वर्ष 2025, भारतीय अर्थव्यवस्था को मुक्त व्यापार समझौते के आधार पर कई नए आयाम देकर गया है। इस वर्ष केंद्र सरकार ने मुख्य रूप से तीन मुक्त व्यापार समझौतों को अपनी झोली में डाला है। सबसे पहले, जुलाई 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान पिछले चार वर्षों से हो रही वार्ता के बाद ब्रिटेन के प्रधानमंत्री स्टार्मर के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किया। उसके बाद दिसंबर में भारत ने इस पक्ष पर तेजी से आगे बढ़ते हुए तीसरे सप्ताह में दो देश, ओमान और न्यूजीलैंड के साथ ये समझौते किए।
न्यूजीलैंड के साथ हुआ समझौता तीव्र गति से आगे बढ़ा और मात्र नौ महीने के समय में ही इस पर आपसी सहमति बन गई। 22 दिसंबर को दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने टेलीफोन वार्ता पर इसे सहमति प्रदान कर दी। वहीं ओमान के साथ समझौते के लिए बीते 18 दिसंबर को दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने ओमान में प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्रा के दौरान इस पर हस्ताक्षर किए। पहले से ही भारत इस पक्ष पर मारीशस, दुबई, आस्ट्रेलिया और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ के साथ एफटीए (फ्री-ट्रेड-एग्रीमेंट) कर चुका है।
सहमति का लक्ष्य
मुक्त व्यापार समझौता यानी एफटीए दो या दो से अधिक देशों के बीच एक ऐसा समझौता होता है, जिसमें देश वस्तुओं और सेवाओं के व्यापार को प्रभावित करने वाले कुछ दायित्वों, निवेशकों के संरक्षण और बौद्धिक संपदा के अधिकारों से संबंधित विभिन्न विषयों पर आपसी सहमति बनाते हैं। मुख्य रूप से इस प्रकार की सहमति का मकसद आपसी व्यापारिक लेन-देन पर लगने वाले विभिन्न करों की दरों को या तो कम करना होता है या पूरी तरह खत्म करना, ताकि वित्तीय मुनाफा बढ़ सके।
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अन्य मकसद दोनों देशों के बीच नागरिकों के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ाना और वित्तीय निवेश के विभिन्न अवसर को पैदा करना होता है। भारत इस पक्ष पर तेजी से आगे बढ़ता दिख रहा है और उसका यह रुख विभिन्न मुल्कों को अचंभित और चिंतित कर रहा है। यकीनन अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस दूसरे कार्यकाल के दौरान उनकी शुल्क नीतियों ने पूरे विश्व को दुविधा में डाला हुआ है और भारत इस पक्ष पर शुरू से ही आर्थिक संकट में है, क्योंकि ट्रंप की ओर से भारत के साथ जानबूझ कर एकतरफा तौर पर पक्षपात किया जा रहा है। इन सबके बीच भारतीय रुपया डालर की तुलना में लगातार कमजोर होता जा रहा है।
दरअसल, डालर का ऐतिहासिक स्तर 91 रुपए पर पहुंच जाना भी आर्थिक संकट का प्रतीक है। इन सबके बीच भारत सरकार द्वारा विश्व के कई विकसित मुल्कों के साथ अपनी व्यापारिक साझेदारी को एफटीए के माध्यम से बढ़ाना एक अच्छा कूटनीतिक कदम है और मजबूत आर्थिक नीति भी।
हित का प्रश्न
इन तीनों मुख्य समझौतों पर अगर भारतीय पक्ष की बात की जाए तो भारत और इंग्लैंड के पारस्परिक व्यापारिक लेन-देन में भारत मुनाफे में रहता है। चालू वित्तीय वर्ष में नवंबर, 2025 तक के आंकड़ों के तहत ब्रिटेन ने भारत को 19 बिलियन पाउंड के निर्यात किए, वहीं भारत से उसने करीब 28 बिलियन पाउंड के बराबर आयात किए।
ब्रिटेन के लिए भारत बहुत महत्त्वपूर्ण इसलिए भी है कि वह उसका दसवां सबसे बड़ा वैश्विक व्यापारिक साझेदार है। हालांकि ब्रिटेन के कुल निर्यात में भारत की हिस्सेदारी मात्र तीन फीसद के आसपास ही है। वहीं भारत के पक्ष से भी ब्रिटेन इसलिए बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे अमेरिका और चीन पर भारत की निर्भरता कुछ कम होती है।
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भारत मुख्य रूप से इंग्लैंड से सोना, लोहा, अल्युमिनियम, शराब और विभिन्न कारें आयात करता है। इसलिए संभव है कि करों की दर में कमी से इसका प्रत्यक्ष फायदा उपभोक्ता को होगा और कच्चे माल के मूल्यों में कमी भी देखने को मिलेगी। इसके अलावा, भारत ब्रिटेन में कपड़ों की आपूर्ति में विश्व में चौथा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश है और इस समझौते के बाद भारत की साझेदारी बढ़ने की उम्मीद है, जिससे भारत के कपड़ा उद्योग को भी बहुत अधिक मुनाफा होगा।
संतुलन की कसौटी
ओमान के साथ पारस्परिक लेनदेन में भारत घाटे में रहता है और वर्तमान में यह तकरीबन दो बिलियन अमेरिकी डालर के आसपास है। अक्तूबर, 2025 के आंकड़ों के आधार पर ओमान ने भारत को 628 मिलियन अमेरिकी डालर के बराबर निर्यात किया, वहीं भारत से मात्र लगभग 340 मिलियन अमेरिकी डालर के बराबर ही खरीदा है। ओमान के साथ किया गया मुक्त व्यापार समझौता भारत के लिए कच्चे तेल और गैस की आपूर्ति में और उनके मूल्यों को घरेलू बाजार में नियंत्रित करने में एक मुख्य भूमिका निभाने वाला है। वहीं दोनों देशों की कर की दरों की समाप्ति पर आपसी सहमति से भारत के चावल उद्योग को इससे बहुत अधिक मुनाफा मिलेगा। ओमान में करीब आठ लाख भारतीय रहते हैं और उनकी व्यक्तिगत आय में भी इस समझौते से बढ़ोतरी होगी, जिससे भारत को वार्षिक स्तर पर करीब दो बिलियन अमेरिकी डालर के बराबर ‘रेमिटेंस’ की प्राप्ति की आशा है।
न्यूजीलैंड और भारत के आपसी लेन-देन में भारत फायदे में रहता है। जून, 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने उसे जहां तकरीबन 3.68 बिलियन अमेरिकी डालर निर्यात किए हैं, वहीं उससे मात्र 1.79 बिलियन डालर के आसपास ही आयात किए। भारत-न्यूजीलैंड से मुख्य तौर पर डेयरी उत्पाद, ऊन इत्यादि खरीदता है और न्यूजीलैंड को मुख्य रूप से दवाइयां और रिफाइनरी पेट्रोलियम उत्पाद विक्रय करता है। न्यूजीलैंड और भारत के बीच हुआ मुक्त व्यापार समझौता मुख्य रूप से भारत के सेवा क्षेत्र के अंतर्गत आइटी कंपनी, पर्यटन, बैंकिंग क्षेत्र, स्वास्थ्य आदि को वहां विस्तार करने का मौका देगा और इसके माध्यम से विभिन्न भारतीय पेशेवरों के लिए रोजगार की संभावनाएं न्यूजीलैंड में खुलेंगी। वर्तमान समय में न्यूजीलैंड में तकरीबन तीन लाख भारतीय रहते हैं, जो वहां की आबादी का पांच फीसद है।
डालर का बोझ
अभी यह समझना बाकी है कि क्या भारत इन सभी देशों के साथ हो रहे आपसी लेन-देन को डालर से दूर रखकर कर सकता है। अगर ऐसा संभव होता है, तो यकीनन डालर की तुलना में भारतीय रुपए में हो रही कमजोरी पर लगाम लग सकती है। अमेरिकी शुल्क की दरों के कारण मई से लेकर नवंबर तक भारत का अमेरिका को होने वाले निर्यात में लगभग 21 फीसद की कमी आ चुकी है और इससे उबरने के लिए भारत में घरेलू स्तर पर जीएसटी में कटौती पहले से ही कर दी गई। फिर भी भारत को एफटीए के पक्ष पर सकारात्मक ही देखा जाना चाहिए।
