मनुष्य अक्सर यही मानता है कि हमारे जीवन पर सबसे बड़े खतरे बाहरी होते हैं, जैसे सड़क दुर्घटनाएं, किसी व्यक्ति या जानवर की ओर से किया गया हमला, या फिर संक्रमण और गंभीर बीमारियां। मगर नए शोध बताते हैं कि हमारे ऊपर होने वाला लगातार और सबसे गहरा हमला शरीर के भीतर हमारी कोशिकाओं में मौजूद ‘डीएनए’ पर होता है। यह हमला अदृश्य होता है, लेकिन इसके परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। डीएनए हमारे शरीर की सबसे बुनियादी और आवश्यक संरचना है, जिसे जीवन की ‘निर्देश पुस्तिका’ यानी ‘गाइड बुक’ कहा जा सकता है, क्योंकि इसी से हमारा और हमारी आगामी पीढ़ियों का जीवन निर्देशित होता है।
असल में, डीएनए में हमारे शरीर की बनावट, रंग-रूप, व्यवहार, चयापचय और स्वास्थ्य से जुड़ी सभी जानकारियां सुरक्षित रहती हैं। हर कोशिका के केंद्र में मौजूद डीएनए ही यह तय करता है कि कौन-सी कोशिका क्या काम करेगी और शरीर का कौन-सा हिस्सा कैसे विकसित होगा। यदि डीएनए को कोई नुकसान पहुंचता है, तो शरीर की कोशिकाएं गलत ढंग से काम करने लगती हैं, जिससे कई तरह की जटिल समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं और ये अगली पीढ़ी में भी हस्तांतरित हो सकती हैं।
यों डीएनए को होने वाले ज्यादातर नुकसान की मरम्मत हमारे शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली स्वयं कर लेती है, मगर जब हमले लगातार होते हैं, तो यह प्रणाली भी अपनी कार्यक्षमता खोने लगती है। अध्ययनों के मुताबिक, हमारे डीएनए पर सबसे बड़ा हमला सूर्य की पराबैंगनी किरणों से होता है। ये किरणें त्वचा की कोशिकाओं में प्रवेश कर उनके आनुवांशिक पदार्थ, यानी डीएनए को नुकसान पहुंचाती हैं।
अगर लंबे समय तक इनसे बचाव न किया जाए, तो यह नुकसान त्वचा कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इसके अलावा चिकित्सीय जांच प्रणाली में प्रयुक्त की जाने वाली ‘एक्स-रे’ और ‘सीटी-स्कैन’ जैसी विकिरण भी डीएनए को प्रभावित कर सकती हैं।
हालांकि इनका उपयोग चिकित्सीय आवश्यकता के अनुसार ही किया जाता है, लेकिन बार-बार इनके संपर्क में आने से हमारे डीएनए को होने वाले नुकसान का जोखिम काफी बढ़ जाता है। हमारे शरीर की प्राकृतिक रक्षा प्रणाली ऐसे नुकसान की भरपाई कर पाएगी या नहीं, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि नुकसान का स्तर क्या है। यानी हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली उस नुकसान की मरम्मत करने में सक्षम है या नहीं।
प्रदूषित हवा भी हमारे डीएनए की बड़ी शत्रु है। वायुमंडल में उपस्थित धुआं, हानिकारक रासायनिक कण और भारी धातुएं शरीर में प्रवेश कर ‘फ्री रेडिकल्स’ यानी मुक्त सूक्ष्म कण का निर्माण करती हैं। ये मुक्त कण कोशिकाओं की स्थिरता में बाधक बनते हैं और डीएनए के संरचनात्मक घटकों को नुकसान पहुंचाते हैं।
यही कारण है कि आज बढ़ते प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां दुनिया भर में तेजी से फैल रही हैं। खानपान का भी हमारे डीएनए पर प्रभाव पड़ सकता है। अत्यधिक तेलयुक्त और प्रसंस्कृत, डिब्बाबंद या मिलावटी भोजन शरीर में ऐसे प्रतिक्रियाशील रसायन उत्पन्न करता है, जो कोशिकाओं को क्षति पहुंचाकर डीएनए की सुरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देते हैं। लंबे समय तक ऐसे आहार का इस्तेमाल करने से कैंसर जैसी दीर्घकालिक बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
कुछ विषाणु भी सीधे डीएनए पर हमला करते हैं। उदाहरण के लिए, एचपीवी विषाणु गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर का प्रमुख कारण है, जबकि हेपेटाइटिस बी विषाणु यकृत के कैंसर से जुड़ा हुआ है। इनके अलावा, तनाव और नींद की कमी भी डीएनए के लिए हानिकारक मानी जाती है। तनाव के दौरान बनने वाले हार्मोन कोशिकाओं की मरम्मत करने की क्षमता को घटा देते हैं।
इसी तरह, नींद की कमी से शरीर की प्राकृतिक मरम्मत प्रणाली या संरक्षण तंत्र सुचारु रूप से कार्य नहीं कर पाते। धूम्रपान और शराब का सेवन भी ऐसे कारक हैं, जो डीएनए को सीधे क्षति पहुंचा सकते हैं। इससे कैंसर सहित गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
शोध बताते हैं कि डीएनए पर बार-बार होने वाले इन अदृश्य हमलों के गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। इससे होने वाला सबसे प्रमुख रोग कैंसर है, जिसमें त्वचा, यकृत, फेफड़ों या गर्भाशय ग्रीवा सहित सभी तरह का कैंसर शामिल है। डीएनए को होने वाला नुकसान हृदय रोगों की संभावना को भी बढ़ा देता है।
मस्तिष्क रोग, जैसे अल्जाइमर और पार्किंसन भी इसी से जुड़े पाए गए हैं। समय से पहले बुढ़ापे का आना, बालों का झड़ना, शरीर का कमजोर होना और झुर्रियों का आना भी डीएनए के क्षतिग्रस्त होने के संकेत हो सकते हैं। इस वजह से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घट जाती है और बार-बार संक्रमण होने लगता है।
हालांकि डीएनए पर इन अदृश्य हमलों को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन कुछ सरल और सजग उपायों से इसके प्रभाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है। डीएनए की सुरक्षा का सबसे प्रभावी उपाय है- संतुलित आहार और स्वच्छ वातावरण। ताजे फल, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंकुरित अनाज और दालें शरीर को ‘एंटीआक्सीडेंट्स’ प्रदान करते हैं, जो डीएनए की मरम्मत प्रक्रिया को सक्रिय रखते हैं। इसी प्रकार, आंवला, हल्दी, ग्रीन टी, अखरोट, बादाम और बेरी का नियमित सेवन कोशिकाओं की सुरक्षा करने में सहायक है। पर्याप्त मात्रा में पानी पीना भी लाभकारी है, ताकि हानिकारक रसायन आसानी से शरीर से बाहर निकल सकें।
स्वस्थ जीवनशैली में ‘डीएनए की सुरक्षा’ अहम भूमिका निभाती है। रोजाना सात से आठ घंटे की नींद लेना डीएनए की प्राकृतिक मरम्मत प्रणाली को सक्रिय रखता है। योग, ध्यान और हल्का व्यायाम तनाव को नियंत्रित करते हैं तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त बनाते हैं। नियमित शारीरिक गतिविधियां, जैसे टहलना, दौड़ना या साइकिल चलाना, कोशिकाओं को पर्याप्त आक्सीजन पहुंचाती हैं और उन्हें स्वस्थ बनाए रखती हैं।
टीकाकरण कुछ बीमारियों से बचाव का आधुनिक और वैज्ञानिक तरीका बताया गया है। एचपीवी और हेपेटाइटिस-बी के टीके से कैंसर के खतरे को कम करने का दावा किया गया है। इसके अलावा, दोपहर की तेज धूप से यथासंभव दूरी बनाए रखना बेहतर उपाय है। डीएनए की सुरक्षा की दृष्टि से धूम्रपान और शराब से परहेज करना भी महत्त्वपूर्ण उपायों में शामिल है।
दुनिया भर में वैज्ञानिक डीएनए की सुरक्षा और उसकी मरम्मत के लिए निरंतर नए उपायों पर कार्य कर रहे हैं। मगर जब तक ये खोजें आम जीवन का हिस्सा नहीं बनतीं, साधारण लोगों तक उनकी पहुंच नहीं होती, तब तक हमें अपनी जीवनशैली, आदतों और परिवेश में सकारात्मक परिवर्तन लाकर स्वयं अपने डीएनए की सुरक्षा करने के लिए सतर्क रहना होगा। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि हमारे जीवन की पूरी रूपरेखा डीएनए में ही दर्ज है।
यदि यह सुरक्षित और संतुलित है, तो हमारा वर्तमान ही नहीं, बल्कि भविष्य भी सुखद, सुदृढ़ और स्वस्थ रहेगा। इसलिए हमें इन अदृश्य हमलों के प्रति अब व्यापक रूप से जागरूक होने की जरूरत है और अपने डीएनए की सुरक्षा को जीवन की सर्वोच्च प्राथमिकता बनाना होगा, क्योंकि सुरक्षित डीएनए ही एक सुरक्षित जीवन की नींव है, जिसका मजबूत बने रहना बेहद जरूरी है।
