हम सब प्रकृति के हिस्से हैं, जिनमें कुछ जीव धरती पर, कुछ जल में, कुछ पेड़ों पर तो कुछ अलग-अलग जगहों पर रहते हैं। हम कभी-कभी खुद को ही सबसे अधिक महत्त्व देने लगते हैं। हमारे आसपास कितने ही जीव-जंतु ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से हमारे जीवन को सुगम बनाते हैं। कुछ समय पहले एक व्यक्ति द्वारा बड़ी संख्या में कुत्तों को मार डालने की खबर आई।

उसके बाद सोशल मीडिया पर कुत्तों के काटने की खबरों की बाढ़ आ गई। बहुत सारे लोग उनके पक्ष में तो बहुत सारे उसके विपक्ष में आ गए और मामला अदालत तक पहुंच गया। हमें किसी जीव से नुकसान होने के साथ-साथ उससे होने वाले नुकसान के कारणों पर काम करना चाहिए। किसी को उसकी जगह से निष्कासित या विस्थापित करना उसके अस्तित्व को खतरे में डालना है।

लावारिस जीव-जंतु भी जिस जगह पर रहते हैं, वे उस जगह के साथ तादात्म्य स्थापित कर लेते हैं। वे वहां रहना चाहते हैं। उन्हें वहां से हटाकर नए अपरिचित माहौल में रखना उनके लिए कष्टप्रद होता है। उनके लिए आवश्यक विकल्प, सुविधाएं और आवास की व्यवस्था या जिस तरह वे रह रहे थे, वह व्यवस्था न छीनकर उसे सुगम बनाने की दिशा में काम होना चाहिए। बहुत सारे लोग कुत्तों को पालते हैं, लेकिन जिन कुत्तों को लोग नहीं पालते, वे लावारिस सड़कों पर घूमते रहते हैं और भोजन तथा आवास के लिए दर-दर भटकते रहते हैं।

भूख और असुरक्षा के चलते ही किसी पर हमला करते हैं अधिकांश जीव

लगभग बीस-पच्चीस वर्ष पहले तक कस्बों और गांवों में बहुत से घरों से पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकालने का चलन था। लोग जो कूड़ा फेंक देते थे, उसमें बचा हुआ भोजन भी होता था, जिसे लावारिस पशु खा लेते थे। मजबूरी में पीने का पानी नालियों से पी लेते थे। अब रोटी निकालने का चलन धीरे-धीरे कम हो गया है। ऐसे में गलियों-मोहल्लों में बाहर रहने वाले कुत्ते अपनी भूख मिटाने के लिए पहले खाना खोजते हैं और फिर असफल होने पर अपने भीतर होने वाले बदलावों के बाद कभी-कभार बच्चों या बड़ों पर हमला कर देते हैं।

अधिकांश जीव आमतौर पर भूख और असुरक्षा के चलते ही किसी पर हमला करते हैं। ऐसे में उन्हें उस जगह से बलपूर्वक हटा देना उचित नहीं है। उनके लिए विकल्पों की तलाश नहीं के बराबर हो पाती है। जब उनके द्वारा कुछ अप्रत्याशित घटित होता है, तभी हमारा ध्यान उस ओर जाता है। सामान्य तौर पर कोई पशु किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता, अगर उनकी जरूरत पूरी हो जाए या फिर वह अपने ऊपर कोई खतरा न महसूस करे।

कहा जाता है कि दुनिया की पहली मिठाई शहद है, जो हमें मधुमक्खियों से मिलता है। शहद की यह ताकत है कि वह स्वास्थ्यप्रद और औषधीय होने के साथ-साथ कभी खराब न होने वाला द्रव है। कितनी ही चिड़िया के फल खाने से बीज उनके पेट में चले जाते हैं और बीट के रूप में बाहर निकलते हैं। ये बीज चिड़ियों के पेट में रहने से उपचारित हो जाते हैं और उनके उगने की संभावनाएं बढ़ जाती है। पशुओं के खाने के बाद उनके शरीर से निकलने वाले बीज नए पेड़ बन कर जन्म लेते हैं। कितनी ही बार गिलहरियां बीज जमीन में अपने खाने के लिए छिपा देती हैं और फिर भूल जाती हैं, जिनके अंकुरण से पेड़ बन जाते हैं। तितलियों के फूलों पर बैठने से फूलों के परागकण उनकी टांगों में चिपक जाते हैं, जिससे परागण की क्रिया सहज रूप से हो पाती है। कुत्तों में सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है, जिसकी वजह से सेना और पुलिस में कुत्तों को प्रशिक्षित करके अपराधी तक पहुंचा जाता है। घरों में कुत्ते घर की सुरक्षा करते हैं। मगर शहरी जानवर, पेड-पौधों और अपने आसपास की पारिस्थितिकी को जानते-बूझते, अकारण नुकसान पहुंचाना एक तरह की हिंसा ही है।

फोन के टावर लगते रहने से मधुमक्खियां भूलने लगती हैं अपना रास्ता

जल, वायु और मृदा- ये तीनों ही पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं। हम अपने जीवन को सुगम और सुरक्षित बनाना चाहते हैं तो हमें इनका संरक्षण करना होगा, तभी इनसे संबंधित संसाधन हमें पर्याप्त मात्रा में मिलते रहेंगे और हम अपना जीवन अच्छे से गुजार पाएंगे। अगर वन और वन्यजीव नहीं होंगे, तब जल, वायु और मृदा से मिलने वाले संसाधन समाप्त हो जाएंगे और हम इनके बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकते।

जिस तरह से भाषाएं विलुप्त होती जा रही हैं, उसी तरह से बहुत से जीव भी कम या विलुप्त होते जा रहे हैं। शहरों में अब मोर और तोते कम दिखते हैं। लगभग पैंतीस-चालीस वर्ष पहले गिद्ध और चील आमतौर पर हर जगह दिखाई देते थे, जो अब नहीं के बराबर दिखते हैं। शहरों में तितलियां कम होती जा रही हैं। एक रपट के मुताबिक, फोन के टावर लगते रहने से मधुमक्खियां अपना रास्ता भूलने लगती हैं। बारिश के दिनों में निकलने वाली बीर-बहूटी कम होती जा रही है। लगातार पहाड़ों और जंगलों का कटना, नदियों और तालाबों का सूखना और शहरों के विस्तार ने कई जीवों के जीवन को संकट में डाला है। हम सब प्रकृति के हिस्से हैं। पारिस्थितिकी के मुताबिक अगर इस शृंखला की एक भी कड़ी टूटती है, तो उसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ता है। इससे मानव जीवन भी अछूता नहीं रह सकता।