मनुष्य को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है। उसकी बुद्धि, विवेक और विचारशक्ति उसे अन्य प्राणियों से अलग बनाती है। अगर हम गहराई से सोचें, तो पाएंगे कि मनुष्य अपनी तमाम उपलब्धियों के बावजूद अभी भी बहुत कुछ नहीं जानता। हालांकि यह प्रकृति और उसके रहस्यों के विस्तार के कारण है। विज्ञान, दर्शन और अध्यात्म- हर क्षेत्र में मनुष्य की यात्रा जारी है और जितना ज्ञान वह अर्जित करता है, उसके समांतर कई क्षेत्रों में उसकी अज्ञानता भी उजागर होती रहती है। इसीलिए कहा जाता है कि मानव अल्पज्ञ है। मनुष्य ने चांद और मंगल तक अपनी पहुंच बनाई, महासागरों की गहराई नापी और पृथ्वी के छोर तक यात्रा की, लेकिन आज भी वह अपने ही मन की गहराई नहीं माप पाया है। हमारी भावनाएं, चेतना और हमारे विचार किस ढंग से काम करते हैं, यह आज तक रहस्य ही बना हुआ है। मनुष्य जितना ब्रह्मांड को जानने की कोशिश करता है, उतना ही वह अपने भीतर झांकने से कतराता है।
प्रकृति के रहस्यों को समझने के मामले में मनुष्य की अभी सीमित पहुंच रही है। विज्ञान ने भूकम्प, ज्वालामुखी, सुनामी जैसी प्राकृतिक घटनाओं का कुछ अनुमान लगाना सीखा है, पर उन्हें रोक पाने की शक्ति आज भी उसके पास नहीं है। मौसम के पूर्वानुमान की तकनीक विकसित हुई है, फिर भी अचानक आने वाले आंधी-तूफान या बाढ़ जैसी आपदाएं मनुष्य को उसकी असहायता का अहसास कराती हैं। यह सब प्रमाण है कि प्रकृति के विस्तार के समांतर मनुष्य अभी भी ज्ञान की सीढ़ियों के शुरूआती सोपान पर खड़ा है।
समय और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है हमारी जानकारी
ऐसे संदर्भ अक्सर सामने आते रहते हैं कि जब-जब मनुष्य ने इस बात पर गुमान किया कि वह सब कुछ जान चुका है, तभी कोई नई खोज या आविष्कार उसकी भूल को उजागर कर देता है। कभी पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र समझा गया, तो कभी यह विश्वास किया गया कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घूमता है। लेकिन बाद में विज्ञान ने इन धारणाओं को गलत साबित किया। इससे स्पष्ट है कि हमारी जानकारी समय और परिस्थिति के अनुसार बदलती रहती है।
किसी प्रयोगशाला के प्रयोग की तरह है जीवन का प्रत्येक पहलू, भागदौड़ में भी अपने लिए निकालें कुछ समय
मानव जीवन का सबसे बड़ा रहस्य उसका जन्म और फिर उसकी मृत्यु है। आज तक कोई वैज्ञानिक यह स्पष्ट नहीं कर पाया कि आत्मा क्या है और मृत्यु के बाद जीवन का क्या स्वरूप होता है। धर्म और दर्शन ने इसके अलग-अलग उत्तर देने का प्रयास किया है, लेकिन कोई भी अंतिम सत्य तक नहीं पहुंच सका। यह भी हमारी अल्पज्ञता का प्रमाण है। ज्ञान के इस अभाव का एक और उदाहरण समाजशास्त्र और राजनीति में देखा जा सकता है। हजारों साल से सभ्यताएं बनती और बिगड़ती आ रही हैं, लेकिन अभी तक कोई ऐसी व्यवस्था नहीं बन सकी, जिसमें सभी को समान अवसर और पूर्ण न्याय मिल सके। युद्ध, हिंसा, आतंकवाद, भूख और गरीबी आज भी मानवता को चुनौती दे रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य अभी तक जीवन का सही मार्ग नहीं खोज पाया।
नए प्रयोगों और खोजों की ओर प्रेरित करती हैं जिज्ञासा
मनुष्य की अल्पज्ञता केवल भौतिक या सामाजिक ज्ञान तक सीमित नहीं है, बल्कि उसकी व्यक्तिगत जिंदगी में भी दिखाई देती है। हम अपने सुख-दुख का कारण तक सही ढंग से नहीं समझ पाते। कभी छोटी-सी असफलता हमें निराशा के गहरे अंधकार में धकेल देती है, तो कभी तुच्छ-सी सफलता पर हम अहंकार से भर जाते हैं। यह अस्थिरता बताती है कि हम अपने मन और भावनाओं को जानने और नियंत्रित करने में कितने असमर्थ हैं। फिर भी, इस अल्पज्ञता का एक सकारात्मक पहलू भी है, क्योंकि मनुष्य सब कुछ नहीं जानता, इसलिए उसमें हर समय कुछ नया जानने की जिज्ञासा बनी रहती है। यही जिज्ञासा उसे नए प्रयोगों और खोजों की ओर प्रेरित करती है। यों यह अपने आप में एक सवाल है कि पूर्णता क्या है और क्या ज्ञान को कभी पूर्ण मान लिया जा सकता है? अगर मनुष्य पूर्ण ज्ञानी होता, तो शायद उसकी यात्रा एक मुकाम पर पहुंच कर समाप्त हो जाती। इसीलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि अल्पज्ञता मनुष्य की सबसे बड़ी प्रेरणा शक्ति है।
पसंद और नापसंद की होड़ से परे है मानव जीवन, योग का उद्देश्य केवल शरीर की चपलता या सांस की लय नहीं
आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स और अंतरिक्ष विज्ञान में तेजी से प्रगति हो रही है। इसके बावजूद जब कोई महामारी फैलती है या कोई नया विषाणु सामने आता है, तो पूरा मानव समाज हिल उठता है। पिछली महामारी के दौरान जो हुआ, वह भी हमें सिखाता है कि सारी उपलब्धियों के बावजूद हम सीमित ज्ञान वाले प्राणी हैं। इस सीमा को स्वीकार करना ही मनुष्य का सबसे बड़ा ज्ञान है। जब हम यह मानते हैं कि हम सब कुछ नहीं जानते, तभी हम सीखने के लिए तैयार होते हैं। विनम्रता और जिज्ञासा ही ज्ञान की पहली सीढ़ी है। अहंकार से ग्रस्त होकर अगर हम सोचें कि अब और जानने को कुछ नहीं बचा, तो वही हमारी सबसे बड़ी भूल होगी।
सच्चा ज्ञानी वही है, जो अपनी अज्ञानता को पहचान सके
इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि मानव अल्पज्ञ है। मगर यही अल्पज्ञता उसे निरंतर आगे बढ़ने, सीखने और खोजने की प्रेरणा देती है। सच्चा ज्ञानी वही है, जो अपनी अज्ञानता को पहचान सके। जब तक मनुष्य में यह विनम्रता बनी रहेगी, तब तक वह ज्ञान की नई ऊंचाइयों को छूता रहेगा। मनुष्य के पास बहुत ज्ञान है, लेकिन यह सागर की केवल कुछ बूंदें भर हैं। वास्तविक सागर अब भी असीम है। हमें अपनी अल्पज्ञता को स्वीकार करके लगातार जिज्ञासु बने रहना चाहिए। तभी मनुष्य जीवन सार्थक होगा और उसकी यात्रा अनंत ज्ञान की ओर निरंतर चलती रहेगी।
