हीरो बाजपई, वरिष्ठ प्रवक्ता यूपी बीजेपी
पहले दो मामलों की कथा सुनिए।
पहला मामला साल 1986 था और मामला महाराष्ट्र का था। जेजे अस्पताल के न्यूरोसर्जरी और आंखों के वार्ड 14 मरीज भर्ती थे। सारे मरीज एक-एक कर दो हफ्तों के भीतर किडनी खराब होने की वजह से दर्दनाक मौत मर गए। लोगों को समझ ही नहीं आया कि आंखों के वार्ड में किडनी फेलियर की वजह से मौतें क्यों हो रही हैं?
मौतों की वजह क्या थी? मौतों की वजह थी कि मरीजों को गलत दवा दे दी गई। आंखों के वार्ड में जिस ग्लिसरॉल सिरप का इस्तेमाल हुआ था, वह इंसानी इस्तेमाल के लिए था ही नहीं। उसमें 90% डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल नाम का जहरीला पदार्थ मिला हुआ था। यह औद्योगिक ग्रेड का ग्लिसरॉल था, जिसे दवा बनाने वाली एक कंपनी के नाम पर सप्लाई किया गया था।
ये मौतें दवा नियंत्रण विभाग की नाकामी, अस्पताल की नाकामी और एक छोटी सी रीपैकेजिंग यूनिट के भ्रष्टाचार की वजह से हुईं। यह मामला तब खूब सुर्खियों में रहा। लेकिन बाद में ठंडा पड़ गया। सरकार कांग्रेस की थी।
अब दूसरा मामला सुनिए जो बिल्कुल ताजा है। मध्य प्रदेश में कफ सिरप पीने से करीब 20 बच्चों की मौत हुई। इसमें सबसे ज्यादा बच्चे मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के हैं। जिस सिरप को पीने से बच्चों की मौत हुई वह तमिलनाडु में बनी थी। कोई शोर शराबा नहीं हुआ। तमिलनाडु में एमके स्टालिन की सरकार है, जिसे कांग्रेस का समर्थन मिला है।
एमके स्टालिन, अखिलेश यादव के बहुत गहरे मित्र हैं।
तमिलनाडु में बनी सिरप पर कोई हो हल्ला नहीं मिलेगा। न अखिलेश यादव ने कोई ट्वीट किया। न राहुल गांधी ने सवाल किए। खानापूर्ति के नाम पर सिरप कंपनी के मालिक जी. रंगनाथन को गिरफ्तार किया गया। जी. रंगनाथन जो एक साधारण फार्मासिस्ट था, वह बड़ा दवा कारोबारी बन गया! कैसे बना, उसके ऊपर किन लोगों के हाथ थे, यह रहस्य का विषय है। खैर!
तमिलनाडु में बनी सिरप के मामले में और भी चीजें थीं लेकिन कुछ हुआ नहीं।
दोनों मामलों को बताने का मकसद सिर्फ ये था कि राजनीति के नाम पर हमारे देश में किस तरह मुद्दों से ध्यान भटकाने की परंपरा रही है। जेजे अस्पताल की कहानी भ्रष्टाचार, राजनीतिक अक्षमता, प्रशासनिक लापरवाही और दवा कारोबारियों के साथ नेताओं की मिलीभगत का एक नमूना भर है।
असंख्य कहानियाँ मिल जाएंगी जिसका सबसे ताजा उदाहरण तमिलनाडु में बनी कफ सिरप का मामला है।
लेकिन दिलचस्प यह है कि तमिलनाडु में जहां की बनी कफ सिरप से बच्चों की मौत हुई- उसे सवाल बनाने की बजाए उत्तर प्रदेश में कफ सिरप का मामला गढ़ा गया। ऐसे गढ़ा गया जैसे उत्तर प्रदेश में जहरीला सिरप बेचा जा रहा था। जैसे उत्तर प्रदेश में बच्चों की मौतें हुई।
जबकि उत्तर प्रदेश की कहानी बिल्कुल अलग है। यहां मध्यप्रदेश का मामला सामने आने से पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार कार्रवाई करते नजर आती है। और मामला भी उस सिरप का नहीं है जिसकी वजह से मध्य प्रदेश में मासूम बच्चों की मौत हुई।
उत्तर प्रदेश में दवाओं का अवैध भंडारण करने वालों, अवैध डायवर्जन करने वालों, नाजायज तरीके से खरीद-फरोख्त करने वालों के खिलाफ अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई की जा रही है। यूपी सरकार की जीरो टॉलरेन्स नीति के तहत अब तक करीब 136 फर्मों से ज्यादा पर FIR दर्ज की जा चुकी है। करीब 39 से ज्यादा गिरफ्तारियां की जा चुकी हैं। कई पर ईनाम घोषित किए गए हैं।
आरोपी अदालतों से जमानत लेकर बाहर ना निकल पाए, इसके लिए प्रभावी तरीके से पैरवी भी हो रही है। अभी हाल ही में यूपी सरकार की प्रभावी पैरवी की वजह से दो आरोपियों की जमानत कोर्ट में खारिज हो गई।
सोशल मीडिया की अलग-अलग चर्चाओं में आरोपियों का लिंक समाजवादी पार्टी से जोड़ा जा रहा है और सबूत के तौर पर एक आरोपी आलोक सिंह के साथ अखिलेश यादव की तस्वीरें भी साझा की जा रही हैं। पप्पन यादव और शुभम जायसवाल का अतीत भी समाजवादी पार्टी से जोड़ा जा रहा। सोशल मीडिया पर कही जा रही चीजों पर भरोसा तो नहीं किया जा सकता- मगर कुछ ऐसे दावे भी देखने को मिल रहे हैं, जिसमें कहा जा रहा कि कफ सिरप मामले को समाजवादी पार्टी ने दूसरा रूप इसलिए दे दिया क्योंकि पूरे मामले में उसका अपना दामन दागदार है।
यूपी में जिन कंपनियों के सिरप पर सवाल है, उनकी निर्माण कंपनियां हिमाचल प्रदेश में है। जहां कांग्रेस की सरकार है। यूपी सरकार ने जांच का खुलासा करते हुए पहले ही बताया है कि हिमाचल तक उन्होंने विवेचना की है। क्या हिमाचल और कांग्रेस का कोई कनेक्शन है? गाजियाबाद की कार्रवाई के बाद यह सवाल और बड़ा हो गया है।
खैर जो भी हो। लेकिन तमिलनाडु में बनी सिरप से बच्चों की मौत के मामले में सपा की चुप्पी और यूपी के मामले में अतिसक्रियता संदेहास्पद है। सवाल तो होंगे। और पहला सवाल यही होगा कि अखिलेश यादव क्या किसी को बचाने की कोशिश कर रहे हैं। और बचा रहे हैं तो किसे बचा रहे हैं कैसे बचा रहे हैं?
चूंकि अगले वर्ष तमिलनाडु में विधानसभा के चुनाव हैं तो यह सवाल होगा कि क्या तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव में कफ सिरप मामले में स्टालिन सरकार का अमानवीय भ्रष्टाचार मुद्दा न बन पाए इसके लिए अखिलेश ने पूरे मामले का राजनीतिक इस्तेमाल किया। ऐसा हो सकता है। क्योंकि अखिलेश ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
दूसरा यह भी हो सकता है कि अखिलेश ने इसे जानबूझकर बड़ा मुद्दा बनाया और एक ऐसा मुद्दा बनाया जो था ही नहीं। मुद्दा इसलिए बनाया क्योंकि दिसंबर में विधानसभा का सत्र है। समाजवादी पार्टी के पास सत्र के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था। जिस तरीके समाजवादी पार्टी सक्रिय है- ऐसा लगता है। समाजवादी पार्टी के लिए आम के आम गुठलियों के दाम वाला मामला है।
समाजवादी पार्टी ने एमके स्टालिन को बचाकर दोस्ती भी निभा ली और एक मुद्दा भी बना लिया। भले ही वह मुद्दा स्कूल पेयरिंग विवाद की तरह कुछ हफ्तों में बेकाम हो जाए। पिछले विधानसभा सत्र में अखिलेश यादव ने ऐसे ही स्कूल पेयरिंग का मुद्दा बनाया था। जबरदस्ती का मुद्दा बनाने के लिए पीडीए पाठशाला भी शुरू कर दी थी। चूंकि जमीन पर वैसा कुछ था ही नहीं-तो अब अखिलेश यादव की पीडीए पाठशाला नजर नहीं आती।
इससे एक ही चीज साबित होती है। वह यह कि स्कूल पेयरिंग को लेकर अखिलेश ने जो सवाल उठाए थे, वह था ही नहीं। और ते मानिए- विधानसभा शीत सत्र के बाद कफ सिरप के बहाने, अखिलेश यादव ने जो सवाल उठाएं हैं- वह कहीं दिखेंगे ही नहीं। शीत सत्र के बाद लोगों को पता चलेगा कि असल में पूरे मामले में हुआ क्या और कैसे देश में अबतक के सबसे बड़े क्रैकडाउन की बात समाजवादी पार्टी की तरफ से खड़े किए गए राजनीतिक विवाद की वजह से छिप गई।
(उपरोक्त विचार लेखक के निजी हैं। इनका हमारे संस्थान के दृष्टिकोण या मत से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है।)
