भारत में सार्वजनिक परिवहन और निजी वाहनों से होने वाली दुर्घटनाएं हर साल बढ़ रही है। हाल के महीनों में सड़कों पर हादसों की रफ्तार में तेज बढ़ोतरी देखी गई है। उनमें नाहक ही लोगों की जान चली गई, कई स्थायी तौर पर अपंग हो गए। अगर इस गंभीर होती समस्या के हल के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो अकेले यह समस्या देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन कर खड़ी हो जाएगी। यों सड़क दुर्घटनाओं को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। यहां तक कि सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री भी इस स्थिति को लेकर निराशा जता चुके हैं। खुद मंत्रालय की वेबसाइट पर वर्ष 2023 की दुर्घटनाओं के आंकड़े प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि वर्ष 2023 में भारतीय सड़कों पर 4,80,583 दुर्घटनाएं हुई हैं। इनमें 1,72,890 लोगों की मृत्यु हुई तथा 4,62,825 लोग घायल हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार सड़क दुर्घटनाओं और मृतकों तथा घायलों की संख्या में 2022 की तुलना में वृद्धि हुई है। ये सभी आंकड़े डराते हैं।

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वेबसाइट पर ये आंकड़े फिलहाल वर्ष 2023 तक के हैं। हालांकि इसके बाद 2024 और 2025 में सड़क हादसे अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं। विशेषकर 2025 अगस्त से लेकर अभी तक हुई कई सड़क दुर्घटनाओं ने सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। सबसे अधिक सड़क हादसे राजस्थान में हुए हैं। इस प्रदेश के अलावा मध्य प्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में भी बड़ी सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश से लगती इसकी सीमा पर पांच नवंबर को ही दो-तीन सड़क दुर्घटनाओं में कई लोगों की मृत्यु हो गई। जबकि तीन नवंबर को जयपुर में नशे में धुत डंपर चालक ने सत्रह वाहनों को टक्कर मारी, जिसमें तेरह लोगों की मौत हो गई। फलौदी में एक नवंबर को सड़क दुर्घटना में दो बच्चों सहित छह लोगों की मौत हो गई थी।

पिछले महीने भी शासन, समाज, परिवहन विभाग और चालकों की लापरवाही के कारण छोटी-बड़ी अनेक सड़क दुर्घटनाएं हुर्इं। इंदौर शहर के हवाईअड्डा मार्ग पर 15 सितंबर 2025 को एक ट्रक चालक ने कई लोगों को कुचल डाला था। इससे पहले 12 सितंबर को कर्नाटक राज्य के हासन जनपद में गणेश मूर्ति के विसर्जन के लिए जा रहे युवकों के समूह पर एक चालक ने ट्रक चढ़ा दिया था। इस दुर्घटना में आठ युवकों की घटनास्थल पर ही मौत हो गई थी। जबकि 20 से अधिक लोग बुरी तरह घायल हो गए थे। अगर प्रति माह सड़क और रेल दुर्घटनाओं के आंकड़े प्रदर्शित किए जाएं, तो सूची बहुत लंबी हो जाएगी। यह स्थिति भारत के सार्वजनिक परिवहन के लिए अत्यंत चिंताजनक है। दुर्घटना की खबरें विचलित करती हैं। सामान्य लोगों में स्वाभाविक रूप से चिंता पैदा करती है। उनमें हर समय एक प्रकार का तनाव बना रहता है। मानसिक अवसाद भी होने लगता है।

दुर्घटनाएं केवल सड़कों या राजमार्गों पर ही नहीं हो रहीं। रेलमार्ग भी असुरक्षित हो चुका है। रेलवे प्रशासन अपनी ओर से भरसक कोशिश करता है कि रेल हादसों पर अंकुश लगे। मगर अराजक तत्त्वों द्वारा रेल मार्गों पर पटरियों के साथ जानबूझ कर की जा रही छेड़छाड़ के कारण ही अधिक रेल दुर्घटनाएं हुई हैं। हालांकि कभी-कभी संकेतक प्रणाली में गड़बड़ियों के कारण भी हादसे हुए हैं। सार्वजनिक आवागमन का मार्ग हो या रेल तथा वायु परिवहन, कोई भी दुर्घटनाओं से रहित नहीं है। मगर सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं की आवृत्ति ने सरकार और नागरिकों को गहरी चिंता में डाल दिया है।

दरअसल, सड़क दुर्घटनाएं कई कारणों से हो रही हैं। इनमें प्रमुख है वाहनों की बेकाबू रफ्तार। इसके अलावा, सार्वजनिक क्षेत्र और लोगों के जीवन के प्रति वाहन चालकों का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार भी वजह है। इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया जाता। शराब पीकर तेज रफ्तार में वाहन चलाने से सर्वाधिक दुर्घटनाएं हुई हैं। वस्तुओं को लाने-लेने वाले ट्रक-टेम्पो चालकों पर बिना आराम किए दिन-रात लंबी दूरी तय करने का दबाव होता है। ऐसे में उनकी नींद पूरी नहीं होती और इसी बीच वे शराब का भी सेवन करते हैं। महीनों और वर्षों की उनकी ये आदत अंतत: उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। नियमित रूप में भारी वाहन चलाने वाले चालकों का स्वास्थ्य अगर ठीक नहीं होगा, तो उनका वाहन चलाना दूसरों के लिए खतरनाक ही साबित होगा। गौरतलब है कि अनियंत्रित तरीके से गाड़ियां चलाए जाने से कई बार बड़ी दुर्घटनाएं हो चुकी हैं।

ये चुनौतियां गंभीर हैं। लिहाजा सार्वजनिक परिवहन के साथ ही सड़कों और राजमार्गों पर दुर्घटनाएं रोकने के लिए सरकार को नई नीतियां बनानी होंगी। प्रमुख कारणों की पड़ताल करते हुए इनसे जुड़ी सभी समस्याओं का निराकरण करना होगा। जैसे कि ट्रक चालकों पर बेवजह का अतिरिक्त दबाव कम करना होगा। चालकों और परिवहन कंपनियों के बीच सभी समस्याओं के निराकरण के लिए समन्वय स्थापित करना होगा। परिवहन कंपनियों द्वारा नियुक्त अथवा स्वतंत्र रूप में वाहन चलाने वाले, दोनों प्रकार के चालकों के लिए कामकाजी घंटे निर्धारित करने होंगे। शासन की ओर से यह प्रयास हो कि भारी वाहन चला रहे बस, ट्रक या अन्य वाहनों के चालकों के लिए शासकीय अथवा परिवहन कंपनियों द्वारा नियमित रूप में स्वास्थ्य कार्यशालाएं लगाई जाएं। इनमें चालकों के लिए समाज और सार्वजनिक जीवन में दायित्व निर्वहन से संबद्ध रचनात्मक गतिविधियों की व्यवस्था हो। संभव हो तो ऐसी गतिविधियों में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले चालकों को प्रोत्साहित किया जाए। वाहन चलाने के दौरान चालक शराब का सेवन किसी भी स्थिति में न करें, इसके लिए भी उपाय किए जाएं। उन्हें समझाया जाए कि उनका चालन-कार्य बेहद महत्त्वपूर्ण है। उन्हें वाहन चलाते समय अपनी जिम्मेदारी का अहसास रहे। उनको बताया जाए कि सार्वजनिक वस्तुओं को लाने-ले जाने में उनकी बड़ी भूमिका है। इसी कारण लोगों तक उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुएं पहुंच पाती हैं।

प्राय: सड़कों पर यह भी देखा जाता है कि कई बार सार्वजनिक वस्तुओं को लाने-ले जाने वाले ट्रक और टेम्पो चालकों-परिचालकों को कमतर भाव से देखा जाता है। कुछ लोग उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और उन्हें यह एहसास कराने में कोई कमी नहीं छोड़ते कि वे अनपढ़ हैं और उनका कार्य निम्न स्तर का है। मनोवैज्ञानिक स्तर पर समझा जाए, तो यह कटु सत्य है कि अपने साथ वर्षों से होते आए ऐसे सार्वजनिक बर्ताव के कारण भारी और वाणिज्यिक वाहन चला रहे चालक-समुदाय ने छोटे वाहनों और कार चालकों के प्रति एक शत्रुतापूर्ण व्यवहार बना लिया है। कई बार अत्यधिक शराब पीने के कारण उनका ऐसा व्यवहार अनियंत्रित रूप से वाहन चलाने के रूप में सामने आता है। हालांकि सभी दुर्घटनाएं इसी कारण नहीं होती हैं, लेकिन अगर चालकों को विश्वास दिलाया जाए कि लोगों की दृष्टि में उनका कार्य बहुत महत्त्व का है, तो निश्चित रूप में उनके व्यवहार में बदलाव आएगा। वे अपने सार्वजनिक उत्तरदायित्व को समझेंगे। इससे सड़क दुर्घटनाओं में उत्तरोत्तर कमी आने की स्थायी भूमिका बन सकती है। मगर लापरवाही के प्रति नरमी किसी भी हालत में नहीं बरती जानी चाहिए।