समय की धारा में बहती यह जिंदगी न जाने कितने ही अजनबी मोड़ से होकर गुजरती है। कभी ये मोड़ हमें किसी शांत तट तक ले आते हैं, जहां मन ठहर जाने को आतुर हो उठता है। लगता है कि यही वह स्थान है, जहां इस यात्रा को रुक जाना चाहिए। मगर जीवन की यह धारा किसी एक ठहराव को स्थायी नहीं बनने देती, वह आगे बहती रहती है। नए किनारे दिखाती है, नए अनुभवों का उपहार देती है, जो कभी सुखद होते हैं, तो कभी असहनीय।इस जीवन धारा में कई ऐसे मोड़ आते हैं, जो हमें उस समय समझ नहीं आते।
कुछ अप्रसांगिक, कुछ रहस्यमय और कुछ ऐसे, जिनका अर्थ हमारे वर्तमान बोध से बहुत परे होता है। ये वे क्षण होते हैं, जब हमें किसी गहरे पूर्वानुभव का एहसास होता है। किसी अनजाने व्यक्ति की मुस्कान, किसी पुराने गीत की धुन, किसी जगह की गंध या किसी दृश्य का अचानक भीतर तक उतर जाना। ऐसा लगता है मानो आत्मा ने यह सब पहले जिया हो। कहीं, किसी और समय में। ऐसे पूर्वानुभव हमें अक्सर उलझन में डाल देते हैं, लेकिन समय के साथ उनकी परतें धीरे-धीरे खुलने लगती हैं। तब समझ आता है कि ये घटनाएं संयोग नहीं थीं, ये हमारी आत्मा की यात्रा के संकेत थे। अदृश्य धागे, जो हमें किसी नए द्वार तक ले जाने के लिए आए थे। यह अनुभव हमारी चेतना का विस्तार करते हैं।
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कभी अचानक ऐसे मोड़ भी सामने आ खड़े होते हैं, जिनसे निकलने के लिए मन व्याकुल हो उठता है। यह व्याकुलता, संघर्ष और इनसे उपजे अनुभव मिलकर हमारे भीतर एक गठरी बना देते हैं- अनुभवों की गठरी। यही गठरी हमें संभालती भी है और हमें परिपक्व भी बनाती है। शुरू में जो उतार-चढ़ाव हमें तोड़ने लगते हैं, वही अनुभव धीरे-धीरे हमें इस धारा के प्रवाह को स्वीकार करना सिखा देते हैं। मानव जीवन एक सतत यात्रा है, जो केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है। इसका मूल उद्देश्य आत्मा को उस विद्वता और शांति के आलिंगन तक ले जाना है, जहां वह परमात्मा में विलीन हो सके। यह यात्रा रैखिक नहीं है। यह समय और जन्म की परतों में फैली हुई है।
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हर अनुभव अधूरे पाठों को पूरा करने की एक कड़ी भर है। हमारे जीवन में आने वाले सुख-दुख, रिश्ते-नाते, सफलताएं और असफलताएं, सब हमारे लिए अनुबंध होते हैं, जिन्हें पूरा करना हमारी नियति होती है। कई बार ये अनुभव इतने गहरे होते हैं कि हमें लगता है जैसे हम किसी अदृश्य शक्ति द्वारा संचालित हो रहे हैं, जो हमें किसी निश्चित दिशा में खींच रही है। कभी ये अनुबंध पीड़ा के रूप में सामने आते हैं- किसी रिश्ते की कसक, किसी प्रियजन का बिछोह या किसी असफलता का बोझ बनकर।
कभी ये सामाजिक या पारिवारिक रूप में प्रकट होते हैं, जहां हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना होता है या किसी गहरे रिश्ते के माध्यम से हमें कोई महत्त्वपूर्ण सबक मिलना होता है। जब हम इन अनुबंधों की गहराई को समझना शुरू करते हैं, तो जीवन का अर्थ बदलने लगता है। तब हमें यह अहसास होता है कि हर घटना, हर मोड़, हर सुख और दुख आत्मा की उन्नति के लिए एक साधन मात्र हैं।
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जीवन में जो अनुभव हमें मिलते हैं, वे हमारे भीतर एक मौन शिक्षक की तरह काम करते हैं। ये अनुभव, जो हमें हमारी सीमाओं से परिचित कराते हैं, हमारी धैर्य-शक्ति को परखते हैं और हमें आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। समय के साथ हम यह समझने लगते हैं कि सुख और दुख दोनों ही क्षणभंगुर हैं और इनका चक्र जीवन भर चलता रहेगा। यह समझ हमें भीतर से स्थिर कर देती है। तब जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। हम प्रतिक्रियाशील होने के बजाय पर्यवेक्षक बन जाते हैं। यही पर्यवेक्षक दृष्टि हमें उस गहन शांति तक ले जाती है, जिसकी तलाश हर आत्मा अनजाने में करती रहती है।
अक्सर लोग इस अवस्था को उदासीनता कहकर गलत समझ लेते हैं। उन्हें लगता है कि व्यक्ति अब न खुशी महसूस करता है, न दर्द। लेकिन यह उदासीनता दरअसल वह शांति होती है, जो हर अनुभव को सहजता से स्वीकार करना सीख चुकी होती है। जब हम किसी घटना को केवल उसकी सतही रूपरेखा में देखते हैं, तो हमें उसमें या तो पीड़ा दिखती है या उल्लास। लेकिन जब हम उसे अपनी यात्रा का एक हिस्सा मानकर देखते हैं, तो उसका अर्थ बदल जाता है। तब न हम अत्यधिक उल्लसित होते हैं, न अत्यधिक व्यथित। हम बस उस घटना को एक अनुभव के रूप में स्वीकार कर आगे बढ़ जाते हैं। यही परिपक्वता है।
जीवन का अंतिम लक्ष्य केवल जीना या भौतिक सुख-सुविधाओं का संग्रह करना नहीं है। ये तो यात्रा के बीच में मिलने वाले छोटे ठहराव भर हैं। असली लक्ष्य अहंकार का समाप्त हो जाना है, इच्छाओं का शांत हो जाना है। मगर इस अवस्था तक पहुंचने के लिए लंबी यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें नए सबक लिखे जाते हैं- कभी यह अध्याय सुखद होता है, कभी अत्यंत कठिन, लेकिन दोनों ही हमारी उन्नति के लिए आवश्यक होते हैं। जीवन की यह धारा निरंतर बहती रहती है, हम चाहें या न चाहें। हम इसके प्रवाह के साथ चलना सीख सकते हैं। जब हम इस प्रवाह को स्वीकार कर लेते हैं, तब जीवन सरल हो जाता है। तब न हमें ठहराव की लालसा रहती है, न मोड़ों से डर। हम बस बहते जाते हैं, सीखते जाते हैं, और आखिर शांति के किनारे तक पहुंच जाते हैं। यही जीवन की सच्ची यात्रा है- अनुभव से ज्ञान, ज्ञान से शांति, और शांति से मुक्ति की ओर एक सतत् प्रवाह।
