कृत्रिम मेधा यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का तेजी से विकास इसके नैतिक निहितार्थों और पर्यावरणीय प्रभाव को लेकर चिंताएं बढ़ाने लगा है। इसके बढ़ते उपयोग ने अधिक डेटा और कंप्यूटिंग शक्ति की मांग को बढ़ा दिया है, जिससे हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ा है। अधिकांश एआइ सर्वर डेटा केंद्रों में संग्रहीत होते हैं, जो इलेक्ट्रानिक अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। डेटा केंद्र बड़ी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं, जिससे ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है। उन्हें निर्माण और विद्युत घटकों को ठंडा करने के लिए बड़ी मात्रा में पानी की आवश्यकता भी होती है। वैश्विक एआइ मांग में वर्ष 2027 तक 4.2-6.6 बिलियन क्यूबिक मीटर पानी की खपत होने की संभावना है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था को आभासी रूप में देखा जाता है, लेकिन यह भौतिक संसाधनों और कच्चे माल पर अत्यधिक निर्भर है। डिजिटल उपकरण और बुनियादी ढांचा प्लास्टिक, कांच, सिरेमिक और विभिन्न खनिजों एवं धातुओं से बने होते हैं। दो किलोग्राम के कंप्यूटर को बनाने में भी लगभग 800 किलोग्राम कच्चे माल की आवश्यकता होती है। कृत्रिम मेधा पर आधारित आभासी सहयोग मंच पारंपरिक खोज इंजनों की तुलना में अधिक ऊर्जा का उपयोग करते हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी के अनुसार, इस तरह के सहयोग मंच पर एक अनुरोध के लिए गूगल खोज की तुलना में दस गुना अधिक बिजली की जरूरत होती है।

कृत्रिम मेधा का और उपयोग बढ़ेगा

वर्ष 2021 में मशीन लर्निंग और कृत्रिम मेधा की वैश्विक बिजली मांग में 0.2 फीसद से भी कम और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 0.1 फीसद से भी कम हिस्सेदारी थी। हाल के वर्षों में मेटा ने मशीन लर्निंग प्रशिक्षण और अनुमान के लिए कंप्यूटिंग मांग में सौ फीसद से अधिक की वार्षिक वृद्धि देखी है। जैसे-जैसे कृत्रिम मेधा का उपयोग बढ़ेगा, ऊर्जा की मांग भी बढ़ेगी, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कम कार्बन ऊर्जा स्रोतों का उपयोग आवश्यक हो जाएगा। डेटा केंद्र विभिन्न अनुप्रयोगों, जैसे वेबसाइट, क्लाउड या एआइ सेवाओं के लिए डेटा के भंडारण, प्रसंस्करण और वितरण पर निर्भर हैं। एआइ तकनीक वाले डेटा केंद्र अपनी जटिल प्रणाली के संचालन के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की खपत करते हैं, जिसका अधिकांश हिस्सा अभी भी जीवाश्म ईंधन से आता है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है। डेटा संग्रहण के लिए आवश्यक ऊर्जा वर्ष 2026 तक दोगुनी होने की उम्मीद है।

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हम डिजिटल युग में रहते हैं, जहां हमारे जीवन को निर्देशित करने वाली कई प्रक्रियाएं कंप्यूटर कोड के अंदर छिपी हुई हैं। इस कारण हमें आगे बढ़ते हुए अधिक पारदर्शिता और पर्यावरण-अनुकूल कृत्रिम मेधा की मांग करनी चाहिए। लोगों को नई तकनीकों के प्रति जागरूक उपभोक्ता बनने की जरूरत है। यह समझना जरूरी है कि आभासी कार्यों में हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले, सहेजे जाने वाले या उत्पन्न किए जाने वाले डेटा की वास्तविक दुनिया में एक लागत होती है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी के अनुसार, एक गूगल सर्च में 0.3 वाट प्रति घंटे बिजली खर्च होती है, जबकि आभासी सहयोग मंच पर एक अनुरोध में 2.9 वाट प्रति घंटे बिजली खर्च होती है। अगर सहयोग मंच को प्रतिदिन की जाने वाली नौ अरब खोजों में एकीकृत कर दिया जाए, तो बिजली की मांग सालाना दस टेरावाट प्रति घंटे तक पहुंच जाएगी, जो यूरोपीय संघ (ईयू) के लगभग पंद्रह लाख निवासियों द्वारा खपत की जाने वाली ऊर्जा के बराबर है।

डेटा केंद्रों को ठंडा करने के लिए कई तरह की अपनाई जाती हैं तकनीकें

जब हम किसी उपकरण को बिजली के साथ जोड़ते हैं तो पता रहता है कि वह किस ऊर्जा ग्रिड का उपयोग कर रहा है और लगभग कितनी ऊर्जा का इस्तेमाल हो रहा है। लेकिन जब हम गूगल या किसी आभासी सहयोग मंच पर कुछ तलाश कर रहे होते हैं, तो वास्तव में पता नहीं होता कि प्रक्रिया कहां चल रही है। भौतिक रूप से हमारे पास बहुत सारा डेटा है, हम उसे संग्रहीत कर रहे हैं। एआइ माडल को प्रशिक्षित करने में भी ऊर्जा की खपत होती है। असल में हम जिस भी डेटा पर अपने माडल को प्रशिक्षित करना चाहते हैं, उसे हजारों बार अपने माडल पर चला रहे हैं। जब किसी एआइ माडल को तैनात किया जाता है, तो उसे हमेशा चालू रखना होता है। ऐसे में डेटा केंद्र के सर्वर भी गर्म हो जाते हैं। इन डेटा केंद्रों को ठंडा करने के लिए कई तरह की तकनीकें अपनाई जाती हैं। कभी-कभी वातानुकूलन तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन ज्यादातर अनिवार्य रूप से पानी का संचरण किया जाता है। जैसे-जैसे डेटा केंद्र ज्यादा सघन होते जाते हैं, इन्हें ज्यादा ठंडक की जरूरत होती है, इसलिए इनमें ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है।

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खासकर बड़े डेटा केंद्र, जहां से कृत्रिम मेधा संचालित होती है, उनके पास ऊर्जा के विश्वसनीय स्रोत होने चाहिए। इसलिए, अक्सर ये ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं, जहां गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत उपलब्ध हों, जैसे प्राकृतिक गैस या कोयले से उत्पन्न ऊर्जा, ताकि एआइ उपकरणों को निर्बाध रूप से ऊर्जा उपलब्ध होती रहे। सौर या पवन ऊर्जा के साथ ऐसा करना मुश्किल होता है, क्योंकि अक्सर मौसम संबंधी कारक ऊर्जा उत्पादन में बाधा डालते हैं। यानी बड़े डेटा केंद्र ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं, जहां ग्रिड अपेक्षाकृत कार्बन-गहन होता है।

ऊर्जा बचत की हो सकती है भरपाई

एक रपट के मुताबिक, वर्ष 2023 में डेटा केंद्रों ने अमेरिका की कुल बिजली का 4.4 फीसद इस्तेमाल किया। यह आंकड़ा कृत्रिम मेधा की बढ़ती मांग के हिसाब से वर्ष 2028 तक तीन गुना हो सकता है। कृत्रिम मेधा का तेजी से विस्तार पानी के उपयोग, उत्सर्जन और ई-कचरे को बढ़ा रहा है। वर्ष 2030-2035 तक डेटा केंद्र वैश्विक बिजली उपयोग का बीस फीसद हिस्सा इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे पावर ग्रिड पर भारी दबाव पड़ेगा। शुरूआत में कंप्यूटिंग में ऊर्जा संबंधी चिंताएं उपभोक्ता-केंद्रित थीं, मगर आज पर्यावरणीय स्थिरता, कार्बन उत्सर्जन में कमी और एआइ माडल को अधिक ऊर्जा कुशल बनाने पर ध्यान केंद्रित हो रहा है। एआइ माडल प्रशिक्षण में बार-बार गणनाओं के माध्यम से मापदंडों का समायोजन शामिल है, जिसके लिए अत्यधिक प्रसंस्करण शक्ति की आवश्यकता होती है। प्रत्येक प्रशिक्षण सत्र में हफ्तों या महीनों का समय लग सकता है, जिससे भारी मात्रा में बिजली की खपत होती है।

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इसके अलावा, एआइ माडल को प्रासंगिक बने रहने के लिए अक्सर बार-बार प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, जिससे ऊर्जा की खपत और बढ़ जाती है। बुनियादी ढांचे की विफलताएं, साफ्टवेयर की अकुशलता और एआइ माडल की बढ़ती जटिलताएं इस तनाव को और बढ़ा देती हैं, जिससे एआइ प्रशिक्षण आधुनिक युग में सबसे अधिक संसाधन-गहन कंप्यूटिंग कार्यों में से एक बन गया है। वर्ष 2014 से 2023 तक सर्वर ऊर्जा उपयोग तीन गुना से भी अधिक हो गया है। मगर राहत की बात यह है कि कंप्यूटर ज्यादा कुशल होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे कंप्यूटर प्रोसेसर अधिक कुशल होते जाते हैं, उन्हें चलाने में कम लागत आती है, जिससे कुछ ऊर्जा बचत की भरपाई हो सकती है। इस स्थिति में हमें ऐसे विकल्प विकसित करने होंगे, जिससे ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने में कार्बन उत्सर्जन कम हो तथा एआइ उपकरणों और डेटा केंद्रों के निर्माण से ई-कचरे की समस्या भी उत्पन्न न हो।