जीवन में हर चीज का एक संतुलित रूप ही सही होता है। अति किसी भी बात की हो, चाहे वह प्रेम हो, क्रोध हो, भोजन हो या मौन, वह जीवन के लिए हानिकारक साबित होती है। ठीक इसी प्रकार, रिश्तों में भी एक संतुलन बहुत जरूरी है। न तो किसी रिश्ते में आवश्यकता से अधिक घुल जाना ठीक होता है, और न ही पूरी तरह उदासीन होकर जीना। आजकल समाज में हमें दो तरह के रिश्ते देखने को मिलते हैं। एक तरफ ऐसे रिश्ते हैं जहां लोग एक-दूसरे के जीवन में इस कदर दखल देने लगते हैं कि व्यक्ति को अपने ही जीवन पर नियंत्रण नहीं रहता। दूसरी तरफ कुछ रिश्ते इतने ढीले और लापरवाह हो जाते हैं कि उनमें न कोई संवाद बचता है, न परवाह।

इस प्रकार के रिश्तों में प्रेम के नाम पर एक-दूसरे की निजता में इतनी अधिक दखलअंदाजी होती है कि व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पहचान ही खोने लगता है। ‘किससे बात कर रहे हो?’ ‘क्यों देर से जवाब दिया’ ‘फोन क्यों बिजी था?’ और यहां तक कि पूरी गतिविधि पर नजर रखना शुरू हो जाता है। सवाल यह उठता है कि क्या यह वास्तव में प्रेम है? ऐसे रिश्तों में इंसान का व्यक्तिगत विकास रुक जाता है। वह स्वयं के लिए सोचना तक छोड़ देता है, क्योंकि उसकी ऊर्जा लगातार अपने साथी को समझाने, साबित करने और भरोसा दिलाने में खर्च होती रहती है।

जितना यह उसके साथी के लिए हानिकारक है, उतना ही यह उसके अपने लिए भी विनाशकारी है। धीरे-धीरे यह रिश्ता ‘प्रेम’ से ‘संदेह’ की ओर बढ़ने लगता है। और जहां संदेह है, वहां प्रेम का वास संभव नहीं रह जाता। सोशल मीडिया के पासवर्ड लेना, फोन की जांच करना, साथी की हर गतिविधि पर नजर रखना- यह सब दर्शाता है कि रिश्ते में विश्वास की कमी है। जब किसी इंसान को उसकी निजी जगह से वंचित किया जाता है, तो वह भीतर से घुटने लगता है। और यही घुटन प्रेम को धीरे-धीरे खत्म कर देती है।

हमें प्रकृति से मिलता है रिश्तों को समझने के लिए सबसे सुंदर उदाहरण

दूसरी तरफ ऐसे रिश्ते भी होते हैं जिनमें दो लोग साथ तो रहते हैं, लेकिन उनके बीच संवेदनाएं और जुड़ाव लगभग समाप्त हो चुका होता है। एक-दूसरे के जीवन में क्या चल रहा है, इसकी कोई चिंता नहीं होती। एक-दूसरे की तकलीफें भी अनदेखी रह जाती हैं। ऐसे रिश्ते भावनात्मक रूप से सूखे और खाली हो जाते हैं। रिश्ते केवल शारीरिक या सामाजिक साथ से नहीं चलते। उनमें भावना, संवाद और सहयोग भी उतना ही जरूरी है। जब वह सब नदारद हो जाए, तब रिश्ता बस एक औपचारिक बंधन बनकर रह जाता है, जिसमें न कोई मिठास होती है और न कोई ऊर्जा।

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रिश्तों को समझने के लिए सबसे सुंदर उदाहरण हमें प्रकृति से मिलता है पौधों का। हम सभी जानते हैं कि कोई भी पौधा तभी हरा-भरा और जीवित रह सकता है, जब उसे नियमित पानी मिले और धूप मिलती रहे। अगर हम उसे जरूरत से ज्यादा पानी दें, तो उसकी जड़ें सड़ जाती हैं। अगर पानी देना ही भूल जाएं, तो वह सूख जाता है। ठीक यही नियम रिश्तों पर भी लागू होता है। रिश्ते भी पौधों की तरह होते हैं। उन्हें देखभाल चाहिए। बातचीत, परवाह, नजदीकी और स्वतंत्रता सबका संतुलित मिश्रण। अच्छा रिश्ता वही होता है, जिसमें न किसी पर बंधन हो और न ही उपेक्षा। जहां एक-दूसरे की व्यक्तिगत जिंदगी का सम्मान हो और भावनाओं की कद्र भी।

केवल भावनाओं से नहीं होता रिश्तों को संभालना

एक-दूसरे से जुड़े रहना, लेकिन घुटन न देना, बल्कि सहज रहना और सहजता का अहसास देना। संवाद करना, लेकिन हर बात पर सवाल न उठाना। परवाह करना, लेकिन नियंत्रण की हद तक नहीं। साथ रहना, लेकिन स्वतंत्रता के साथ। सच्चा रिश्ता वह होता है, जिसमें दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की जरूरत बनें, लेकिन जंजीर नहीं। जहां भरोसा इतना मजबूत हो कि हर पल की जानकारी देने की आवश्यकता न हो। और प्रेम इतना गहरा हो कि एक-दूसरे की खुशी में सच्चा उत्साह मिले। रिश्ते कोई बोझ नहीं होते, वे जीवन की ऊर्जा होते हैं। मगर जब वे अति में बदल जाएं, चाहे वह दखल की हो या लापरवाही की, तब वे जिंदगी को बोझिल बना देते हैं। इसलिए जरूरी है कि अपने संबंधों में संतुलन बनाए रखा जाए। यह याद रखने की जरूरत है कि रिश्ते भी पौधों जैसे होते हैं। उन्हें रोज थोड़ा-थोड़ा प्यार चाहिए, न ज्यादा, न कम।

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रिश्तों को संभालना केवल भावनाओं से नहीं होता, इसके लिए समझदारी भी आवश्यक है। किसी भी संबंध की नींव संवाद पर टिकी होती है। अगर रिश्ते में चुप्पी छा जाए या फिर हर बात पर अत्यधिक सवाल-जवाब होने लगे, तो वह धीरे-धीरे कमजोर होने लगता है। विश्वास को आधार बनाना जरूरी है, क्योंकि लगातार नियंत्रण करने की प्रवृत्ति रिश्ते में खटास भर देती है, जबकि भरोसा उसे गहराई देता है। साथ ही, स्वतंत्रता का सम्मान करना भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। साथी को अपने निर्णयों और पसंद का अधिकार देना संबंध को स्वस्थ बनाए रखता है। रिश्ते केवल दिखावे पर नहीं टिकते, बल्कि साथ बिताए छोटे-छोटे पलों की कद्र करने से मजबूत होते हैं। साझा हंसी, हल्की-फुल्की बातें और एक-दूसरे की चिंताओं में भागीदारी ही वह पोषण है, जो रिश्तों की जड़ों को मजबूती प्रदान करता है।

रिश्तों में संतुलन ही जीवन की असली खूबसूरती है। संतुलित रिश्ता ही इंसान को सुकून, ऊर्जा और आत्मविश्वास देता है। अगर प्रेम के साथ विश्वास, संवाद और स्वतंत्रता का मेल हो, तो रिश्ते जीवन की सबसे बड़ी ताकत बन जाते हैं, लेकिन अगर उनमें अति या उपेक्षा आ जाए, तो वही रिश्ते घुटन और बोझ में बदल जाते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने संबंधों में न अति का मार्ग अपनाएं, न उपेक्षा का, बल्कि बीच का रास्ता चुनें- संतुलन का, संवेदनाओं का और परस्पर सम्मान का।