अगर किसी को सफल होना है तो निश्चय करना जरूरी है। सबसे पहले खुद को किसी दायरे में बांधना बंद करने और पूर्वाग्रह से मुक्त रहने की कोशिश करने की जरूरत है। ऐसा कभी नहीं सोचना चाहिए कि जो कभी हमारे किसी मित्र या परिवार के किसी सदस्य ने नहीं किया, वह हम भी नहीं कर सकेंगे। हमें अपनी क्षमताओं और कमियों को पहचानना होगा और खुद को योग्य बनाना होगा। इस संदर्भ में रिचर्ड बाख की पुस्तक ‘जोनाथन लिविंगस्टन सीगल’ में मुख्य पात्र जोनाथन सीगल को समझना चाहिए।

जोनाथन अपनी बिरादरी के दूसरे पक्षियों से अलग था। उसे उड़ना बहुत पसंद था। अपनी मेहनत और अभ्यास से उसने रफ्तार के बारे में इतना सीख लिया था, जितना शायद किसी जीवित सीगल को मालूम न हो। मगर ऊंची उड़ान की कोशिश करने पर वह एक चट्टान से जा टकराया। तब उसे लगा कि शायद उसके पिता सही कहते हैं कि उसकी प्रकृति में ऊंची उड़ान नहीं, क्योंकि उसके पंख बाज जैसे छोटे नहीं। फिर उसे खयाल आया कि बाज जैसे छोटे पंख! यही तो हल है। क्यों न वह अपने पंखों को समेट कर सिर्फ उनके छोरों से उड़े। बस वह जीत चुका था। जोनाथन के लिए उसी दिन से एक नए युग के द्वार खुल गए। उसने सोचा जिंदगी का एक मकसद भी है। भोजन के अलावा भी कुछ ऊंचे उद्देश्य होते हैं। जाहिर है, जोनाथन ने खुद पर विश्वास किया तो अब वह जो चाहता था, कर पाने में सफल हो गया।

दरअसल, खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ी कमी है। डर हमें कुछ नया नहीं करने देता। नया कौशल सीखने, चुनौतियां स्वीकार करने, नया पेशा या व्यवसाय करने में असफल होने का जोखिम होता है, लेकिन जो असफलता के डर से कोशिश नहीं करता, वह न कभी कुछ सीख सकता है, न कुछ बन सकता है। डरने वाले कहीं न अपनी प्रस्तुति दे सकते हैं और न कारोबार के क्षेत्र में पूरी मेहनत से काम कर सकते हैं। जबकि आज के दौर में ये सारी चीजें समृद्ध और सफल होने के लिए बेहद जरूरी हैं। लेखक नार्मन विंसेंट पील ने अपनी पुस्तक ‘करेज एंड कान्फिडेंस एन एंथोलोजी’ में लिखा है, डर लोगों को शारीरिक रूप से कमजोर बना देता है। किसी न किसी रूप में डर लोगों को वह हासिल करने से रोक देता है, जो वे जीवन में वाकई हासिल करना चाहते हैं।

आज के डिजिटल युग में विभिन्न माध्यमों से सूचनाओं और जानकारियों की बौछार ने हमारे मस्तिष्क की एकाग्रता को छीन लिया है। हम कोई भी काम तभी ठीक से कर सकते हैं, जब उसे पूरी तरह ध्यानमग्न होकर करें। चाहे पढ़ाई-लिखाई करनी हो या कार्यस्थल पर अपना हिसाब-किताब लिखना हो, अपने ग्राहक से सौदा करना हो या फिर कोई उत्पाद बनाना हो। ऐसी ही स्थितियों के लिए विद्वान लोग सलाह देते हैं कि सबसे पहले चंचल चित्त को स्थिर करना है तो फालतू चीजों की पहचान करके सबसे पहले उन पर से अपना ध्यान हटाना चाहिए। आज हम बिना ध्यान बंटाए कंप्यूटर पर सिर्फ चालीस सेकंड ही लगातार काम कर पाते हैं। इस समय को बढ़ाकर ही अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकेंगे।

हम कितना ज्यादा काम कर सकते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपनी क्षमताओं के बारे में क्या सोचते हैं। अक्सर जब किसी समस्या के सामने आते ही हम घबरा जाते हैं या हड़बड़ा जाते हैं तो जल्दबाजी में न सही उपाय सोच पाते हैं, न उसका हल निकाल पाते हैं। यहां तक कि हम अपने सच्चे और विश्वसनीय मददगार का नाम भी याद नहीं कर पाते। इस स्थिति में समस्या के एक ही हिस्से पर हमारा नियंत्रण होता है और वह है हमारी प्रतिक्रिया। समस्याएं हमारे भीतर के सर्वश्रेष्ठ गुणों को बाहर निकालती हैं, क्योंकि मुसीबत में ही हम अपनी क्षमताओं के बारे में ठीक से सोच पाते हैं। ‘थिंकिंग फास्ट एंड स्लो’ के लेखक डैनियल कानमैन का इस मसले पर विचार है कि जब आप चिंतित होने की बजाय किसी समस्या को रचनात्मक तरीके से हल करने की कोशिश करेंगे तो ज्यादा प्रभावशाली बनेंगे। नतीजतन, हम खुद को पहले से ज्यादा बड़ी और कहीं ज्यादा समस्याएं हल करने के लायक बना लेंगे।

एक व्यक्ति अपनी अच्छी-बुरी आदतों का योग होता है। हम रातोंरात अच्छे या बुरे व्यक्ति नहीं बन जाते या अचानक प्रतिभाशाली, सफल और समृद्ध नहीं बनते। सभी बड़ी चीजों की शुरुआत छोटी चीजों से होती है। शोहरत, दौलत, सफलता- सब हमारी छोटी-छोटी आदतें तय करती हैं। एक छोटा निर्णय ही आदत का वह बीज होता है जो हमें आगे बढ़ाता है। यह सोचकर देखें कि क्या हम आमदनी से कम खर्च करते हैं? क्या हम नियमित जिम जाते हैं या व्यायाम करते हैं? क्या रोज पुस्तक पढ़ते हैं? क्या रोज कोई नई चीज सीखते हैं? ये ऐसी छोटी-छोटी बातें हैं, जो हमारी सफलता और असफलता के बीच के अंतर को बढ़ा देती हैं।

परिवर्तन को स्वीकारने की जरूरत है, क्योंकि यह प्रकृति का शाश्वत नियम है। मगर अधिकांश लोग परिवर्तन से डरते हैं। वे चाहते हैं कि उनका निश्चित दैनंदिनी बनी रहे और जीवन स्थिर तथा आरामदायक बना रहे। यह असंभव है। दुनिया में तकनीक, चलन, जरूरतें और व्यवस्थाएं पल-पल बदलती हैं। इनके साथ कदमताल करना होगा, तभी हम उपयोगी और प्रासंगिक रहेंगे। समझदार लोग परिवर्तन को अवसर के रूप में देखते हैं और इसका लाभ उठाते हैं। आज के युग में विशेषज्ञता की ही पूछ-परख है। प्रतिद्वंद्विता के इस दौर में सामान्य व्यक्ति व्यवसाय, करियर या पढ़ाई के क्षेत्र में भीड़ में खोकर रह जाता है।