भारत की घरेलू खपत विकास दर को आगे बढ़ाते हुए देश की आर्थिक ताकत बन गई है। हाल ही में सरकार की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष 2025-26 में जुलाई-सितंबर की तिमाही में 8.2 फीसद बढ़ी है। पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में यह 5.6 फीसद थी। खास बात यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने विकास दर के मामले में दुनिया की सभी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को पीछे छोड़ दिया है। यह संभावना दिखाई दे रही है कि इस वित्तीय वर्ष में जीडीपी की वृद्धि दर अनुमान से अधिक 7.5 फीसद के स्तर पर दिखाई देगी। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत की 8.2 फीसद की विकास दर वृद्धि समर्थक नीतियों और सुधारों के प्रभाव को बताती है, वहीं वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि कारोबारी सुगमता और उत्पादकता बढ़ाने जैसे कदमों से जीडीपी बढ़ी है।

इन दिनों भारत की अर्थव्यवस्था पर प्रकाशित हो रही विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय संगठनों की रपटों में कहा जा रहा है कि भारत में महंगाई घटने और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दर में कटौती से उपभोग और घरेलू खपत में जोरदार इजाफा होने से विकास दर बढ़ी है। जहां भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिकी शुल्क का प्रतिकूल असर झेल गई, वहीं निर्यात, पूंजीगत निवेश और निवेश रुझान पर प्रतिकूल असर की चुनौतियों के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ी है। साथ ही यह वैश्विक अनिश्चितताओं से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने की स्थिति में है।

दिवाली पर बाजार में बिक्री रहा रेकार्ड ऊंचाई पर

गौरतलब है कि इस बार दिवाली पर बाजार में बिक्री रेकार्ड ऊंचाई पर रही है। ई-वाणिज्य ने दमदार उछाल दर्ज की है। महंगाई के साथ-साथ वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में कमी के कारण जीएसटी बचत उत्सव का परिदृश्य दिखाई दिया है। जब दुनिया के अधिकांश देशों में महंगाई तेजी से बढ़ रही है, वहीं भारत में महंगाई में कमी के आंकड़े सामने आए। हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ओर से जारी रपट में कहा गया है कि जहां अक्तूबर 2025 में खुदरा महंगाई घट कर पिछले दस वर्ष के न्यूनतम स्तर 0.25 फीसद पर आ गई, वहीं थोक महंगाई 27 महीने के निचले स्तर शून्य से 1.21 फीसद नीचे रही है। महंगाई में यह कमी प्रमुख रूप से सब्जियां, फल, अंडे, अनाज एवं उससे बने उत्पाद, बिजली, परिवहन और संचार आदि मदों की महंगाई में गिरावट के कारण आई है।

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महंगाई कम होने के पीछे इस वर्ष 22 सितंबर से लागू वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) सुधार की भी अहम भूमिका है। जीएसटी दरों में की गई कमी से खाने-पीने की सभी वस्तुएं सस्ती हुई हैं। क्रिसिल की एक रपट के अनुसार अक्तूबर 2025 में शाकाहारी थाली सालाना आधार पर 17 फीसद सस्ती होकर 27.8 रुपए और मांसाहारी थाली 12 फीसद सस्ती होकर 54.4 रुपए के मूल्य स्तर पर पाई गई। यह बात भी अहम है कि इस समय विभिन्न शोध रपटों में यह भी कहा जा रहा है कि खाद्यान्न के रेकार्ड उत्पादन और अच्छे मानसून के बाद कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों को मिली अनुकूलता से आगामी महीनों में भी महंगाई में और कमी आने की उम्मीद है। अनुमान है कि इस वित्त वर्ष 2025-26 में औसतन खुदरा महंगाई दर 2.5 फीसद रह सकती है, जो पिछले वर्ष के 4.6 फीसद के मुकाबले काफी कम होगी। हालांकि जमीनी स्तर पर महंगाई में कमी को लेकर हकीकत अलग देखने में आती है, लेकिन औपचारिक रूप से सार्वजनिक किए गए आंकड़े ही आकलन का आधार बनते हैं।

मांग और उत्पादन बढ़ने से रोजगार के अवसरों में भी हो रही वृद्धि

यह बात अहम है कि महंगाई दर घटने के साथ-साथ जीएसटी सुधारों के लागू होने से इस बार दिवाली पर बाजार में अच्छी खरीदारी दिखाई दी। जीएसटी में सरलता और कर ढांचों में बदलाव ने बाजार को नई उर्जा दी। जीएसटी दरों के साथ-साथ आयकर में कटौती से लोगों को लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई है। फेडरेशन आफ इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के मुताबिक जहां वर्ष 2023 में त्योहारी बाजार में 3.75 लाख करोड़ रुपए और वर्ष 2024 में 4.25 लाख करोड़ रुपए की खरीदारी हुई थी, वहीं इस बार त्योहारी सीजन के तहत खरीदारी पांच लाख करोड़ रुपए के अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गई। इस बार दिवाली पर देश में लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने और अमेरिका में डालर का मूल्य घटने से इस साल त्योहारी सीजन में चांदी और सोने के भाव भी सर्वकालिक उच्च स्तर पर रहे। वहीं इस समय औद्योगिक उत्पादन बढ़ रहा है और विनिर्माण क्षेत्र से लेकर सेवा क्षेत्र तक मांग का बढ़ता हुआ नया अध्याय दिखाई दे रहा है। मांग और उत्पादन बढ़ने से रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि हो रही है।

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भारत की अर्थव्यवस्था की मजबूती के पीछे जीएसटी सुधार के साथ-साथ कुछ और आर्थिक अनुकूलताएं हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर पचास फीसद शुल्क लगाए जाने के बाद भारत ने रूस और चीन के साथ आर्थिक-वैश्विक कूटनीति और नए निर्यात बाजारों में आगे बढ़ने की जो रणनीति अपनाई, वह कारगर दिखाई दे रही है। इस नीति से अमेरिकी शुल्क के बीच पिछले अगस्त से अक्तूबर में अमेरिका को छोड़ कर अन्य देशों में भारत के निर्यात बढ़े हैं। इसी के साथ विभिन्न देशों के साथ तेजी से आकार लेते हुए दिखाई दे रहे मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) भारतीय निर्यात के लिए मील का पत्थर बनते हुए दिखाई दे रहे है। इतना ही नहीं नए श्रम कानून भी देश के आर्थिक विकास में नई प्रभावी भूमिका निभाएंगे।

उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक विकास दर की संभावनाएं

हाल ही में ‘एसएंडपी ग्लोबल रेटिंग्स’ ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की अर्थव्यवस्था के 6.5 फीसद और अगले वित्त वर्ष 2026-27 में 6.7 फीसद की दर से बढ़ने का अनुमान व्यक्त किया है। ‘एसएंडपी’ ने कहा है कि जीएसटी की कम दरें मध्य वर्ग के उपभोग को बढ़ावा देंगी और इस वर्ष शुरू की गई आयकर कटौती एवं ब्याज दरों में कटौती का पूरक बनेंगी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी नई रपट में कहा है कि हालांकि चालू वित्त वर्ष 2025-26 में वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं और व्यापार तनाव के बीच वैश्विक वृद्धि दर धीमी है। इसके बावजूद भारत मजबूत घरेलू खपत के दम पर 6.6 फीसद विकास दर हासिल करते हुए दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक विकास दर की संभावनाएं रखता है।

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जीएसटी के बाद अब ऊंची आर्थिक विकास दर के मद्देनजर अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए आगे बढ़ने की जरूरत है। इन सुधारों में जीवन में आसानी, कारोबार सुगमता, बुनियादी ढांचा सुधार, प्रशासन को सशक्त बनाने और अर्थव्यवस्था को मजबूती देने संबंधी सुधार शामिल हैं। साथ ही देश को कृषि, बैंकिंग, बीमा, परिवहन और दूरसंचार, बिजली, परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष और रक्षा, पेट्रोलियम, कोयला और अन्य खनिज आदि में सुधारों की डगर पर आगे बढ़ना होगा। ऐसे में बढ़ती हुई घरेलू खपत और नई पीढ़ी के सुधार देश को वर्ष 2027 तक दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनाने और 2047 तक दुनिया का विकसित देश बनाने की डगर पर आगे बढ़ाते हुए दिखाई देंगे।