भारतीय क्रिकेट ने अपने टेस्ट क्रिकेट के 94 साल के इतिहास में सबसे काला दिन बुधवार (26 नवंबर 2025) को देखा। गुवाहाटी में साउथ अफ्रीका ने उसे 408 रन से हराया। रन के हिसाब से यह भारत की घर में सबसे बड़ी हार है। यही नहीं सालभर में दूसरी बार घरेलू सरजमीं पर उसे क्लीन स्वीप का सामना करना पड़ा। न्यूजीलैंड से 0-3 की हार के बाद साउथ अफ्रीका से 0-2 की हार के बाद सवाल यह है कि आखिर भारतीय टीम इस गर्त में कैसे पहुंच गई?

इस हार के पोस्टमार्टम में कोच गौतम गंभीर समेत कुछ खिलाड़ियों की बलि दी जा सकती है, लेकिन ऐसा करने से कुछ लोगों के दिल को भले ही ठंडक मिल जाए, लेकिन भारतीय क्रिकेट को कोई फायदा नहीं होगा। न्यूजीलैंड और साउथ अफ्रीका के भारत में क्लीन स्वीप ने टीम इंडिया की व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है। इस काले दिन के लिए मुख्य कोच गौतम गंभीर, अजीत अगरकर की अगुआई वाली चयन समिति, नेशनल क्रिकेट एकेडमी (NCA) से लेकर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) तक बराबर के जिम्मेदार हैं।

नंबर 3 एक खोज

न्यूजीलैंड के खिलाफ 0-3 से सीरीज गंवाने के बाद भारतीय टीम के बड़े चेहरों रविचंद्रन अश्विन, रोहित शर्मा और विराट कोहली की विदाई की तैयारी शुरू हुई। ये खिलाड़ी अपने आखिरी पड़ाव पर थे, लेकिन बगैर उनके विकल्प को तैयार किए ट्रांजिशन की ओर बढ़ा गया। इंग्लैंड दौरे पर भारतीय टीम इस सवाल के साथ गई कि नंबर 4 और नंबर 3 कौन होगा? नंबर 3 पर संघर्ष कर रहे शुभमन गिल को कप्तानी के साथ नंबर 4 की भूमिका मिली। उन्होंने निराश नहीं किया, लेकिन नंबर 3 की खोज जारी है। साई सुदर्शन को मौका मिला है, लेकिन वह संघर्ष करते ही दिखे हैं।

कहां से कहां पहुंच गया भारतीय क्रिकेट

साई सुदर्शन को हटा दिया जाए तो विकल्प कौन होगा? भारतीय टेस्ट टीम को छोड़िए, घरेलू क्रिकेट से भी फिलहाल कोई नाम रेस में दिखाई नहीं देता। एक जमाना था जब खिलाड़ियों का घरेलू क्रिकेट में रन बनाते-बनाते करियर खत्म हो जाता था, लेकिन भारत के लिए खेलने का उनका सपना नहीं पूरा हो पाता था। अमोल मजूमदार और सुबमण्यम बद्रीनाथ जैसे खिलाड़ियों को लेकर कहा जाता है कि ये खिलाड़ी गलत दौर में पैदा हुए, क्योंकि इन्हें राहुल द्रविड़, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे खिलाड़ियों के कारण भारतीय टीम में मौका नहीं मिल पाया।

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रणजी ट्रॉफी चयन का पैमाना नहीं

आज के समय में भारतीय टेस्ट टीम में जगह है, लेकिन घरेलू क्रिकेट में चेहरे दिखते ही नहीं हैं, जो दावा ठोक सकें। नाम दिखेंगे भी कैसे जब रणजी ट्रॉफी चयन का पैमाना ही नहीं है। रणजी ट्रॉफी को गंभीरता से लिया जाता तो मुख्य चयनकर्ता अजीत अगरकर को भारतीय टीम के साथ नहीं देखा जाता। वह नए खिलाड़ियों पर नजर रखने के साथ-साथ टैलेंट पूल तैयार करने की कोशिश करते। घरेलू क्रिकेट में खूब रन बनाने वाले सरफराज खान टीम से बाहर नहीं होते। मुंबई के इस खिलाड़ी ने पिछले साल जनवरी में डेब्यू किया, जबकि उनका डेब्यू दो-तीन साल पहले ही हो जाना चाहिए था।

घरेलू क्रिकेट के साथ नाइंसाफी

97-98 के औसत के बाद भी मौका न मिलना घरेलू क्रिकेट के साथ नाइंसाफी है, जो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) होने दे रहा है। कड़वी सच्चाई यह है कि इसकी शुरुआत अभी नहीं हुई है। वर्षों पहले भारतीय टेस्ट टीम में भी चयन का पैमाना इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) बन गया। बीसीसआई की ओर से खिलाड़ी बनाने या ढूंढ़ने का प्रयास नहीं होता। यह जिम्मेदारी आईपीएल फ्रेंचाइजियों के स्काउंट्स ने ले ली है। जसप्रीत बुमराह से लेकर नितीश कुमार रेड्डी तक आईपीएल प्रोडक्ट हैं।

बगैर ब्लूप्रिंट के चल रहा भारतीय क्रिकेट

फिलहाल भारतीय क्रिकेट बगैर ब्लूप्रिंट के चल रहा है। वह भविष्य की योजना बनाने के बजाय रियल टाइम में प्लानिंग करता है। इसका एक नमूना कोलकाता टेस्ट में देखने को मिला। भारतीय टीम की रैंक टर्नर पर खेलने की योजना नहीं थी। यह योजना साउथ अफ्रीका ए के खिलाफ इंडिया ए की दूसरे अनाधिकारिक टेस्ट में हार के बाद बनी। इस मैच में मोहम्मद सिराज, प्रसिद्ध कृष्णा और कुलदीप यादव जैसे गेंदबाज खेले थे और 417 रन का स्कोर हासिल हो गया था।

बगैर तैयारी के टर्निंग पिच दे दी गई

साउथ अफ्रीका को टर्निंग विकेट की जाल में फंसाने का प्लान बनाया गया, जिसमें भारतीय टीम खुद ही फंस गई। साउथ अफ्रीका तो पाकिस्तान में ऐसी पिचों पर खेलकर बेहतर तैयारी के साथ भारत आया था। अगर रैंक टर्नर देना ही था तो भारतीय बल्लेबाजों को भी ऐसी पिचों पर प्रैक्टिस कराना चाहिए था, लेकिन मेजबान टीम के खिलाड़ियों का समय भारत से ऑस्ट्रेलिया और फिर ऑस्ट्रेलिया से भारत आने में ही निकल गया। चोटिल शुभमन गिल मैच खेल पाएंगे या नहीं यह फैसला लेने में देरी बताती है कि भारतीय टीम और सपोर्ट स्टाफ का हर सदस्य खुद को कितना असुरक्षित महसूस करता है।