केंद्र सरकार ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा दे रही है। सरकार का लक्ष्य है, हर वर्ष 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन के जरिए ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल करना। गौरतलब है हरित हाइड्रोजन उद्योग जिस तरह बड़े पैमाने पर स्थापित हो रहे हैं, ऐसे में उच्च क्षमता वाला बिजली उत्पादन और विभिन्न क्षेत्रों में ऊर्जा की आपूर्ति हासिल करना मुश्किल नहीं होगा।

वर्तमान में वैश्विक हाइड्रोजन आपूर्ति के लिए जो विधि उपयोग में लाई जा रही है, वह सुगम और सस्ती है। मगर वहीं पर हाइड्रोजन ऊर्जा की आपूर्ति के आंकड़े वर्तमान में सीमित हैं, क्योंकि दुनिया में करीबन 96 फीसद हाइड्रोजन हाईड्रोकार्बन से पैदा होती है। इसमें महज तकरीबन चार फीसद बिजली के इलेक्ट्रोलिसिस (विद्युत अपघटन) द्वारा तैयार की जाती है। भारत सरकार चाहती है कि जब तक हर गांव और बाजार-मुहल्ले की ऊर्जा जरूरतें इसके जरिए न पूरी होने लगें, तब तक इसके लिए लगातार कोशिश करते रहना चाहिए। इससे जागरूकता आएगी और लोग हाइड्रोजन ईधन की महत्ता को भी समझने लगेंगे।

हाइड्रोजन आने वाले वक्त का ऊर्जा आपूर्ति का आधार बनेगा। हरित हाइड्रोजन में कार्बन उत्सर्जन कम करने और ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की अपार क्षमता है। यह परिवहन और उद्योग में पारंपरिक जीवाश्म ईंधन की जगह ले सकता है, जो ऊर्जा का एक निरंतर और विश्वसनीय स्रोत होगा। कह सकते हैं कि जीवाश्म ईधन में कमी लाने वाला ऊर्जा विकल्प का सबसे बेहतर स्रोत हरित हाइड्रोजन बनने जा रहा है। आने वाले समय में शायद हर क्षेत्र में इसका इस्तेमाल होगा। जिंदगी को अधिक सुगम बनाने के लिए इसका उपयोग समाज के प्रत्येक वर्ग की जिंदगी को प्रभावित करेगा।

हरित ऊर्जा उत्पादन के नए आयाम, भारत के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित करने का बन सकता है बड़ा स्रोत

उत्तर प्रदेश जैसे कुछ बड़े राज्य स्वच्छ किफायती और टिकाऊ ऊर्जा के लिए बड़े सोलर पार्क, हरित हाइड्रोजन, विकेंद्रीकृत ऊर्जा, और माइक्रो ग्रिड के जरिए ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने पर खास जोर दे रहे हैं। राज्य सरकार ने 2047 तक इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए विशेषज्ञों के साथ मिल कर आगे की कार्ययोजना तैयार की है। इसी तरह की योजना देश के सभी राज्यों को तैयार करनी होगी, क्योंकि कार्बन-मुक्त ऊर्जा पैदा करने के लिए जैव ऊर्जा सबसे किफायती है। इससे बेहतर दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हरित हाइड्रोजन में कई संभावनाएं छिपी हैं।

दरअसल, ऊर्जा क्षेत्र में कमी को पूरा करने के लिए सरकार हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा दे रही है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार वैश्विक क्षमताओं के बीच भारत को अपने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन के मिशन के माध्यम से 2030 तक 50 लाख टन (एमएमटी) वार्षिक हरित हरित हाइड्रोजन क्षमता हासिल करने के लिए मेहनत करनी होगी। इसके लिए केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2023-24 से 2030 तक राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन लागू करने के लिए 19.744 करोड़ का परिव्यय मंजूर कर चुकी है। इससे देशभर में हाइड्रोजन ईंधन को बढ़ावा दिया जाएगा। यह पारंपरिक जीवाश्म ईधन की जगह ले सकता है, जो ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।

हरित हाइड्रोजन पर तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बताया गया कि भारत निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लेगा। यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि 2023 में शुरू किए गए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के तहत भारत ने 2030 तक हरित हाइड्रोजन की वार्षिक उत्पादन क्षमता जोड़ने की वार्षिक उत्पादन क्षमता 50 लाख टन रखी है। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि ऊर्जा की कमी जिन क्षेत्रों में दिखाई दे रही है, उन सभी क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल करके इस कमी को पूरा किया जा सकता है।

स्वच्छ वैकल्पिक ईंधन के रूप में पृथ्वी पर हाइड्रोजन सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्‍ध

भारत ने वर्ष 2047 तक ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लक्ष्य की घोषणा की है। इन लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में हरित हाइड्रोजन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। इसका उत्पादन कई नजरिए से खास है। पर्यावरणीय मानकों पर यह सबसे खरा उतरता है, क्योंकि हरित हाइड्रोजन का उत्पादन, इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा किया जाता है। इस प्रक्रिया में सौर, पवन या जलविद्युत जैसे अक्षय स्रोतों से उत्पन्न बिजली का इस्तेमाल कर पानी को आक्सीजन और हाइड्रोजन में विभाजित किया जाता है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप स्वच्छ और उत्सर्जन-मुक्त ईंधन प्राप्त होता है। इसमें जीवाश्म ईंधन को प्रतिस्थापित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की अपार क्षमता है।

दुनियाभर में परिवहन, पत्तन और स्टील सहित कई क्षेत्रों को कार्बन-मुक्त करने के लिए हाइड्रोजन की मांग तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में हाइड्रोजन का अकूत भंडार है. जिससे दो सौ वर्ष से ज्यादा समय के लिए जरूरी ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हाइड्रोजन का इस्तेमाल नए आविष्कारों के जरिए घरेलू उपयोग के लिए जल्द ही सुलभ हो सकता है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़ने की वार्षिक आवश्यकता के बारे में बताया गया है कि भारत बिजली खरीद या बिक्री समझौतों पर हस्ताक्षर के लिए पहले से ही लंबित 40 गीगावाट क्षमता पर ध्यान केंद्रित करेगा। यह भी बताया गया है कि वर्तमान में कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में 160 गीगावाट की नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं प्रक्रियाधीन हैं। भारत को वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल करने के लिए हर साल कम से कम 50 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता जोड़नी होगी।

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों की शुरुआती परियोजनाओं के लिए नए प्रस्ताव आमंत्रित किए जा चुके हैं। इसमें सौ करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए जैविक पदार्थ का उपयोग शामिल है। हरित हाइड्रोजन के उत्पादन के लिए जैविक पदार्थों के उपयोग सहित अत्याधुनिक तकनीक को जोड़ा जाएगा। इन परियोजनाओं के लिए कुल सौ करोड़ रुपए का आबंटन किया गया है जो एनजीएचएम के तहत नवउद्यम योजनाओं के लिए पहले से आबंटित सौ करोड़ रुपए के अतिरिक्त है। गौरतलब है एनजीएचएम का उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन के उत्पादन, उपयोग एवं निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना है। इसका परिव्यय 19,744 करोड़ रुपए है। साथ ही इसका लक्ष्य 125 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता, आठ लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश और छह लाख से अधिक हरित रोजगार उत्पन्न करना भी है। रोजगारपरक होने की वजह से इस क्षेत्र में रोजगार की बेहतर संभावनाएं हैं। इसलिए सरकार इस क्षेत्र को प्राथमिकता दे रही है।

ऊर्जा जरूरतों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार हाइड्रोजन सहित सौर ऊर्जा, जल विद्युत ऊर्जा या पवन ऊर्जा को बढ़ावा देने में जुटी है, इनसे आने वाले वक्त में कई क्षेत्र में ऊर्जा की कमी से कार्यों में आने वाली रुकावटों से निजात मिलेगी। इससे सबसे बड़ा फायदा पर्यावरणीय समस्याओं से निजात पाने में दिखाई देगा। देश के बड़े शहरों, नगरों और कस्बों में कार्बन और धूल प्रदूषण से बीमारियों सहित होने वाली तमाम परेशानियों से लोग बचेंगे। इससे अरबों रुपए बचेंगे। साथ ही साथ हड्डी, मस्तिष्क, रक्त, आंत, आंख और सांस आदि से ताल्लुक रखने वाली बीमारियों में कमी आएगी और औसत उम्र में वृद्धि भी होगी।