स्तर पर भी सशक्त महिलाओं के बढ़ते आंकड़े आधी आबादी के सशक्त अस्तित्व और बढ़ते सामर्थ्य की पुष्टि करते हैं। स्त्री मन की जिजीविषा ही है कि दूरदराज के क्षेत्रों में महिलाएं उद्यम चला रही हैं, तो कहीं सामाजिक कल्याण के कार्यों में जुटी हैं। भारतीय स्त्रियों के तेजस्वी स्वरूप और कर्मशील व्यक्तित्व की नई छवि वैश्विक स्तर पर भी ध्यातव्य बन गई है।

आधी आबादी का हर मोर्चे पर उपस्थिति दर्ज कराना उनके सबल होने का ही प्रतीक है। शिक्षा, व्यवसाय, अंतरिक्ष अभियान, खेल, सैन्य बल या घरेलू मोर्चा। दुनियाभर में दिखती पारिवारिक विखंडन की परिस्थितियों के बीच हमारे देश की महिलाएं आज भी जीवन का आधार कहे जाने वाले परिवार को थामना नहीं भूली हैं। वे हर विपरीत परिस्थिति में अपनों की शक्ति बन रही हैं। समग्र समाज में सहयोग और संबल के भाव को पोस रही हैं।

आज की महिलाएं चेतनासंपन्न, सजग और आत्मविश्वासी हैं। अपने अस्तित्व और अधिकारों के प्रति जागरूक हैं। समाज, परिवार और परिवेश में मौजूद अच्छे-बुरे व्यवहार को लेकर स्पष्ट सधी समझ भी रखती हैं। मुखर होने के अर्थ और आवश्यकता को बखूबी जानती हैं। उनका चेतनामय अस्तित्व हर परिस्थिति में प्रश्न करने का सामर्थ्य रखता है। यह सजगता महिलाओं को बहुत से रूढ़िवादी बंधनों से मुक्त कर स्वविवेक रूपी अस्त्र का प्रयोग करने की राह सुझा रही है। आत्मनिर्भर बनने का हौसला दे रही है। आत्मशक्ति और जिजीविषा के धरातल पर अपने जाग्रत अस्तित्व को समाज के सामने रख रही हैं। उनका शक्तिस्वरूपा बन मानवीय भावों को सहेजते हुए आगे बढ़ना व्यावहारिक रूप से भी बेहतरी की नई परिभाषा गढ़ने का उदाहरण है।

यह उन्नति के आकाश में आत्मशक्ति की उड़ान का हौसला ही है कि हमारे देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित में लड़कियों का नामांकन अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे विकसित देशों से भी अधिक है। सामाजिक-सांस्कृतिक मोर्चे पर परंपरागत परिवेश वाले भारतीय समाज में आर्थिक सुविधाओं और पारिवारिक सहयोग तक, महिलाओं को कुछ भी सहजता से नहीं मिल पाता।

आत्मविश्वासी व्यक्तित्व सबल होने की प्रमुख शर्त होती है। मुखरता विचारों की दृढ़ता का प्रतीक होती है। चेतना का भाव मनोभावों के जागरण का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में भारतीय स्त्रियों का परंपरागत रंगों को सहेजते हुए मन-जीवन के मोर्चे पर हर बुराई का प्रतिकार कर प्रगति के मार्ग पर चलना रेखांकित करने योग्य है। आर्थिक आत्मनिर्भरता से लेकर मनोभावों के प्रबंधन तक, स्त्रियां अपने अस्तित्व को गढ़ रही हैं। गौरतलब है कि 2017-18 में देश में महिला श्रमशक्ति की भागीदारी बाईस फीसद थी।

महिलाएं पारंपरिक रूढ़ियों को चुनौती देते हुए नवाचार संचालित कार्यबल का हिस्सा बन रही हैं। 2021-22 सत्र में उच्च शिक्षा में महिला नामांकन कुल नामांकन का लगभग पचास फीसद रहा। दूरदराज के गांवों में महिलाएं ड्रोन उड़ाने का प्रशिक्षण ले रहीं हैं तो महानगरों में तकनीकी दुनिया में उच्च पदों तक अपनी पहुंच बना चुकी हैं। हस्तकला और स्वदेशी सामान बनाने वाली महिलाएं देश और विदेश के श्रम बाजार तक पहुंच बना चुकी हैं।

दुनिया की सबसे युवा जनसंख्या वाले हमारे देश का वर्ष 2030 तक विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य आधी आबादी की सक्रिय भागीदारी के बिना संभव नहीं। इसके लिए कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने और लैंगिक अंतर को पाटने के प्रयास आवश्यक हैं। ज्ञात हो कि 2023 में देश के कार्यबल में स्त्रियों की भागीदारी बत्तीस फीसद से अधिक थी।

यह हिस्सेदारी पाने तक की यात्रा बहुत संघर्षों से भरी रही है। बंधनों और बाधाओं के बावजूद अपनी ऊर्जा और क्षमता को सार्थक दिशा देते हुए स्त्रियां आगे आई हैं। ऐसे में सामाजिक सोच, पारिवारिक परिवेश और सरकारी नीतियों की सकारात्मक दिशा महिलाओं को हर पक्ष पर मुख्यधारा में ला सकते हैं, आधी आबादी के प्रयासों को और गति दे सकते हैं। मानवीय संवेदना और यथार्थवादी बदलाव के जरिए मातृशक्ति को मान देने से एक सुंदर परिवेश बन सकता है।